अब बस और नहीं

अब बस और नहीं

इति और भौमिक का प्रेम विवाह हुआ था। पर हर प्रेम छू मंतर हो जाता है जब जीवन की वास्तविकता के
दहेज हत्या

धरातल पर कदम पड़ते है । इति के साथ भी ऐसा ही था । वह बुद्धिमता और सुंदरता का संगम थी और साथ ही संस्कारी भी । इसलिए हर रिश्ते की अहमियत समझती थी । पर इसी बात को सबने उसकी कमजोरी मान लिया था । और संस्कारों तथा पारिवारिक नैतिक आवश्यकताओं के चलते उसे हर बात पर समझौता करने पर मजबूर किया जाता था।  कब वह एक पढ़ी लिखी लड़की से गृहणी बन गई , पता ही नहीं चला । पति उसकी उच्च योग्यता से चिढ़ने लगा था तो वह भी बाकी परिवार के साथ मिलकर उसे अपमानित तथा  शोषित कर ता था । वह सोचती थी कि इतनी जल्दी तो गिरगिट भी रंग नहीं बदलता जितनी जल्दी ये लोग रंग बदलते हैं ।

उसको अब मानसिक रोगी घोषित करने की कोशिश की जाने लगी ।  और फिर एक दिन … उसको जलाने की कोशिश …।  इति ने बचाने की गुहार की पर किसी ने न सुना । अचानक से  इति ने लपक कर अपनी ननद को पकड़ लिया । यह देखकर ससुराल वाले उन्हें अलग करने दौड़े । पर इति ने उसे न छोड़ा । दोनों ही जल गए । लेकिन इति बच गई और उसकी ननद बुरी तरह जल गई । अस्पताल में ,उसने अपने ससुराल वालों से सिर्फ इतना ही कहा ,”अपनी बेटी का जला चेहरा  देखकर अब सारी उम्र तुम लोगों को याद रहेगा कि तुमने मुझ निर्दोष पर कितने अत्याचार किए ।  मैं तो बच जाऊंगी और तुम्हारे खिलाफ मुकदमा करके कड़ी से कड़ी सजा दिलवाऊंगी । तभी तुम जैसे लोगों के अत्याचार की श्रृंखला पर पूर्ण विराम लगेगा .अब बस और नहीं….।

– इला श्री जायसवाल
नोएडा

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