हिंदी गद्य के विकास में भारतेंदु युग का महत्व

हिंदी गद्य के विकास में भारतेंदु युग का महत्व 

हिंदी गद्य के विकास का पहला युग भारतेंदु युग के नाम से जाना जाता है।भारतेंदु हिंदी गद्य के प्रथम लेखक कहे जाते हैं।अतः भारतेंदु के नाम से इस युग का नामकरण हुआ। इस युग में गद्य साहित्य का सर्वतोमुखी विकास हुआ।इस युग में नाटक ,उपन्यास ,निबंध ,आलोचना ,पत्र -पत्रिकाएँ अनुवाद आदि सभी गद्य विधाओं पर साहित्य की रचना की गयी है।भारतेंदु जी ने इतिहास ,भूगोल ,विज्ञान ,पुराण आदि विषयों पर स्वयं लिखा और अन्य लेखकों को लिखने के लिए प्रेरित किया।पत्र -पत्रिकाओं ,स्कूल ,क्लबों ,समाज सेवी संस्थाओं द्वारा हिंदी गद्य एवं भाषा का प्रचार -प्रसार किया गया।लेखकों ने राष्ट्रीय भावना ,समाज सुधार एवं नारी जागरण का कार्य साहित्य द्वारा किया।भारतेंदु जी ने हिंदी गद्य एवं भाषा को एक व्यवस्थित रूप प्रदान किया।हिंदी गद्य का सर्वमान्य स्वरुप निर्धारित करने के कारण भारतेंदु हिंदी गद्य के जनक कहे जाते हैं और उनका समय भारतेंदु युग के नाम से विख्यात है।  

साहित्य निर्माण – 

भारतेंदु जी के प्रेरणा से अनेक लेखक साहित्य रचना के लिए प्रवृत हुए। इन नाटककारों में भारतेंदु हरिश्चंद ,लाला

भारतेंदु जी
भारतेंदु जी

श्रीनिवास ,प्रताप नारायण मिश्र ,राधाकृष्ण दास ,किशोरीलाल गोस्वामी ,बालकृष्ण भट्ट आदि प्रमुख है। निबंधकारों में भारतेंदु हरिश्चंद ,राधाकृष्ण दास ,बालकृष्ण भट्ट ,बद्री नारायण चौधरी ,अम्बिकादत्त व्यास आदि के नाम उल्लेखनीय हैं। इस युग में बंगला ,संस्कृत ,अंग्रेजी आदि भाषाओँ के नाटकों का हिंदी में अनुवाद भी हुआ है। अनुवादकों में राधाकृष्ण दास ,प्रताप नारायण मिश्र आदि के नाम प्रमुख हैं।इस काल में हरिश्चंद मैगज़ीन,ब्राह्मण ,हिंदी प्रदीप ,आनंद कादम्बिनी आदि पत्रिकाएँ प्रकाशित हुई। 

भारतेंदु युग में साहित्य निर्माण वेग से हुआ।इस युग के रचनाकारों ने जहाँ एक ओर जनमानस के मनोभावों के अनुकूल भाषा का व्यवस्थित और आदर्श रूप प्रस्तुत किया ,वहीँ दूसरी ओर उसमें व्याकरण की अशुद्धियां ,पद विन्यास ,वाक्य विन्यास सम्बन्धी अनेक अनियमितताएँ बनी रही।उसी समय आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी ने भाषा परिमार्जन का कार्य संपन्न किया। 

भाषा परिमार्जन का कार्य – 

हिंदी साहित्याकाश में बाबू भारतेंदु हरिश्चंद का उदय एक महत्वपूर्ण घटना है।उन्होंने अपनी प्रतिभा के आलोक से तत्कालीन समाज एवं साहित्य को आलोकित किया।उन्होंने राजा शिवप्रसाद सितारेहिन्द की अरबी फ़ारसी मिश्रित तथा राजा लक्षमण सिंह की संस्कृतनिष्ठ अतिवादी भाषा निति को त्याग कर मध्यम वर्ग को स्वीकार किया।उन्होंने संस्कृत के तत्सम शब्दों के साथ साथ साधारण बोलचाल के उर्दू ,फ़ारसी ,अंग्रेजी के विदेशी शब्दों ,तद्भव और देशी शब्दों का प्रयोग कर भाषा का आदर्श एवं व्यवस्थित रूप प्रस्तुत किया।भाषा का यह स्वरुप भारतीय जनता के मनोभावों के अनुकूल और सर्वमान्य था।भारतेंदु ने कहावतों और मुहावरों का प्रयोग कर भाषा को सजीव रूप प्रदान किया तथा उपन्यास ,निबंध ,नाटक ,कहानी आदि अनेक विधाओं पर उपयोगी साहित्य प्रदान किया।  

भारतेन्दु मंडल – 

भारतेन्दु जी ने गद्य लेखकों का एक मंडल भी तैयार किया। इसमें  बालकृष्ण भट्ट ,प्रताप नारायण मिश्र ,श्री निवासदास ,बद्रीनारायण चौधरी प्रेमधन ,बाबू बालमुकुन्द गुप्त और अम्बिकादत्त व्यास आदि के नाम उल्लेखनीय हैं। उन्होंने हरिश्चंद मैगज़ीन और कविवचन सुधा आदि पत्रिकाओं का संपादन कर अनेक लेखकों का मार्ग प्रशस्त किया और हिंदी को उच्चकोटि का साहित्य प्रदान किया।उन्होंने सामाजिक कुरीतियों को दूर कर समाज को चेतना और जागृति प्रदान की। भारतेंदु जी का समय सन १८६८ ई से सन १९०३ तक माना जाता है। अतः इस युग का नामकरण उन्ही के नाम से भारतेंदु युग किया गया। 

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