एक सूर्यास्त का ब्योरा

एक सूर्यास्त का ब्योरा

सड़क के अँधेरे आईने में अंतिम ट्राम ग़ायब हो रही थी । ऊपर बिजली के तारों का जाल था जिसमें से कभी-कभी तिड़कने की आवाज़ के साथ चिंगारियाँ निकलती थीं । दूर से वे किसी नीले सितारे जैसी लगती थीं ।
“ पैदल चलना ही ठीक होगा , हालाँकि तुम पिए हुए हो , मार्क । नशे में धुत्त हो … । “
चिंगारियाँ बुझ गई थीं । मकानों की छतें चाँदनी में चमक रही थीं । उनके चाँदी जैसे तीखे किनारे तिरछी काली दरारों में गुँथे हुए थे ।
इस अंधकारमय आईने जैसी सड़क पर वह लड़खड़ाता हुआ घर की ओर चला जा रहा था । मार्क स्टैंडफ़स्स एक दुकान में विक्रेता का काम करता था । श्वेत बालों वाला मार्क किसी अर्ध-देवता जैसा लगता था । वह क़िस्मत वाला व्यक्ति था जिसकी क़मीज़ के कॉलर पर कलफ़ लगा होता था । उसकी गर्दन के पीछे कॉलर की सफ़ेद रेखा के ऊपर उसके बालों का अंत एक हास्यजनक लटकन के रूप में होता था जो नाई की कैंची से बची हुई थी । बालों की इसी लटकन की वजह से क्लारा उससे प्यार करने लगी थी और उसने क़सम खाई थी कि मार्क के प्रति उसका प्यार सच्चा था । उसने यह भी कहा था कि वह उस बरबाद हो गए रूपवान विदेशी नवयुवक को अब भूल चुकी थी जिसने पिछले साल उसकी माँ से एक कमरा किराए पर लिया था ।
“ और फिर भी तुम नशे में धुत्त हो , मार्क … । “
उस शाम मार्क और भूरे-लाल बालों तथा पीले चेहरे वाली क्लारा के सम्मान में मित्रों ने एक पार्टी का आयोजन किया था जहाँ बीयर और संगीत का बंदोबस्त भी किया गया था । एक हफ़्ते बाद उनकी शादी होनी तय हो गई थी । इसके बाद जीवन भर का परमानंद और शांति थी । फिर वे दोनों अपनी रातें भी एक साथ बिताया करेंगे जब क्लारा के भूरे-लाल बालों की चमक पूरे तकिये पर फैली होगी । सुबह उसकी खनकती हँसी , उसके हरे परिधान और उसकी अनावृत ठंडी बाँहों का साथ होगा ।
चौक के बीचोबीच एक अस्थाई , चौकोर झोंपड़ी-सी बनी हुई थी । ट्राम की पटरियों की मरम्मत का काम चल रहा था । उसे याद आया कि आज कैसे उसने क्लारा की पोशाक की छोटी आस्तीन में अपना मुँह घुसा कर उसकी बाज़ू पर बने हृदय को छू लेने वाले चेचक के टीके के निशान को चूम लिया था । और अब वह घर की ओर जा रहा था । बहुत ज़्यादा ख़ुशी और बहुत ज़्यादा पी लेने की वजह से उसकी चाल अस्थिर थी । वह अपने हाथ में पकड़ी हुई पतली छड़ी को घुमाता हुआ चला जा रहा था । ख़ाली सड़क के दूसरी ओर स्थित अँधेरे मकानों से टकरा कर उसके क़दमों की आवाज़ रात में गूँज रही थी । पर सड़क के नुक्कड़ पर पहुँचने पर उसके क़दमों की प्रतिध्वनि आनी बंद हो गई । उस जगह हमेशा की तरह टोपी और पेटबंद पहने वही आदमी गाय और सुअर के मांस से बना सामिष आहार बेच रहा था । वह माँस भूनने की अपनी ग्रिल के बग़ल में खड़ा हो कर किसी उदास चिड़िया की कोमल आवाज़ में ग्राहकों को अपने पास बुला रहा था ।
