ग़म के साथ अच्‍छी निभ गयी – बहादुर शाह ज़फ़र

ऐश से गुज़री कि ग़म के साथ अच्‍छी निभ गयी
निभ गयी जो उस सनम के साथ अच्छी निभ गयी

दोस्‍ती उस दुश्‍मने-जाँ ने निबाही तो सही
 गो निभी ज़ुल्‍मो-सितम के साथ अच्‍छी निभ गयी

ख़ूब गुज़री गरचे औरों की निशातो-ऐश में
अपनी भी रंजो-अलम के साथ अच्‍छी निभ गयी

बूए-गुल क्‍या रह के करती, गुल ने रहकर क्‍या किया !
बस नसीमे-सुबहदम के साथ अच्‍छी निभ गयी

शुक्र-सद शुक्र अपने मुँह से जो निकाली मैंने बात
ऐ ज़फ़र उसके करम के साथ अच्‍छी निभ गयी

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