हमारे जीवन में त्योहारों का महत्व पर निबंध

जीवन में त्योहारों का महत्व निबंध इन हिंदी

जीवन में त्योहारों का महत्व निबंध इन हिंदी त्योहारों का महत्व हिंदी निबंध Essay on The Importance of Festivals in Our Life in Hindi हमारे त्यौहार भारत त्यौहारों का देश है। हमारी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत हमें जीवन से प्यार करना सिखाती है। जीवन, उस प्रभु की अमूल्य देन है। भारतीय ऋषि-मुनि, साधु-महात्मा, विचारक-साधक प्रकृति के निकट रह कर जीवन-सत्यों की खोज करते थे। प्रकृति के उल्लास एवं आनन्द को उन्होंने जीवन में उतारने का प्रयास किया । बसन्त के आने पर वसन्त पंचमी सर्दी की ऋत में शरद-पणिमा जैसे त्योहार प्रकृति के सौन्दर्य का आनन्द लेने के सूचक हैं । हिमाचल में उख्यांग तथा सिंजर के मेले भी ऋतुओं से जुड़े हैं। कुछ त्यौहार हमारी पौराणिक परम्पराओं से जुड़े हैं। होली के दिन होलिका आग में जल मरी और भक्त प्रह्लाद का बाल भी बांका नहीं हुआ, दशहरे के दिन राम ने रावण को मार कर बुराई पर अच्छाई की जीत का झण्डा गाड़ दिया। दुर्गा अष्टमी के दिन, दुर्गा ने महिषासुर और रक्तबीज जसे राक्षसों से पृथ्वी को मुक्त किया तो रामनवमी के दिन, भगवान् राम का जन्म हुआ। असंख्य त्यौहार या पर्व हमारी संस्कृति से सीधे जुड़े हैं । दीपावली के दिन राम, अयोध्या लौटे, उजाले ने अन्धेरे पर विजय पाई। कुछ त्यौहार हमारे राष्ट्रीय जीवन से जुड़ी प्रमुख घटनाओं की याद दिलाते हैं । 

हमारे राष्ट्रीय पर्व कौन कौन से हैं?

26 जनवरी को हमारा राष्ट्र गणतन्त्र में बदल गया। 15 अगस्त को यह राष्ट्र आजाद हुआ। कुछ त्यौहार हमारे राष्ट्रीय नेताओं के जीवन से सीधे जुड़े हैं। दो अक्तूबर को गांधी जयन्ती पड़ती है तो चौदह नवम्बर को चाचा नेहरू का जन्म-दिन है। समाज की आनन्द भावना अनेक मेलों के रूप में अभिव्यक्त होती है। ये त्यौहार, उत्सव, मेले अथवा पर्व भारतीय जीवन का अभिन्न अंग हैं । भारतीय परम्परा से जुड़े मेलों की एक विशेषता यह भी है कि ये सब जीवन के आनन्ददायी अनुभवों से जुड़े हैं। ऐसा लगता है कि भारतीय किसी ऐसे अवसर को हाथ से जाने नहीं देते जिससे आनन्द प्राप्त होता हो। भारत में त्योहारों ॐ का यह आनन्दमय स्वरूप भारतीय जीवन-दृष्टि का सूचक है। यहां जीवन आनन्ददायी है और मृत्यु पुराने वस्त्र त्यागने के समान स्वाभाविक कार्य। 

इन त्यौहारों के प्रारम्भ होने का क्या इतिहास है यह तो स्पष्ट नहीं किया जा सकता परन्तु हमारी संस्कृति एवं धर्म से जुड़े त्यौहारों को सूक्ष्म दृष्टि से देखने से कुछ बातें स्पष्ट हो जाती हैं। हम दीवाली इसलिए मनाते हैं क्योंकि हम अन्धकार से प्रकाश की ओर जाना चाहते हैं। दीवाली के अवसर पर हम केवल तेल के दीपक नहीं जलाते बल्कि अपनी कामनाओं के दीपक भी जलाते हैं। दीवाली को शायद यही संदेश दिया जाता है 

“दीवाली के शुभ अवसर पर ऐसे दीप जलाओ। भूले-बिसरे अखिल विश्व में उजियारा हो जाए।” 

दशहरा हमें याद दिलाता है कि चरित्रहीनता को भारतीय समाज बर्दाश्त नहीं। करता। बेचारे रावण को अपने भाई-बन्धुओं के साथ हर साल, हजारों वर्षों से हम जलाते आ रहे है । स्त्री, मात्र कामिनी नहीं, मां, बहन और बेटी भी है, यह दृष्टि भी भारतीय है । होली के दिन भेदभाव को भूल कर हम एक-दूसरे से गले मिलते हैं । होलिका की मृत्यु इस बात की साक्षी है कि बुराई स्वयं बुरे व्यक्ति का नाश कर देती है। रक्षा बन्धन भाई-बहन के पावन सम्बन्धों की याद दिलाता है और जन्माष्टमी कृष्ण के जन्म की खुशियां ले कर आती है। राष्ट्रीय पर्व या त्यौहार हमारे इतिहास को बार बार हम तक पहुंचाते हैं। 