मार्क ने उस सामिष आहार और चाँद और तारों के जाल में कभी-कभी जल कर बुझ जाती नीली चिंगारियों के लिए एक सुखद करुणा महसूस की । अपनी तनी देह को अनुकूल बाड़ का सहारा देते हुए उसे हँसी आ गई और झुकते हुए उसने तख़्ते के बीच बने एक छोटे-से गोल छेद में अपनी साँस बाहर छोड़ते हुए ये शब्द कहे , “ क्लारा , क्लारा , ओ मेरी प्रिये ! “
बाड़ के दूसरी ओर मकानों के बीच की ख़ाली जगह में एक आयताकार भूखंड था । कई बंद-गाड़ियाँ वहाँ

व्लैदिमिर नैबोकोव
व्लैदिमिर नैबोकोव

विशाल ताबूतों की तरह खड़ी थीं । उनमें इतना सामान भरा हुआ था कि वे फूली हुई लग रही

थीं । ईश्वर ही जानता था कि उनमें क्या-क्या भरा हुआ था । सम्भवत: बलूत की लकड़ी से बने संदूक , लोहे की मकड़ियों जैसे दीपाधार और बड़े पलंग का भारी ढाँचा । चाँद उन बंद-गाड़ियों पर जैसे अपनी निष्ठुर कोप-दृष्टि डाल रहा था । भूखंड के बाईं ओर एक ख़ाली पिछली दीवार पर हृदय के आकार की विशाल काली परछाइयाँ नज़र आ रही थीं । दरअसल वे आवर्धक परछाइयाँ पटरी के किनारे लगे बिजली के खंभों के पास उगे एक पेड़ की पत्तियों की अतिरंजित छाया थी ।
जब वह अपने फ़्लैट के मंजिल की अँधेरी सीढ़ियाँ चढ़ा , मार्क तब भी मुँह बंद करके हँस रहा था । वह सबसे ऊपर वाली सीढ़ी पर पहुँचा पर ग़लती से उसने अपना पाँव फिर ऊपर उठा दिया जिससे उसका पाँव भद्दे ढंग से धड़ाम् से नीचे आया । जब वह अँधेरे में दरवाज़े में चाबी डालने वाले छेद को टटोल रहा था , उसकी बाँस की छड़ी उसकी बग़ल में से फिसलकर एक आवाज़ के साथ सीढ़ियों पर से नीचे सरक गई । मार्क साँस रोककर खड़ा हो गया । उसे लगा कि नीचे फिसलती हुई छड़ी घुमावदार सीढ़ियों के साथ घूम कर सबसे निचली सीढ़ी तक पहुँच जाएगी । लेकिन लकड़ी के सीढ़ियों से टकराने की तेज़ आवाज़ बीच में ही बंद हो
गई । छड़ी ज़रूर कहीं अटक कर रुक गई होगी । राहत महसूस करते हुए वह दाँत निकाल कर मुस्कुराया और जंगले को पकड़ कर वह सीढ़ियों से धीरे-धीरे नीचे उतरने लगा । उसके खोखले सिर में पिए हुए बीयर का संगीत बज रहा था । सीढ़ियाँ उतरते हुए वह लगभग गिर ही गया था और वह किसी तरह धप्प् से एक सीढ़ी पर बैठ गया जबकि उसके हाथ अँधेरे में कुछ टटोलते रहे ।
ऊपर वाली मंजिल के फ़्लैट का दरवाज़ा खुला । आधे कपड़े पहने , मिट्टी के तेल का चिराग़ अपने हाथ में पकड़े , पलकें झपकाती हुई फ़्राऊ स्टैंडफ़स्स बाहर आई । उस रोशनी में उसके बाल धुँधले लग रहे
थे । उसने आवाज़ लगाई , “ क्या वह तुम हो , मार्क ? “
एक पीली फानाकार रोशनी जंगले , सीढ़ियों और उसकी छड़ी पर पड़ रही थी । हाँफ़ता हुआ किंतु प्रसन्न मार्क दोबारा सीढ़ियाँ चढ़ कर ऊपरी मंजिल पर पहुँच गया । उसकी काली , कुबड़ी परछाईं दीवार पर उसके पीछे-पीछे चलती रही ।
तब कम रोशनी वाले उस कमरे में , जिसे एक लाल परदे ने दो हिस्सों में बाँट रखा था , उन दोनों में यह बातचीत हुई :
“ मार्क , तुम नशे में धुत्त लग रहे हो । “
“ नहीं , नहीं , माँ … मैं बेहद ख़ुश हूँ … । “
“ तुम्हारे कपड़े गंदे हो गए हैं , मार्क । तुम्हारे हाथ पर कालिख लगी है … । “
