बाबू श्यामसुंदर दास हिंदी के पारखी

बाबू श्यामसुंदर दास हिंदी के पारखी

 – सुखमंगल सिंह
बाबू श्यामसुंदर दास किशोरावस्था में ही हिंदी भाषा के प्रति विलक्षण प्रतिभा संपंन  सोच रखते थे । नागरीप्रचारिणी सभा की स्थापना कर ब्लाक स्तर ,जिला स्तर प्रांतीय स्तर पर ही नहीं अपितु विश्व स्तर ,अंतर्राष्ट्रीय स्तर का प्रखरता प्रदान कराया । उन्होंने प्राचीन हस्तलिखित हिंदी पुस्तकों के संपादन के माध्यम से अकिंचन समझे जाने वाली हिंदी को अपनी लेखनी और उच्च सोच से प्रतिष्ठा दिलाई | प्राचीन काव्य और आधुनिक साहित्य के अतिरिक्त बाबू श्यामसुंदर दास अपनी लेखनी पुरातत्व के क्षेत्र में विविध आयामों  को ध्यान में रखकर उठाई । नागरीप्रचारिणी सभा की श्रीवृद्धि के लिए विविध विद्वानों से विचार- विमर्श कर अपनी भाषा के  मौलिक लेखन में हिंदी की गति को गतिमान किया  उन्होंने आचार्य  रामचन्द्र  शुक्ल  को नागरीप्रचारिणी सभा में लाने का कार्य किया ।
बाबू श्यामसुंदर दास जी ने बाबू गोपालदास जी के सहयोग में रहकर सर रमेशचंद्र दत्त लिखित ‘प्राचीन भारतवर्ष की सभ्यता का इतिहास ‘ भाग एक और भाग दो का सरल हिंदी में अनुवाद किया जो धर्म कूप काशी द्वारा प्रकाशित सन्  १९२० में द्वितीय बार मूल्य दो रूपये में उपलब्ध की गई । इस पुस्तक में ईसा से २००० वर्ष पहले का ई तिहास, से वैदिक काल एवं दार्शनिक काल को दर्शाते हुए पुस्तक प्रकाशित कराया । पुस्तक में स्मृति ,ज्योतिष और विद्या ,सामाजिक जीवन , जाति  भेद, आर्य और अनार्य लोग ,विदेह ,कौशल और काशी ,कुरु और पांचाल। वैदिक ऋषि ,तथा काण्ड दो में ऐतिहासिक काव्यकाल  वैदिक धर्म ,लड़ाइयां और झगड़े ,भोजन , कपडे और शान्ति के व्यवसाय खेती ,चराई और व्यापार और आर्य लोग पर प्रमाण सहित लेखन का कार्य सम्पन्न  किए ।
श्यामसुंदर दास
आचार्य  रामचन्द्र  शुक्ल न होते तो काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में रीडर की कल्पना नहीं की जा सकती । सन् १९१९ तक    नागरीप्रचारिणी सभा में रहकर विद्यालय -विश्वविद्यालयी  स्तर की हर तरह से प्राइमरी से पोस्ट ग्रेजुएट स्तर ( एम.ए.) तक की पुस्तकें दिया । आज नागरीप्रचारिणी सभा  पल्लवित पुष्पित होकर विश्व में स्थान बनाये हुए है । बाबू श्यामसुंदर दास जी ने इतिहास को दो भागों में दिया ,१ हिंदी कोविद रत्ननमाला भाग एक और भाग दो । सभा को अपनी पुत्री के रूप में उन्होंने माना । बाबू श्यामसुंदर दास ने साथ ही नागरीप्रचारिणी  सभा की स्थापना दिवस के साथ अपने जन्मदिन से जोड़कर दुनिया को एक सन्देश दिया । प्राचीन भारतवर्ष की सभ्यता का इतिहास दूसरा भाग में जैन धर्म का इतिहास , बौद्ध धर्म का इतिहास , गौतम बुद्ध की धर्मिक आज्ञाएं ,गौतम बुद्ध के सिद्धांत , गौतम बुद्ध का जीवन चरित्र ,बौद्धों के पवित्र ग्रन्थ , पूर्व मीमांसा और वेदांत।  न्याय और वैशेषिक ,सांख्य और योग ,क़ानून,राज्य प्रबंध ,खेती और शिल्प ,हिन्दुओं का फैलाव ,इस काल का साहित्य सहित रेखागणित और व्याकरण पर इतिहास लिखने में प्रमाणिकता के साथ कार्य किया ।
