जिंदगी हम पा गए

जिंदगी हम पा गए

दम निकलने वाला था आप आ गए
तरू श्रीवास्तव
तरू श्रीवास्तव
घड़ी भर को जिंदगी हम पा गए।
जुस्तजू आपकी कब से रही
आप आए नहीं हम मुरझा गए।
खिली-खिली सी चांदनी क्या करेंगे हम
कोई साथी नहीं हम तन्हा रह गए।
फितरत ना जानते थे घर में पनाह दी
अपने ही घर में हम बेगाने रह गए।
दर्द इतना जमाने से हमको मिला
मोम से धीरे-धीरे शीला बन गए।
हम भटकते रहे बस इधर से उधर
घर बसा ना सके, आप जब से गए। 
दम निकलने वाला था आप आ गए
घड़ी भर को जिंदगी हम पा गए।
– तरु श्रीवास्तव

यह ग़ज़ल तरु श्रीवास्तव जी द्वारा लिखी गयी है . आप कविता, कहानी, व्यंग्य आदि साहित्य की विभिन्न विधाओं में लेखन कार्य करती हैं . आप पत्रकारिता के क्षेत्र में वर्ष 2000 से कार्यरत हैं। हिंदुस्तान, दैनिक भास्कर, दैनिक जागरण, अमर उजाला, हरिभूमि, कादिम्बिनी आदि पत्र-पत्रिकाओं में बतौर स्वतंत्र पत्रकार विभिन्न विषयों पर कई आलेख प्रकाशित। हरिभूमि में एक कविता प्रकाशित। दैनिक भास्कर की पत्रिका भास्कर लक्ष्य में 5 वर्षों से अधिक समय तक बतौर एडिटोरियल एसोसिएट कार्य किया। तत्पश्चात हरिभूमि में दो से अधिक वर्षों तक उपसंपादक के पद पर कार्य किया। वर्तमान में एक प्रोडक्शन हाऊस में कार्यरत हैं.आकाशवाणी के विज्ञान प्रभाग के लिए कई बार विज्ञान समाचार का वाचन यानी साइंस न्यूज रीडिंग किया।

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