“ मैं बेहद ख़ुश हूँ … अहा , यह सुखद लग रहा है … पानी अच्छा और ठंडा है । थोड़ा पानी मेरे सिर पर डालो … और पानी डालो … सबने मुझे बधाई दी , और इसके लिए उनके पास सही कारण था … मेरे सिर पर थोड़ा पानी और डालो । “
“ लेकिन वे कहते हैं कि कुछ समय पहले वह किसी और से प्यार करती थी — साहसिक कार्य करने वाले किसी विदेशी से । वह फ़्राऊ हेइसे को पाँच मार्क का बक़ाया किराया दिए बिना ही वहाँ से चला गया था … । “
“ बस , बस ! तुम कुछ नहीं समझती हो … आज पार्टी में हम सबने कितने गीत गाए … देखो , मेरा एक बटन टूट गया है … मुझे लगता है , जब मेरी शादी हो जाएगी तो वे मेरा वेतन दुगुना कर देंगे । “
“ चलो , सोने के लिए बिस्तर पर चलो … तुम सिर से पाँव तक गंदे लग रहे हो , और तुम्हारी नई पतलून भी गंदी हो गई है । “
उस रात मार्क को एक दु:स्वप्न आया । उसने दु:स्वप्न में अपने स्वर्गीय पिता को देखा । उसके पिता उसके पास आए । उनके पसीने से भरे पीले चेहरे पर एक अजीब मुस्कान थी । उन्होंने मार्क को बाँहों के नीचे से पकड़ लिया और चुपचाप उसे गुदगुदी करने लगे — बिना रुके , लगातार और हिंसात्मक ढंग से ।
उसे वह सपना तब याद आया जब वह सामान बेचने वाली उस दुकान पर पहुँचा जहाँ वह काम करता था । और उसे वह सपना इसलिए भी याद आया क्योंकि उसके एक मित्र हँसमुख ऐडोल्फ़ ने उसकी पसलियों में उँगली से गुदगुदी की । एक पल के लिए उसकी आत्मा में जैसे कोई झरोखा खुल गया जो पल भर के लिए हैरानी के साथ स्थिर हो कर जम गया , और फिर जैसे वह झरोखा फटाक्-से बंद हो गया । फिर सब कुछ दोबारा सहज और निर्मल हो गया , और वे टाइयाँ जिन्हें वह अपने ग्राहकों को बेचता था , उसकी प्रसन्नता से हमदर्दी रखते हुए मुस्कुराने लगीं । वह जानता था कि उस शाम वह क्लारा से मिलेगा । वह केवल रात का खाना खाने के लिए अपने घर आएगा , और इसके बाद वह क्लारा से मिलने के लिए सीधे उसके घर चला जाएगा … उस दिन जब वह क्लारा को बता रहा था कि शादी के बाद वे दोनों कितने आराम से और प्रेममय तरीक़े से रहेंगे , तो वह फूट-फूट कर रोने लगी थी । हालाँकि मार्क समझ गया था कि ये तो प्रसन्नता के आँसू थे ( जैसा कि क्लारा ने स्वयं बताया ) । वह कमरे में तेज़ी से घूमने लगी थी । और उसकी पोशाक किसी हरे पाल की तरह लग रही थी । फिर वह आईने के सामने तेज़ी से अपने उन चमकदार बालों को सीधा करने लगी जो ख़ूबानी के मुरब्बे के रंग के थे । और उसका चेहरा पीला और बदहवास-सा था । ज़ाहिर है , वह भी प्रसन्नता की वजह से होगा । आख़िर यह सब कितना सहज-स्वाभाविक था …।
“ धारी वाली ? हाँ , ज़रूर । “
उसने अपने हाथ पर ही टाई की गाँठ बनाई और उसे इधर-उधर हिला-डुला कर जाँचा । यह उसका ग्राहक को लुभाने का तरीक़ा था । उसने दक्षता से गत्ते के चौरस डब्बों को खोला … ।
इस बीच उसकी माँ से मिलने कोई अतिथि आया — वह फ़्राऊ हेइसे थी । वह बिना किसी पूर्व-सूचना के आई थी और उसकी आँखों में आँसू भरे हुए थे । बहुत सावधानी से वह एक तिपाई पर बैठ गई जैसे वह टूट कर टुकड़े-टुकड़े होने से डर रही हो । साफ़-सुथरी रसोई में फ़्राऊ स्टैंडफ़स्स बर्तन धो रही थी । लकड़ी का एक द्वि-आयामी सूअर दीवार पर टँगा हुआ था और स्टोव पर एक आधी खुली माचिस और एक जली हुई तीली पड़ी हुई थी ।
