निशा सुन्दरी
भूख मिटाने की आशा में , जो दिन भर दौड़ा करते ।
पर्याप्त धनार्जन करने को जो , दिन भर श्रमरत रहते ।। 1।।
विश्राम मिलेगा उनको कबतक , इसी सोच में आकुल हैं।
कब आयेगी शशि की प्यारी, इंतजार में व्याकुल हैं ।।2।।
दिन भर जलता रहता सूरज, जब थकने को आता है ।
तभी निशा का नेह निमन्त्रण, धरती पर छा जाता है ।।3।।
निशा तुम्हारी बात निराली, कितनी प्यारी लगती हो ।
बना चाँद को अपना प्रियतम, जब आभा में सजती हो ।।4।।
खिलखिला कर हँसती हो जब, चाँद दीवाना बन जाता।
प्यार भरा आमंत्रण तेरा , पाकर मन ही मन हर्षाता ।।5।।
तेरे स्वागत में बिखराता , सुखद चाँदनी हँस कर ।
आँचल में आ जाता तेरे , प्यार पाश में बँध कर ।।6।।
चाँदनी बिखेर सम्पूर्ण धरा पर , तेरा अभिनन्दन करता ।
आगमन मार्ग पर पलक बिछा , तेरा वन्दन करता ।।7।।
स्वागत करता हाथ जोड़ कर, मेरी बाँहों में आ जाओ ।
मुखमंडल तेरा आकर्षित करता, मेरी प्यारी बन जाओ ।।8।।
आओ दोनों दोनों में खो जायें, दोनों जग को सुख पहुँचायें।
दोनों दोनों के मीत बनें , अद्भुत सुख दोनों पायें ।।9।।
– रूद्र नाथ चौबे ” रूद्र “