त्योहारों को मनाने के तरीके  

हमारे जीवन में त्योहारों का महत्व पर निबंध
जीवन में त्योहारों का महत्व

त्योहारों को मनाने के तरीके अलग-अलग हैं। कहीं मेले लगते हैं, कहीं नौका दौड़ होती है, कहीं मन्दिर, गुरुद्वारे सजाते हैं तो कहीं मस्जिदों और पर्यों का शृंगार होता है । कोई व्रत-उपवास करके त्यौहार मनाता है तो कोई दावत उड़ा कर। किसी त्योहार को नदियों में स्नान किया जाता है तो किसी पर्व को मनाने के लिए धार्मिक ग्रन्थों का पाठ होता है । त्यौहार जीवन की एकरसता एवं नीरसता को तोड़ते हैं। आम आदमी के जीवन में रस की वर्षा करते हैं। हमारे त्यौहार हमारी जीवन्तता के प्रतीक हैं। 

भारतीय त्योहारों का कलात्मक महत्व

भारत में त्योहारों का महत्त्व ग्रामीण परिवेश में अधिक था और अधिक है। शहर की जटिल तनाव ग्रस्त जिन्दगी में त्यौहारों को मनाने का समय नहीं है। हर आदमी पैसा कमा कर अधिक-से-अधिक विलास सामग्री बटोर लेना चाहता है परन्त इस बीच त्योहारों के रूप में जो आनन्द उसे मिल सकता है, उसे भूल जाता है। आज का शहरी इन्सान, धर्म-कर्म से दूर भागने लगा है। संस्कृति के उच्चतर मूल्यों पर ध्यान देने का समय उसके पास नहीं है। प्रकृति से उसका नाता वर्षों पहले ट्ट गया है। आज के मनुष्य के लिए त्योहार प्रसन्नता के अवसर न रह कर परेशानी के कारण बन गए हैं। आज आदमी इतना अधिक आत्म-केन्द्रित हो गया है कि उसे खुशियों में भाग लेना अच्छा नहीं लगता। 

त्यौहार जहां हमारे जीवन में खुशियां ले कर आते हैं, हमें नए उत्साह से भर जाते हैं, हम में नई जीवन शक्ति एवं प्रेरणा का बीज डाल जाते वहीं पर इनकी कुछ हानियां भी हैं । त्योहारों के अवसर पर धार्मिक पागलपन में एक सम्प्रदाय के लोग दूसरे सम्प्रदाय की भावनाओं को ठेस पहुचाने लगते हैं। साम्प्रदायिक दंगे होते है । जलूस किस रास्ते जाएगा, ताजिया कहां रुकेगा, बाजा कहां बजेगा या नहीं बजेगा इन मब बातों को लेकर झगड़े होते हैं । त्यौहार या पर्व को अपनी जाति की शक्ति प्रदर्शित करने का प्रयास साम्प्रदायिक दंगों में बदल जाता है। संकीणं राज नीतिक दृष्टि से मनाए गए राष्ट्रीय दिवस भी तनाव का कारण बन जाते हैं । त्यौहारों को मनाने के पीछे यदि भावनाएं कलुषित हैं तो त्यौहार भी कलुषित हो जाता है। भारत जैसे धर्म-निरपेक्ष प्रजातन्त्र में आवश्यक है कि हम एक-दूसरे के त्योहारों में अधिकाधिक भाग लें। 

कुछ परिवारों में त्यौहार कलह और मार-पीट का कारण बन जाता है। सीमित साधनों में त्योहार पर खर्च करने के लिए पैसा कहां से आए, नए वस्त्र कैसे खरीदें, नए खिलौने किस प्रकार लाएं, ये समस्याएं सामने आती हैं। हमें चाहिए कि त्यौहार सादगी से तथा उत्साह से मनाएं। प्रसन्नता, पदार्थों में नहीं, मन में होती है। यदि सम्भव हो तो कुछ पैसा भी बचाना चाहिए क्योंकि त्यौहार की तिथि तो निश्चित होती है, यह कोई आकस्मिक दुर्घटना तो नहीं है जिस के विषय में योजना न बनाई जा सके। 

त्यौहार मनाते समय और धन का सदुपयोग करते हुए आनन्द मनाना चाहिएं। त्योहारों के अवसर पर मदिरापान करना, जूआ खेलना, बदला लेने के लिए अवसर निकालना गलत है । त्यौहारों को यदि हम सचमुच खुशियों से भरना चाहते हैं तो इन्हें मनाने के तरीके बदलने चाहिएं। 

त्यौहार जीवन का अभिन्न अंग

सार रूप में हम कह सकते हैं कि हमारे देश में त्यौहार जातीय जीवन का अभिन्न अंग हैं । हमारी संस्कृति, हमारे जीवन-मूल्य, हमारा रहन-सहन उनसे गहरे रूप में जुड़ा है। त्यौहार हमारे जीवन में सरसता लाते हैं। त्योहारों का स्वरूप भी एक जैसा नहीं है। उन्हें मनाने के तरीके भी भिन्न-भिन्न हैं। हमारे त्यौहार हमारी जीवन से जुड़ते, जीवन का पूरा आन्द लेने की इच्छा के प्रतीक हैं। ये वे अवसर हैं जिन की प्रतीक्षा हर बच्चे-बूढ़े, स्त्री-पुरुष, धनी-निर्धन को रहती है। हमें अपने त्योहारों को उत्साहपूर्वक मनाना चाहिए। 

विडियो के रूप में देखें – 

You May Also Like