“ मैं आपके पास एक बुरी ख़बर ले कर आई हूँ , फ़्राऊ स्टैंडफ़स्स । “ यह सुनकर दूसरी महिला अपनी जगह पर जड़ हो गई । उसके हाथ में एक तश्तरी थी जिसे वह अपनी छाती से लगाए हुए थी ।
“ यह ख़बर क्लारा के बारे में है । वह पागल हो गई है । मेरा पिछला किराएदार आज वापस आ गया — आप जानती हैं न , वही जिसके बारे में मैंने आपको बताया था । और क्लारा अपने होशो–हवास खो बैठी है । हाँ , यह सब आज सुबह ही हुआ …वह अब आपके बेटे की शक्ल कभी नहीं देखना चाहती … आपने उसे नई पोशाक सिलवाने के लिए कपड़ा दिया था ; वह कपड़ा आपको लौटा दिया जाएगा । और यह पत्र मार्क के नाम है । क्लारा पागल हो गई है । मुझे समझ नहीं आ रहा , यह क्या हो रहा है … । “
दूसरी ओर मार्क दुकान का काम निपटा चुका था और अब अपने घर की ओर निकलना चाह रहा था । उसका मित्र ऐडोल्फ़ उसे घर तक छोड़ने उसके साथ आने वाला था । वे दोनों रुके , उन्होंने एक-दूसरे से हाथ मिलाया और मार्क ने अपने कंधे से दुकान के दरवाज़े को धकेला जो एक ठंडे ख़ालीपन की ओर खुल गया ।
“ घर क्यों जाएँ ? छोड़ो उसे । चलो तुम और मैं कहीं चल कर कुछ खाते-पीते हैं , “ ऐडोल्फ़ अपनी छड़ी के सहारे टिक कर ऐसे खड़ा था जैसे वह कोई पूँछ हो । “ चलो चलें , मार्क … । “
मार्क ने अपने गालों को धीरे से रगड़ा और फिर हँसा । “ ठीक है , लेकिन बिल के पैसे मैं अदा करूँगा । “
आधे घंटे बाद जब वह शराबख़ाने से निकला और उसने अपने मित्र को विदा किया तो नहर का पूरा दृश्य आग्नेय सूर्यास्त की लाली से भरा हुआ था । दूर दिख रहे बारिश से भीगे हुए पुल का किनारा सुनहरा लग रहा था जिस पर से छोटी-छोटी काली आकृतियाँ गुज़र रही थीं ।
उसने अपनी घड़ी पर निगाह डाली और बिना अपनी माँ से मिले सीधे अपनी प्रेमिका के घर जाने का फ़ैसला किया । उसकी प्रसन्नता और शाम की निर्मल स्वच्छता की वजह से उसका माथा थोड़ा चकरा रहा था । किसी कार से बाहर कूद रहे किसी बाँके युवक के रोगन किए जूते से ताँबे का एक चमकीला तीर टकराया ।
गड्ढे अब तक नहीं सूखे थे । वे चारों ओर से गीले अँधेरे से घिरे हुए ( डामर की सजीव आँखों जैसे ) लग रहे थे । शाम की मुलायम उद्दीप्ति उनमें प्रतिबिंबित हो रही थी । सारे मकान हमेशा की तरह धूसर लग रहे थे । लेकिन उनकी छतें , ऊपरी मंज़िलों के ऊपरी साँचे , क़लई लगे बिजली के खंभे , पत्थर के गुम्बद और लघु-स्तंभ — ये सब अभी चटख़ गेरुआ रंग में रंगे हुए थे । दिन में तो किसी को भी इनके होने का अहसास नहीं होता क्योंकि अधिकांश लोग ऊपर देखते ही नहीं । सूर्यास्त की वायवीय ऊष्मा में ये सब अप्रत्याशित और जादुई लग रहे थे — ये बाहर निकले हिस्से , छज्जे , कँगनियाँ और छजलियाँ तथा खंभे अपने चमकदार गहरे पीले रंग की वजह से एक-दूसरे से अलग दिख रहे थे , जबकि हल्के भूरे अग्र-भाग उनके नीचे मौजूद थे ।
