कृष्ण कृष्ण धुन बजी रे मन में

कृष्ण कृष्ण धुन बजी रे मन में


कृष्ण कृष्ण धुन बजी रे मन में।
राम रतन धुन सजी रे तन में।

पांच प्रकार की माटी सानी।
जन्म दियो मोहे दिलबर जानी।

कृष्ण
कृष्ण

पड़ कर इस माया के चक्कर।
काली कर ली चुनरी धानी।
कैसे ओढ़ लूं अब इस तन में
कृष्ण कृष्ण धुन बजी रे मन में।
राम रतन धुन सजी रे तन में।

बीती उमर मौत मंडराई।
शिथिल अंग आंखे पथराई।
आखिरी समय राम नही निकला।
सारी उमर व्यर्थ गवाईं।
हंसा चला जान नहीं तन में
कृष्ण कृष्ण धुन बजी रे मन में।
राम रतन धुन सजी रे तन में।

काम क्रोध मद लोभ का साया।
अहंकार ने पैर जमाया।
मानवता को भूल के ये मन।
करता फिरे जनम को जाया।
प्रभु को धारण करले मन में
कृष्ण कृष्ण धुन बजी रे मन में।
राम रतन धुन सजी रे तन में।

रिश्ते नाते सब है झूठे।
कृष्ण कभी न हमसे रूठे।
राम से रिश्ता सच्चा करले।
चाहे सारे रिश्ते टूटे।
कृष्ण बसा ले अब जीवन में
कृष्ण कृष्ण धुन बजी रे मन में।
राम रतन धुन सजी रे तन में।

कृष्ण बिना ये जीवन सूना।
भक्ति बिना सब लगता ऊना।
दरस दिखाओ अब तो गिरधर।
ये मन चाहे तुमको छूना।
लगन मिलन की लगी है मन में
कृष्ण कृष्ण धुन बजी रे मन में।
राम रतन धुन सजी रे तन में।

– सुशील शर्मा

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