श्यामसुन्दर दास विद्वान  आलोचक एवं शिक्षाविद थे । उन्होंने नाटक ,उपन्यास ,कथा और काव्य की साहित्य रचना की । वे हिंदी के महान विद्वानों में हिन्दी के प्रतिभावान विद्वान थे । आप का जन्म काशी (वाराणसी ) के पंजाबी खत्री परिवार में आषाढ़ शुक्ल ग्यारह मंगलवार -संवत  १९३२ सन् १८७५ को हुआ था । शिक्षा – दीक्षा  नीची बाग़ में प्रारम्भ हुई ।
श्री सिद्धेश्वर  महादेव मंदिर केशव कुटिया में आयोजित रामकथा वाचक ने कहा कि जीवन में मर्यादाओं का पालन करके ही श्रेष्ठता प्राप्त की जा सकती है । रामायण जीवन जीने और उसे सफल बनाने का महामंत्र  है । सीता की सात्विकता वर्तमान समय में प्रतेक  परिवार के लिए मार्गदर्शक है ।
बाबू श्यामसुंदर दास द्वारा संपादित हम्मीररासो कवि जोधराज कृत जो संसार प्रेस काशी  से पुस्तक मुद्रित व नागरीप्रचारिणी सभा से प्रकाशित हुई । जिसमें दोहा ,छन्द ,पध्दरी ,छन्द भुजङ्गप्रपात ,छन्द त्रोटक ,छन्द मोतीदाम ,चौपाई छन्द ,सोरठा छन्द ,छन्द अर्धनाराच ,कवित्त छन्द ,हंनूफाल छन्द सहित वचनिका का प्रयोग किया गया है । प्राचीन भारत की सभ्यता का इतिहास भाग तीन में भाषा और अक्षर ,चन्द्रगुप्त और अशोक ,कश्मीर और गुजरात ,गुप्तवंशीय राजा ,फाहियान का भारत का इतिहास बौद्धों की इमारत और पत्थर के कार्य सहित जाति ,नियम कानून और ज्योतिष और विद्या पर अपनी कलम चलाया है ।
बाबू श्यामसुन्दर दास की मौलिक कृतियाँ नागरी वर्णमाला ,हिंदी भाषा का विकास , गोस्वामी तुलसीदास ,मेरी आत्मकहानी ,गद्य कुसुमावली ,हिंदी कोविद ग्रन्थमाला -भाग एक और भाग दो,साहित्यलोचन , गद्य कुसुमावली ,भारतेंदु हरिशचन्द्र , हिंदी भाषा और साहित्य आदि । चन्द्रावली ,पृथ्वीराज रासो ,हिंदी वैज्ञानिक कोश ,शकुंतला नाटक , रचनाकार ,सरस्वती ,नागरीप्रचारिणी पत्रिका एवं छत्र प्रकाश ।
बाबू श्यामसुन्दर दास का व्यक्तित्व तेजस्वी और बहुआयामी हिंदी की सेवा के लिए पूर्णरूप से समर्पित रहा । उनके हिंदी सेवा से प्रभावित होकर काशी हिन्दू विश्वविद्यालय  ने डी. लिट्. दी । हिंदी साहित्य सम्मेलन ने ‘साहित्यवाचस्पति’ और अंग्रेजी सरकार ‘रायबहादुर’  ‘का सम्मान दिया । आप सन १८९९ ई. में हिन्दू स्कूल के अध्यापक हुए पुनः हिन्दू कालेज में अंग्रेजी के जूनियर प्रोफेसर हुए । उन्होंने  जम्मू महाराज स्टेट कार्यालय का अनुभव भी लिया । आपने कालीचरन स्कूल लखनऊ में हाईस्कूल के हेडमास्टर का पद सुशोभित किया तदुपरांत काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में हिन्दी विभाग खुल जाने पर अध्यक्ष पद मिला|
हिंदी साहित्य और बौद्धिकता के पथ -प्रदर्शक बाबू श्यामसुंदर दास के पिता लाला देवीदास खन्ना जी थे । देवीदास जी के देखरेख में १९०२ में नागरीप्रचारिणी सभा का भवन निर्माण कराया । आपने आर्यभाषा पुस्तकालय की स्थापना नागरीप्रचारिणी सभा में की , प्राचीन ग्रंथों   का सम्पादन किया और शिक्षा स्तर की पुस्तकों का भी सम्पादन कराया । साहित्य लोचन का जो आपकी लिखित संकलित पुस्तक प्रकाशित हुई । जिसका जिक्र रामचन्द्र शक्ल ने हिंदी साहित्य का इतिहास में किया है । 

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