अहा ! मैं कितना ख़ुश हूँ — मार्क सोचता रहा । जैसे मेरे चारों ओर मौजूद हर चीज़ मेरी ख़ुशी का जश्न मना रही है ।
ट्राम में बैठते हुए उसने एक प्यार भरी , कोमल निगाह अपने सहयात्रियों पर डाली । मार्क के चेहरे पर यौवन की लाली थी । उसकी ठोड़ी पर गुलाबी मुँहासे थे और उसकी प्रदीप्त आँखें प्रसन्नता से भरी थीं । उसकी गर्दन के पीछे गुद्दी के पास बिन कटे बालों की एक लटकन मौजूद थी … क़िस्मत ने शायद उसे बचाए रखा था ।
कुछ ही पलों बाद मैं क्लारा से मिलूँगा । वह मुझे दरवाज़े पर मिलेगी । वह कहेगी कि वह बड़ी मुश्किल से शाम तक उसकी प्रतीक्षा कर पाई ।

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अचानक वह चौंक गया । जिस जगह उसे उतरना था , बस वहाँ से आगे निकल चुकी थी । ट्राम के दरवाज़े तक पहुँचने की जल्दी में वह चिकित्सकीय पत्रिका पढ़ रहे एक मोटे आदमी से टकरा कर गिरते-गिरते बचा । मार्क अपनी टोपी को तिरछा झुकाना चाहता था , पर इस चक्कर में वह लगभग गिर ही गया : ट्राम पहियों के घर्षण की आवाज़ के साथ मुड़ रही थी । अपना संतुलन बनाए रखने के लिए ऐन मौक़े पर उसने ऊपर टँगे एक पट्टे को पकड़ लिया । उस मोटे आदमी ने ग़ुस्से से बड़बड़ाते हुए धीरे-धीरे अपना छोटा-सा पैर पीछे खींच लिया । उसकी धूसर रंग की मूँछें युद्ध-प्रिय ढंग से ऊपर की ओर उठी हुई थीं । मार्क ने उसे अपनी ग़लती स्वीकार कर लेने वाली मुस्कान दी और ट्राम के अगले हिस्से के दरवाज़े पर पहुँच गया । उसने पकड़ कर उतरने वाली वहाँ लगी लोहे की छड़ों को दोनों हाथों से पकड़ लिया । फिर वह आगे की ओर झुका और चलती ट्राम से बाहर छलाँग लगाने के लिए गति का सही अनुमान लगाने लगा । नीचे चिकना और झिलमिलाता डामर तेज़ी से गुज़र रहा था । मार्क ने छलाँग लगा दी । उसे अपने पैरों के तलवों में घर्षण की जलन महसूस हुई और उसके पैर ज़मीन पर पड़ते ही अपने-आप दौड़ने लगे — वहाँ उसके पैरों के पटके जाने की अनैच्छिक गूँज आने लगी । तभी कई अजीब-सी चीज़ें एक साथ हो गईं : मार्क से दूर जाती हुई ट्राम के अगले हिस्से से कंडक्टर की बहुत तेज़ चीख़ सुनाई दी ; चमकदार डामर किसी झूले की सीट की तरह तेज़ी से ऊपर की ओर उठा ; एक गरजते हुए आकार ने मार्क को पीछे से ज़ोरदार टक्कर मारी । उसे लगा जैसे सिर से पैर तक उसकी पूरी देह पर बिजली गिर गई हो , और उसके बाद जैसे कुछ नहीं हुआ । वह चमकदार , चिकने डामर पर अकेला खड़ा था । उसने अपने चारों ओर देखा । कुछ दूरी पर उसे अपनी ही आकृति दिखाई दी । इकहरी पीठ वाला मार्क सेटैंडफस्स सड़क पर तिरछा चला जा रहा था , जैसे कुछ हुआ ही नहीं था । हैरान हो कर वह तेज़ी से चला और एक ही पल में अपनी आकृति के पास पहुँच गया , और अब , जब वह फुटपाथ के पास पहुँच रहा था तो उसकी पूरी देह लगातार कम होती थरथराहट से भर गई ।
वह तो बेवक़ूफ़ाना बात थी । वह बस द्वारा लगभग कुचल ही दिया गया था ।
