प्रगतिवाद की विशेषताएं प्रवृत्तियाँ

प्रगतिवाद की विशेषताएं प्रवृत्तियाँ
Pragativad Ki Visheshta

प्रगतिवाद की परिभाषा प्रगतिवाद की प्रमुख प्रवृत्तियाँ pragativad ki visheshta pragativad ki paribhasha prayogvad ki visheshta pragativad ka parichay pragativad in hindi literature nayi kavita ki visheshta pragativadi kavita ki vichardhara pragativad kya hai pragativadi yug in hindi प्रगतिवाद छायावाद की विशेषताएँ प्रगतिवाद के प्रवर्तक प्रगतिवाद का अर्थ प्रगतिवादी युग की विशेषता प्रगतिवाद का अर्थ प्रगतिवाद की परिभाषा प्रगतिवाद के प्रवर्तक प्रगतिवाद का परिचय प्रगतिवाद की विशेषताएं प्रगतिवाद के प्रमुख कवि प्रगतिवाद की प्रमुख प्रवृत्तियाँ – जो विचारधारा राजनितिक क्षेत्र में समाजवाद और दर्शन में द्वान्द्त्मक भौतिकवाद है ,वही साहित्यिक क्षेत्र में प्रगतिवाद के नाम से अभिहित की जाती है . मार्क्सवादी या साम्यवादी दृष्टिकोण के अनुसार निर्मित काव्यधारा प्रगतिवाद है .१९३६ का वर्ष हिंदी साहित्य के इतिहास में एक अत्यंत महत्वपूर्ण वर्ष है .इस समय छायावाद जहाँ एक ओर अपने पूर्ण उत्कर्ष पर दिखाई पड़ता है ,वहाँ साथ – साथ उसमें हासर भी दिखाई देता है .व्यक्तिवाद की जो व्यापक चेतना ,लोक संग्रह ,आशा और उल्लास का जो स्वर प्रसाद ,महादेवी ,निराला और पन्त में मिलता है ,नए कवियों में उसका प्राय: लोप सा हो गया है . उत्तर छायावाद युग में अनेक कवि प्रगतिवाद के जीवन आदर्श से प्रेरित हुए .इसमें प्रमुख हैं – नरेंद्र शर्मा ,शिवमंगल सिंह सुमन ,केदारनाथ अग्रवाल ,नागार्जुन ,रांगेय राघव.प्रगतिवाद के तरुण कवि हैं – शम्भुनाथ सिंह ,गिरिजाकुमार माथुर , भारतभूषण अग्रवाल ,गोपालदास नीरज ,रामविलास शर्मा .
प्रगतिवादी काव्यधारा की प्रमुख विशेषताओं व प्रवृत्तियों का वर्णन निम्नलिखित है –

१. रूढ़ि – विरोध – 

प्रगतिवादी साहित्यकार ईश्वर को सृष्टि का कर्ता न मानकर जागतिक द्वन्द को सृष्टि का विकास का कारण स्वीकार करता है .उसे ईश्वर की सत्ता ,आत्मा ,परलोक ,भाग्यवाद ,धर्म ,स्वर्ग ,नरक आदि पर विश्वास नहीं है .उसकी दृष्टि में मानव की महत्ता सर्वोपरि है .उसके लिए धर्म एक अफीम का नशा है और प्रारब्ध एक सुन्दर प्रवंचना है .उसके लिए मंदिर ,मस्जिद ,गीता और कुरान आज महत्व नहीं रखते हैं .प्रगतिवादी कवि का कहना है कि – 
किसी को आर्य ,अनार्य ,
किसी को यवन ,
किसी को हूण -यहूदी – द्रविड 
किसी को शीश 
किसी को चरण 
मनुज को मनुज न कहना आह ! 

२.क्रांति का स्वर – 

प्रगतिवादी कवि क्रांति में विश्वास रखते हैं .वे पूंजीवादी व्यवस्था ,रुढ़ियों तथा शोषण के साम्राज्य को समूल नष्ट करने के लिए विद्रोह का स्वर निकालते हैं –
नवीन – 
कवि कुछ ऐसी तान सुनाओ जिससे उथल-पुथल मच जाये,
एक हिलोर इधर से आये, एक हिलोर उधर से आये,
प्राणों के लाले पड़ जायें त्राहि-त्राहि स्वर नभ में छाये,
नाश और सत्यानाशों का धुआँधार जग में छा जाये,.”

