कोयल पर निबंध

कोयल पर निबंध 
Essay on Cuckoo in Hindi

कोयल पर निबंध Essay on Cuckoo in Hindi हिंदी कोयल का भोजन koyal par nibandh hindi mein कोयल पक्षी पर जानकारी कोयल क्या खाती है कोयल cuculus कोयल के बारे में निबंध कोयल का रहने का स्थान कौआ और कोयल कोयल की आवाज – कोयल पक्षी जाति का एक उपयोगी एक जीव है .यह रूप रंग में कौवे से मिलती – जुलती होती है .यह आकार में कौवे से कुछ मोटी होती है .इसका रंग कौवे से कुछ अधिक काला होता है .यह अपनी मीठी बोली के लिए प्रसिद्द है .बसंत ऋतू में यह दृष्टिगोचर होती है ,ऐसा माना जाता है .यह कुहू – कुहू करके गाती है . 

आकार प्रकार –

कोयल
कोयल 

कोयल की बोली जितनी मीठी होती है ,इतनी यह रूप रंग में सुन्दर नहीं होती है .पुरुष और स्त्री कोयल के आकार में अंतर होता है .पुरुष कोयल का रंग अधिक काला होता है .इसकी आँखें लाल होती है और गर्दन पर रोये होते हैं .पुरुष कोयल की बोली स्त्री कोयल की अपेक्षा अधिक मीठी होती है . 


प्राप्ति स्थान /कोयल का रहने का स्थान – 

कोयल की प्रधानता भारतवर्ष में ही अधिक है .यह संसार के अन्य देशों में भी पायी जाती है .वर्ष की पाँच ऋतुओं में यह कम दिखाई पड़ती है किन्तु छठी बसंत की यह प्रेयसी या सहचरी ही मानी जाती है . 

कोयल का स्वभाव – 

कोयल सीधी – सादी और भोली चिड़िया है .यह कौवे की तरह शरारती नहीं होती है .यह बहुत लज्जाशील भी होती है .इसीलिए यह पेड़ की शाखाओं और पत्तों की आड़ में बैठती है .वह से जब यह कुहू – कुहू करके अमृत जैसे मीठे स्वर की वर्षा करने लगती है तब एक बार सबका मन अपनी ओर आकर्षित कर लेती है . 
कौवे और कोयल में बड़ी दुश्मनी होती है .कोयल कौवे को बड़ी आसानी से धोखा देती है . चैत – बैशाख में यह अंडे देती है .यह कौवे की अनुपथिति में उसी के घोसले में अंडा देती है और बच्चे कौवे के अंडे और बच्चों से मिलते – जुलते होते हैं .इसीलिए यह कौवे से ही उनका पालन -पोषण करवाती है .बच्चे जब बड़े होते हैं ,तब कौवे के घोसले से उड़कर चले जाते हैं . बसंत ऋतू और आम के पेड़ या बाग़ इसे अधिक प्रिय है यह एक ही डाली पर देर तक नहीं बैठती है .

कोयल से शिक्षा – 

साहित्य में कोयल को महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है .प्राय : सभी साहित्यों में कोयल पर कवियों ने सुन्दर कवितायें लिखी है .जिन स्त्रियों का स्वर मीठा होता है ,उन्हें कोयल की उपमा देकर कोकिल कहा जाता है .कोयल के काले कलूटे शरीर में अमृत जैसा मीठा स्वर भरा होता है .इससे हमें शिक्षा ग्रहण करनी चाहिए .कोयल मीठी बोली वियोगियों को कष्ट भी देती है .विरही का दुःख इसकी बोली सुनकर और भी बढ़ जाता है .किन्तु इसमें कोयल का तो तो दोष नहीं है .
कोयल से हमें मीठी बोली बोलने की शिक्षा लेनी चाहिए .संसार में गुण की ही पूजा होती है ,रंग और रूप की नहीं .कौवा इसी स्वरुप का होते हुए भी अपनी कड़ी बोली के कारण अप्रिय होता है .इससे हमें कोयल का आदर्श अपनाना चाहिए ,न की रूप और रंग में लीन रहना चाहिए ,अपने गुणों पर ध्यान देना चाहिए . 

You May Also Like