सड़क चौड़ी और ख़ुशनुमा थी । सूर्यास्त के रंग ने आधे आकाश पर क़ब्ज़ा कर लिया था । मकानों की ऊपरी मंज़िलें और छतें धूप की शानदार रोशनी में नहा रही थीं । वहाँ ऊपर मार्क पारभासी मंडपों , चित्रवल्लरियों और भित्तिचित्रों , नारंगी गुलाबों वाली जालियों , सुनहरे आकाश की ओर उन्मुख पंख लगी मूर्तियों और प्रदीप्त वीणाओं को देख सकता था । जैसे चमकीली लहरों में ये पारलौकिक , आनन्दमय वास्तुशिल्पीय सम्मोहन किसी सुखद दूरी में पीछे लौट रहे थे । मार्क यह नहीं समझ सका कि उसने पहले कभी इन ऊँची लटकी दीर्घाओं और मंदिरों को ध्यान से क्यों नहीं देखा था ।
उसका घुटना किसी चीज़ से टकराया और दर्द फिर ज़ोर से उभर आया । फिर से वही काली बाड़ । उधर दूर खड़ी बंद-गाड़ियों को पहचान लेने पर वह अपनी हँसी नहीं रोक सका । वे वहाँ विशाल ताबूतों की तरह खड़ी थीं । उन्होंने अपने भीतर क्या छिपा रखा होगा ? ख़ज़ाना ? भीमकाय मनुष्यों के अस्थि-पंजर ? या बहुमूल्य मेज़-कुर्सियों के धूल भरे पहाड़ ?
अरे , मुझे वहाँ जा कर देखना चाहिए , वर्ना यदि क्लारा मुझसे पूछेगी तो मैं क्या जवाब दूँगा ।
उसने एक बंद-गाड़ी के दरवाज़े को जल्दी से हल्का धक्का दिया और उसके भीतर चला गया । भीतर से वह लगभग ख़ाली था । वहाँ बीच में केवल पुआल से बनी एक कुर्सी पड़ी थी जो हास्यास्पद ढंग से तीन टाँगों पर टेढ़ी टिकी हुई थी ।
मार्क ने अपने कंधे उचकाए और वह दूसरी ओर से वहाँ से बाहर निकल गया । एक बार फिर गर्मियों की शाम की चौंध उसकी आँखों में भर गई । और अब उसकी आँखों के सामने लोहे का परिचित छोटा फाटक था और उसके आगे एक पेड़ की हरी डाल से घिरी क्लारा के कमरे की खिड़की थी । क्लारा ने खुद ही फाटक खोला और प्रतीक्षा में वहीं खड़ी रही । वह अपनी अनावृत कोहनियाँ उठाए अपने बालों को सँवारती रही । उसकी बग़लों में मौजूद बालों के गेरुआ गुच्छे उसकी छोटी आस्तीनों की धुपहली खुली जगह में से दिखाई दे रहे थे ।
बिना आवाज़ किए हँसते हुए मार्क उसे गले से लगा लेने के लिए दौड़ कर आगे बढ़ा । उसने अपने गाल क्लारा के गरम हरे रेशमी वस्त्र से दबाए ।
क्लारा का हाथ उसके सिर पर आ कर रुक गया ।
“ मैं आज सारा दिन कितनी अकेली थी , मार्क । पर शुक्र है , अब तुम यहाँ मेरे पास हो । “
उसने मकान का दरवाजा खोला और मार्क ने तुरंत अपने-आप को भोजन-कक्ष में पाया । वह कमरा उसे अत्यधिक बड़ा और रोशन लगा ।
“ जब लोग ख़ुश होते हैं , जैसे कि हम अभी हैं , “ क्लारा बोली , “ तो उन्हें गलियारे की ज़रूरत नहीं होती । “ क्लारा भावपूर्ण फुसफुसाहट में बात कर रही थी और मार्क को लगा जैसे उसके शब्दों का कोई ख़ास और असाधारण अर्थ था ।
और भोजन-कक्ष में बर्फ़ जैसी सफ़ेद , अंडाकार मेज़पोश के इर्द-गिर्द बहुत सारे ऐसे लोग बैठे हुए थे जिन्हें मार्क नहीं जानता था और जिन्हें उसने अपनी प्रेमिका के घर में पहले कभी नहीं देखा था । उनमें चौड़े सिर वाला साँवला ऐडोल्फ़ भी था । वहाँ छोटे पैरों और बड़ी तोंद वाला वह बूढ़ा आदमी भी था जो ट्राम में चिकित्सकीय पत्रिका पढ़ रहा था और वह अब भी बड़बड़ा रहा था ।