३. मानवतावाद का स्वर – 

ये कवि मानवता की शक्ति में विश्वास रखते हैं .प्रगतिवादी कवि कविताओं के माध्यम से मानवतावादी स्वर बिखेरता है .वह जाति – पाति ,वर्ग भेद ,अर्थ भेद से मानव को मुक्त करके एक मंच पर देखना चाहते हैं . 

४. नारी भावना –

 प्रगतिवादी कवियों का विश्वास है कि मजदूर और किसान की तरह साम्राज्यवादी समाज में नारी भी शोषित है .वह पुरुष की दास्ताजन्य लौह बंधनों में बंद है .वह आज अपना स्वरुप खोकर वासना पूर्ति का उपकरण रह गयी है .अतः कवि कहता है – 
मुक्त करो नारी को मानव चिर वन्दिनी नारी को।
युग-युग की निर्मम कारा से जननी सखि प्यारी को। 

५. धरती पर ही स्वर्ग बनाना – 

प्रगतिवादी कवि आशावादी है .वे जीवन से निराश नहीं होते हैं .उन्हें कल्पना और सपना पर विश्वास नहीं ,बल्कि इसी धरती को ही वे स्वर्ग के रूप में बदलना चाहते हैं .इस धरती से विषमता दूर हो जाए और मानवता का प्रसार हो जाए तो सचमुच यह धरती ही स्वर्ग से भी महान बन जायेगी .अतः कवि इस जीवन में विश्वास करते हैं और इसे ही श्रेष्ठ बनाना चाहते हैं . 

६. कला पक्ष – 

प्रगतिवाद जन आन्दोलन के रूप में उभरा था ,इसीलिए इन कवियों ने अपनी भाषा को बहुत सरल और जन – भाषा के नजदीक रखा . अलंकारों के रूप में ए सामन्तवादी प्रवृत्ति का घोतक मानते हैं ,इसीलिए इन्होने उनके स्थान पर जनजीवन के लिए सहज उपमानों और प्रतीकों का प्रयोग किया है .छंदों का भी तिरस्कार करके मुक्त छंद का सहारा लिया है . 

७. सामाजिक जीवन का यथार्थ चित्रण – 

प्रगतिवादी कविता की मुख्य विशेषता शब्दों के माध्यम से ध्वनि देना और अपनी जमीन से जुड़कर यथार्थ का चित्रण करना है .इनमें समाज के यथार्थ चित्रण की प्रवृत्ति मिलती है .कविवर पन्त भारतीय ग्राम का चित्रण करते हुए लिखते हैं – 
यहाँ खर्व नर (बानर?) रहते युग युग से अभिशापित, 
अन्न वस्त्र पीड़ित असभ्य, निर्बुद्धि, पंक में पालित।
यह तो मानव लोक नहीं रे, यह है नरक अपरिचित, 
यह भारत का ग्राम,-सभ्यता, संस्कृति से निर्वासित। 
झाड़ फूँस के विवर,–यही क्या जीवन शिल्पी के घर? 
कीड़ों-से रेंगते कौन ये? बुद्धिप्राण नारी नर? 
अकथनीय क्षुद्रता, विवशता भरी यहाँ के जग में, 
गृह- गृह में है कलह, खेत में कलह, कलह है मग में!

८. समसामयिक राष्ट्रीयता और अंतर्राष्ट्रीय चित्रण – 

प्रगतिवादी कवियों में देश – विदेश में उत्पन्न समसामयिक समस्यों और घटनाओं की अनदेखी करने की दृष्टि नहीं है . साम्प्रदायिक समस्यों – भारत पाक विभाजन ,कश्मीर समस्या ,बंगाल का अकाल ,बाढ़ ,अकाल ,बेकारी ,चरित्रहीनता आदि का इन कवियों ने बड़े पैमाने पर चित्रण किया है .नागार्जुन ने कागजी आजादी पर लिखा है – 
” कागज की आजादी मिलती ,ले लो दो – दो आने में “

निष्कर्ष – 

प्रगतिवादी कवियों ने अपनी कविता के माध्यम से एक राजनितिक वाद विशेष साम्यवाद का प्रचार किया ,व्यक्तिवाद के स्थान पर जनवाद की स्थापना की ,जनता को सुख – दुःख की वाणी दी तथा शोषितों – पीड़ितों की उन्नति के लिए जोरदार समर्थन किया . 

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