वो पुष्प पारिजात के

वो पुष्प पारिजात के 


तूने ये हरसिंगार हिलाकर बुरा किया
पांवों की सब जमीन को फूलों से ढंक लिया ” 
आज “दुष्यंत जी की ये पंक्तियाँ पढी तो चंद पलों में आँखों में बसे ढेर सारे हसीन पल सजीव हो उठे ,वो यादों में खिला हारश्रृंगार,,”वो हारश्रॄंगार के फ़ूलॊ से लदी हुई महकती सुबह और बचपन के दोस्त, सब याद आ गये एक पल में ही…!
जो यादों के झरोखे खुले तो हारसिंगार” की मोहक खुशबू मन तक पहुँच गयी !!
हरिसिंगार
हरिसिंगार
हरिसिंगार जैसा की नाम से ही स्पष्ट होता है इन फूलों से ‘हरि ‘ अर्थात भगवान कृष्ण का श्रृंगार किया जाता है कहते हैं यें “कृष्ण”को विशेष प्रिय है इन्हे ही पारिजात कहा जाता है इसकी अनुपम सुगंध होती है । ये रात में खिलते है और सुबह स्वतः ही गिर जाते है! ये अक्टूबर-नवम्बर में खिलते है ! 
खैर..
वो नवम्बर की सुहानी सुबह थी जब मुझे मालिन के बच्चों के साथ हारसिँगार के पेड़ देखने बगीचे में जाने का मौका मिला था! मैं बहुत खुश थी आज जंगल को करीव से देखने का मौका जो मिल रहा था। आज ढेर सारे फूल जो देखने को मिलेंगे यही सोच रही थी ।
मै फूलों से लदे पेड़ों को देखना चाहती थी ।
मालिन का बड़ा लड़का ही अक्सर फूल चुनकर लाता ,माला बनाता ,और घर-घर फूल पहुँचाता था।यूं तो हमारे घर पर भी कई तरह के फूल थे पर उनके पास बहुत सारे रंगो के फूल थे इसलिये हम उनसे भी फूल लेते थे ।मैं हमेसा उन्हे परेशान करती रहती थी! भईया !ये हमारे वाले फूल बासी तो नही ? आपने डाली से ही तोड़े थे ना ! कहीं गंदी जमीन से तो नही बीने ?
कौन से फूल का क्या नाम है ?
ये फूल पेड़,पौधे,बेल किस पर खिलता है ?
किस मौसम में खिलता है?
ढेर सारे सवाल और वो बताते जाते ! खैर उस दिन मुझे बगीचे में जाना था तो सारे सवाल एक किनारे कर दिये और जल्दी से एक टोकरी लेकर उनके साथ जाने के लिये तैयार हो गयी !वो तीन और मै हम चारो बहुत सुबह बगीचे में पहुंच गये! फूलों की बारिश देखने के चक्कर में हम कुछ ज्यादा ही जल्दी आ गये थे। चारो ओर धुंधलका छाया था । वहाँ जाकर देखा तो नारंगी डंडी वाले सफ़ेद फूलों से ढके हुए पेड़ ऐसे लग रहे थे मानो किसी ने हरी चूनर में सफेद और नारंगी सितारे टाँग दिये हो,साथ ही दूर तक फैली भीनी सुगंध मन मोह रही थी ! मैने पहली बार ‘हारसिंगार’ के पेड़ देखे थे जो कि फूलों से लदे बड़े ही प्यारे लग रहे थे!
नानी भी बताती थी कि हारसिंगार के फूल सुबह खुद ही गिर जाते हैं ,मैं फूलों की बारिश देखना चाहती थी। मेरे घर तो फूलों के पौधे थे मैं देखना चाहती थी कि जब किसी ऊंचे पेड़ से फूल गिरते हैं तो वो बारिश कैसी लगती है।
सूरज की पहली किरण के साथ ही हारसिँगार की बुंदाबांदी शुरू हो गयी इक्का दुक्का टपकते फूलों को मैं और ललिता (मालिन की बेटी) टोकरी में लपकने की कोशिश कर ही रहे थे कि तभी 
ललिता के भाई ने पेड़ पर चढ़कर हारसिँगार की टहनियों को जोरों से हिला दिया और फूलों की झमाझम बारिश होने लगी मै दोनो हाथ फैलायें फूलों की बारिश में सुध बुध खोये खड़ी थी बिल्कुल पहली बारिश की तरह ” ” टहनियाँ हिलाने से कृतिम बरसात हो रही थी पत्तों पर जमी ओस की बूंदे और ओस में भीगे फूल झरने लगे ,हमारे आस -पास की सारी जमीन फूलों से ढक चुकी थी ।पैर फूलों में डूबे हुऐ थे और मन खुशबू में . ….,,
इतने सारे फूलों को इस तरह बरसते हुऐ पहली बार देखा था ‘बड़ी प्यारी सुबह थी वो जो अभी तक याद है ।पेड़ के नीचे चारो और सफ़ेद फूलों की चादर बिछ गयी जो बड़ी प्यारी लग रही थी । नन्हे प्यारे ओस में भीगे फूल बालों और कपड़ो में जहाँ -तहां फँस गये थे मेरी नन्ही टोकरी भर गई थी सो बाकी ढेर सारे फूल उन दोनों ने अपनी -अपनी टोकरी में भर लिये ,काफी देर हो चुकी थी घर से जितना समय मिला उससे कही ज्यादा खर्च कर चुके थे सो घर जाने की जल्दी में हम यूँ ही घर चल दिये ” कुछ महके -बहके से….! 
वो माली के बच्चे थे यूँ फूल इकट्ठे करना उनका रोज़ का काम था पर मेरे लिये ये अनुभूति पहली थी और शायद आखिरी भी…..!!
_ _ _” मै तो इक नन्ही सी टोकरी लेकर गयी थी हरि के श्रृंगार के लिये हारसिँगार लेने पर… 
उसने हारसिँगार को हिलाकर न सिर्फ टोकरी को लबालब भर दिया बल्कि मन भी आज तक भरा हुआ है उस अद्वितीय अहसास से जिसे व्यक्त करने के लिये मेरे पास शब्द कम पड़ रहे है ‘ ‘ ! 
माना उसने “पांवों की सब ज़मीन को फूलों से ढक लिया “””””
लेकिन मै तो फ़िर भी ये नही कहूंगी कि

” तूने ये हरसिँगार हिलाकर बुरा किया… 
– मीनाक्षी वशिष्ठ

You May Also Like