बस इतनी बात पर उसने हमें बलवाई लिक्खा है.
मुनव्वर राणा |
हमारे घर के बरतन पे आई.एस.आई लिक्खा है..
यह मुमकिन ही नहीं छेड़ूँ न तुझको रास्ता चलते।
तुझे ऐ मौत मैंने उम्र भर भौजाई लिक्खा है..
मियाँ मसनद नशीनी मुफ़्त में कब हाथ आती है.
दही को दूध लिक्खा दूध को बालाई लिक्खा है..
कई दिन हो गए सल्फ़ास खा कर मरने वाली को.
मगर उसकी हथेली पर अभी शहनाई लिक्खा है..
हमारे मुल्क में इन्सान अब घर में नहीं रहते।
कहीं हिन्दू कहीं मुस्लिम कहीं ईसाई लिक्खा है..
यह दुख शायद हमारी ज़िन्दगी के साथ जाएगा।
कि जो दिल पर लगा है तीर उसपर भाई लिक्खा है..
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मुनव्वर राणा, एक प्रसिद्ध उर्दू शायर और कवि हैं। वें लखनऊ में रहते हैं। आपकी माँ, ग़ज़ल गाँव, पीपल छाँव, बदन सराय, नीम के फूल, सब उसके लिए, घर अकेला हो गया, कहो ज़िल्ले इलाही से, बग़ैर नक़्शे का मकान आदि प्रकाशित कृतियाँ है। आपको ग़ालिब अवार्ड 2005, उदयपुर ,डॉ. जाकिर हुसैन अवार्ड 2005, नई दिल्ली, सरस्वती समाज अवार्ड 2004 आदि पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है।
सौजन्य – हिंदी विकिपीडिया