एक आवारा सा


एक आवारा सा

किसी ने हमें आवारा कहा हमें गम नहीं
घर वालों की सुनते सुनते भी हम तंग नहीं,
सुबह सुबह निकल पड़ते घरो से
कोई कहता कि हमें मजिंल की फिक्र नहीं,
पर कोई हमसें ज्यादा फिक्रमंद नहीं!
पूजा
पूजा
मोहल्लें की हर खबर हमको रहती
सोचतें तुम हम किसी काबिल नहीं,
किसी खूंटे में बधँना पंसद नही
हाँ……   माना मैं सभ्य नहीं  ,
पर जान लो तुम मैं असभ्य भी नहीं!
हमें खुल कर जीना पंसद होता है
स्वतन्त्रता का पूरा ख्याल रखते है,
बेड़िया गले में क्यों नहीं डालते 
लोग हमारे मात-पिता से सवाल करते है!
कैसे बताए वो लोगों को
वो मानते हमकों निकम्मा आवरा,
पड़े पड़े खाते हो हमारा
आख़िर तुम कमाते क्यों नहीं,
दिमाग तुम लगाते क्यों नहीं!
पड़ेसी के बच्चो को विलन हममे दिखाया जाता
बताते एेसे बने तो तुम्हारी खैर नहीं,
लोकिन इन बातो का भी हमें मलाल नहीं
चौराहो पर भी तो संगोष्टिया हम करते है,
नही तो बड़े बुजुर्गो को तो फुर्सत ही नहीं!
राहों में हार थककर
वापिस आते घर पर,
जीना भी हमारा जीना नहीं
दूनिया के तानें सुनते,
फिर भी अपनी दूनिया में मस्त रहते
जैसे कोई बोझ हम पर नहीं!
हालात ये हम बयाँ करते हैं
खुद पर ही हम हँसा करते है,
जैसे हम हम नहीं
लेकिन फिर भी गम नहीं,
रचनाकार परिचय 
पूजा
रुचि-हिन्दी और बांग्ला साहित्य पढ़ना,लेखन कार्य
पता-बेहट,सहारनपुर(उत्तर प्रदेश)
शैक्षिक योग्यता- शिक्षा स्नातक और परास्नातक

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