मार्क ने शर्मीले ढंग से सिर हिला कर वहाँ मौजूद सभी लोगों का अभिवादन किया और क्लारा की बग़ल में बैठ गया , और जैसा कि उसे कुछ पल पहले भी लगा था , उसे उसी समय लगा जैसे भयानक दर्द की एक असहनीय लहर उसकी पूरी देह से गुज़र गई हो । वह दर्द से तड़पने लगा और क्लारा का हरा परिधान तैरता हुआ दूर चला गया और अंत में छोटा होकर एक हरी बत्ती में बदल गया । डोरी से लटकी वह हरी बत्ती एक ओर से दूसरी ओर हिल रही थी और मार्क उस हरी बत्ती के नीचे पड़ा था । अकल्पनीय दर्द उसकी देह को रौंद रहा था और उस झूलती हरी बत्ती के अलावा कुछ भी पहचान में नहीं आ रहा था । उसकी पसलियाँ उसके सीने में चुभ रही थीं जिसकी वजह से उसके लिए साँस ले पाना असम्भव होता जा रहा था । कोई उसके पैरों को मोड़ रहा था , खींच रहा था और उसे लगा जैसे एक पल में उसका पैर ही टूट जाएगा । किसी तरह उसने स्वयं को मुक्त किया और वह हरी बत्ती दोबारा चमकती हुई दिखी । मार्क ने खुद को कुछ दूरी पर क्लारा के साथ बैठे हुए देखा और उसे लगा जैसे उसके पैर क्लारा के गरम रेशमी लहँगे को छू रहे हों । और अपना सिर पीछे किए क्लारा हँसती चली जा रही थी ।
अभी-अभी क्या हुआ था , उसे सबको यह बताने की ललक महसूस हुई । और मिलनसार ऐडोल्फ़ और चिड़चिड़े मोटे आदमी समेत वहाँ मौजूद सभी लोगों को एक प्रयास के साथ सम्बोधित करते हुए उसने कहा — “ विदेशी नदी के किनारे यह प्रार्थना कर रहा है … “
उसे लगा कि उसने सब कुछ स्पष्ट कर दिया था और ज़ाहिर है , वे सब यह समझ गए थे … क्लारा ने अपने होठ गोल करते हुए उसके गाल पर चिकोटी काटी और कहा , “ ओ मेरे बेचारे प्रेमी , सब ठीक हो जाएगा … “
अब वह थकान महसूस कर रहा था और उसे नींद आ रही थी । उसने क्लारा की गर्दन के गिर्द अपनी बाँह रखी , उसे अपनी ओर खींचा और पीछे हो कर लेट गया । और तब भयानक दर्द ने उस पर फिर झपट्टा मारा , और सब कुछ बिल्कुल स्पष्ट हो गया । बुरी तरह से घायल और बँधी पट्टियों में लिपटा मार्क चित पड़ा हुआ था और उसके ऊपर लटकी हरी बत्ती अब आगे-पीछे नहीं झूल रही थी । मूँछों वाला वह परिचित मोटा आदमी , जो कि सफ़ेद लबादे में एक डॉक्टर था , मार्क के आँखों की पुतलियाँ को ग़ौर से देखते हुए चिंतित स्वर में कुछ बड़बड़ाया । और कितना भयानक दर्द ! … हे ईश्वर , अब किसी भी पल एक पसली उसके हृदय को चीर कर फाड़ देगी … यह बेवक़ूफ़ाना बात है … क्लारा यहाँ क्यों नहीं है ?
अप्रसन्न दिखते हुए डॉक्टर कुड़कुड़ाया ।
मार्क अब साँस नहीं ले रहा था । वह प्रस्थान कर चुका था , पता नहीं किन दूसरे सपनों में , यह कोई नहीं बता सकता ।
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—- मूल लेखक : व्लैदिमिर नैबोकोव
—- अनुवाद : सुशांत सुप्रिय
प्रेषक : सुशांत सुप्रिय
A-5001 ,
गौड़ ग्रीन सिटी ,
वैभव खंड ,
इंदिरापुरम् ,
ग़ाज़ियाबाद – 201014
( उ. प्र. )
मो : 8512070086
ई-मेल : sushant1968@gmail.com

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