उसी ईश के अंश सभी

उसी ईश के अंश सभी ,कोई ज्यादा न कोई कम है

जो प्रोत्साहित करे

और जो पीड़ परायी जाने
और जो तुममे निहित है ऊर्जा
उसको भी पहचाने
हमदर्दी  (sympathy ) जो दिखलाये
उस पर बिस्वास न करिये
समानुभूति (empathy)  आदर्श हो
जिनका  उनके साथ विचरिये

जीवन को विष कर देंगे
रहना तुम उनसे दूर
जो करे तुम हतोत्साहित
और बस संदेह  भरपूर
जिनका काम महज इतना
की खामियों को गिनवाएं
धयान रहे उनकी परछाईं

रणजीत कुमार

के भी निकट न जाएँ

अब युग नहीं की निंदक को हम आस्तीन में पालें
और अपना बुद्धि विवेक करदें औरों के हवाले
उसी ईश के अंश सभी ,कोई ज्यादा न कोई कम है
दुर्बल नहीं कोई है यहाँ बस मन का मात्र भरम है

यह कविता रणजीत कुमार मिश्र द्वारा लिखी गयी है। आप एक शोध छात्र है। इनका कार्य विज्ञान के क्षेत्र में है ,साहित्य के क्षेत्र में इनकी अभिरुचि बचनपन से ही रही है . आपका उद्देश्य हिंदी व अंग्रेजी लेखनी के माध्यम से अपने भाव और अनुभवों को सामाजिक हित के लिए कलमबद्ध करना है।

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