तुम्हारी पहचान दूसरों के जानने पहचानने से है

तुम्हारी पहचान दूसरों के जानने पहचानने से है

तुम कौन हो?
तुम नहीं जानते!
तुम कैसे हो?
ये तुम नहीं जानते!
तुम्हारा चेहरा कैसा है?
ये भी तुम नहीं जानते 
बिना आईना में मुख को देखे!
तुम खुद को नहीं पहचानते
बगैर किसी से फोटो बनवाए!
तुम सुन्दर हो या कुरूप
तुम खुद का स्वरूप
अपनी आंखों से नहीं देख सकते!
बगैर किसी के आंख में झांके
बगैर किसी के बताए
तुम नहीं जानते कि तुम कैसे हो!
तुम्हारी पहचान 
दूसरों के जानने पहचानने से है!
तुम चेहरे को छुपा लो 
घर में रहो या जंगल में 
जानवरों के साथ जानवरों जैसे!
तुम्हारी पहचान गुम हो जाएगी
ये मुखौटे तुम्हें गुमनाम करने के लिए है,
ये हिजाब किताबों से ध्यान भटकाने का!
तुम्हारी पहचान दूसरों के जानने पहचानने से है

हर वो जीव जो खुद को 

निहार नहीं सकते आईने में जल में
वे दूसरे की आंखों से निहारते खुद को!
 
अन्य निरीह मासूम जीव जन्तु
आदमी के सिवा एक जैसे होते!
आदमी के सिवा ये निरीह जीव
हिन्दू मुस्लिम ईसाई नहीं बनते!
आदमी के सिवा सारे जीव जन्तु
उपनयन खतना वपतिस्मा नहीं कराते!
आदमी के सिवा कोई जीव जन्तु
मूंछें नहीं टेबते, दाढ़ी नहीं उगाते!
आदमी के सिवा कोई जीव जन्तु
मुंह पर हिजाब घूंघट नहीं लगाते!
आदमी है कि बगैर आदमी के बताए
खुद के चेहरे तक नहीं पहचान पाते!
पहचानो खुद को बदलो सड़ी गली 
मान्यताओं को धर्म के नाम गढ़े गए
खतरे तो घर में है,डर रिश्तेदारों से,
बाहर कानून के पहरे नियम बड़े खरे!
जब अपने ही लोग तुम्हारी पहचान 
छिपाने लगे धार्मिक मान्यताओं के नाम
तुमपर बंदिशें लगाने लगे तो समझो
तुम आदमी नहीं सामान बनने लगे हो!
– विनय कुमार विनायक,
दुमका, झारखंड-814101

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