पापा की बातों को अब जाके माना

 पापा की बातों को अब जाके माना 

  कहाँ है मंजिल…?
  किधर है जाना…?
  अभी तक मिला न कोई ठिकाना….!
  पापा की बातों को अब जाके माना,
  मुश्किल बहुत है ख़ुद से कमाना….!!

  अबतलक तो अपनी जिद्द पे अड़ा था,
  अंधेरों के साये में तन्हा खड़ा था
  उजाले की दुनिया थी एक तरफ,

मुनव्वर अशरफी
मुनव्वर अशरफी

  मगर मैं पतन के गर्त में पड़ा था,
  काबिलियत ने मुझको बाहर निकाला,
  तालीम का मिला एक नया घराना,
  पापा की बातों को अब जाके माना,
  मुश्किल बहुत है बुराई को हराना….!!
 
  है योद्धा वही जो ख़ुद पर विजय पाए,
  शिकस्त मिले चाहे जितना मगर मुस्कुराए,
  लहू ने तो रंग कभी बदला नहीं अपना,
  हम अपनी सोच से हरदम धोखा खाए,
  हर कदम पे चुनौतियों का अम्बार लगा है,
  संघर्ष से जीवन का है नाता पुराना,
  पापा की बातों को अब जाके माना,
  मुश्किल बहुत है पताका लहराना…!!

  दरख़्तों के मेले भी उजड़ने लगे हैं,
  घरौन्दे परिन्दों के बिखरने लगे हैं,
  वो भादो, वो सावन कहीं गुम हुआ है,
  फसलें किसानो के मुरझाने लगे हैं,
  वो आबो-हवा अब मिलती नहीं है,
  खाने को बेबस हैं मिलावटी खाना,
  पापा की बातों को अब जाके माना,
  मुश्किल बहुत है यहाँ जी पाना…!!

  गाँवों के सीने पर शहर बस रहा है,
  सच के जुबाँ पर झूठ बस रहा है,
  दिखावे की दुनिया का रंगत अजीब है,
  छोटे कपड़ों में चरित्र बस रहा है,
  कहने को सब कुछ है मिलता यहाँ पर,
  स्वंय को विधाता समझता है जमाना,
  पापा की बातों को अब जाके माना,
  मुश्किल बहुत है तहज़ीब बचाना…!!

  कहाँ है मंजिल…?
  किधर है जाना…?
  अभी तक मिला न कोई ठिकाना….!
  पापा की बातों को अब जाके माना,
  मुश्किल बहुत है ख़ुद से कमाना….!! “

                             
    -मनव्वर अशरफ़ी 
                             जशपुर (छत्तीसगढ़) 
                                 7974912639
                    manowermd@gmail.com

      

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