उनकी आँखों में

उनकी आँखों में 

उनके आँखो में आँधी का मंजर देखे है,
तुम झील कहते हो,हम समंदर देखे है।
आ जाएगी जो तूफा इनमें, समेट लेगी सब आगोश में,
तुम इन्हें कमजोर कलियॉ कहते हो,
हम इनमें गुलिस्ता महकाने वाले फिरदौस देखे है ।
इनका दामन कोरा है कालिख गैर का ढ़ोती है,
जिसे तुम चिथड़े करने चले हो ,
उसी ऑचल में हम मोहब्बत और वबंडर देखे है ।
फब्तियॉ कसने वाले इनके चाहत पर,
कभी खुद के अंदर झाको,
हम तो इनके कोख में पलते सिकन्दर और कलंदर देखे है ।






-कुमारी रौशनी
समस्तीपुर,बिहार

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