महेंद्र भटनागर |
री हवा !
गीत
गाती आ,
गाती आ,
सनसनाती
आ ;
आ ;
डालियाँ
झकझोरती
झकझोरती
रज
को उड़ाती आ !
को उड़ाती आ !
मोहक
गंध से भर
गंध से भर
प्राण
पुरवैया
पुरवैया
दूर
उस पर्वत-शिखा से
उस पर्वत-शिखा से
कूदती
आ जा !
आ जा !
ओ
हवा !
हवा !
उन्मादिनी
यौवन भरी
यौवन भरी
नूतन
हरी इन पत्तियों को
हरी इन पत्तियों को
चूमती
आ जा !
आ जा !
गुनगुनाती
आ,
आ,
मेघ
के टुकड़े लुटाती आ !
के टुकड़े लुटाती आ !
मत्त
बेसुध मन
बेसुध मन
मत्त
बेसुध तन !
बेसुध तन !
खिलखिलाती,
रसमयी,
रसमयी,
जीवनमयी
उर-तार
झंकृत
झंकृत
नृत्य
करती आ !
करती आ !
री
हवा !
हवा !
महेंद्र भटनागर स्वातंत्र्योत्तर हिन्दी-कविता के बहुचर्चित यशस्वी हस्ताक्षर हैं। महेंद्रभटनागर-साहित्य
के छह खंड ‘महेंद्रभटनागर-समग्र’ अभिधान से प्रकाशित हो चुके हैं।
‘महेंद्रभटनागर की कविता-गंगा’ के तीन खंडों में उनकी अठारह काव्य-कृतियाँ
समाविष्ट हैं। महेंद्रभटनागर की कविताओं के अंग्रेज़ी में ग्यारह संग्रह
उपलब्ध हैं। फ्रेंच में एक-सौ-आठ कविताओं का संकलन प्रकाशित हो चुका है।
तमिल में दो, तेलुगु में एक, कन्नड़ में एक, मराठी में एक कविता-संग्रह छपे
हैं। बाँगला, मणिपुरी, ओड़िया, उर्दू, आदि भाषाओं के काव्य-संकलन
प्रकाशनाधीन हैं।