भाषाएँ बराबर हैं

भाषाएँ बराबर हैं 
जब  मैं इस  लेख  को   लिख  रहा  हूं  भोपाल  में विश्व  हिंदी  सम्मेलन हो रहा  है   और   मैं  भी  एक  हिंदी सप्ताह के एक  समारोह  से  लौट  रहा  हूं  जहां   विश्व विद्यालय  के  हिंदी  के  विभागाध्यक्ष  बोले कि  :
1  शिमला  के  माल रोड  पर   पट्टी टंगी  रहती थी  कि   “कुत्ते  और   भारतीयों  के  लिए  मनाही   है “  
2 संस्कृत के  नाटकों के  नायक   विरह  विलाप  करते  हैं  जब  की  जायसी  में   नायिकाएं 
3  हिंदी  में  डोक्यूमेंटेसन    बाद  में  हुआ  हे  ,  फरमान  और  मुनादी से  काम  चल  जाता था ,
4 कोई  कमतर  या  अधिक  नहीं  ,  सभी  भारतीय  भाषाओं  का  विकास  हो ,
5 . दक्षिण  की  तरफ  जो  कोई  जाता था  ,फिर  लौट  कर  नहीं  आता  था . 
भारत में संविधान  में  जो  लिखा  है  उसके  पालन  पर  कम  ध्यान  है  बल्कि जो  बातें  संगत नहीं  उनको ये   लोग   आधी  अधूरी  जानकारी  के  साथ  पढाते  होंगे  जब  कि उनको  विषय का पूरा  जानकार  होना  चाहिए.
माल  रोड  पर  मैं  भी  घूमा  हूं   . हमारा  ठहरना एवलिन  हिल्स   के  एक  साईट मे  था  .   कोई  बंदिश   नहीं  थी . कब  की  बात   हें  और   अब  उनका क्या  सरोकार . 
रघु  वंश   और   दुष्यंत  नाटक  के  नायक  क्या  रोते  हैं ? 
क्या  आप को   मालूम  है   कि  उस  समय  तक  मंत्र पूरित  अस्त्र  प्रयोग  किए  जाते थी  ,  अब   केवल  शस्त्र  ही  हैं ,   “  सम्मोगनम  ….  संहार विक्षेप विभिन्न मंत्रै “   संस्कृत  भाषा  और  भारत  की  संस्कृति  पर  अल  बरूनी  ने  भी   बहुत   लिखा  है . अब  लोगों  को  उसे  पढ  लेना  चाहिए .
क्षेत्रपाल शर्मा
हिंदी  का  जन्म जब  से  है  तब  से  विधिवत   कागज पत्र  हैं .  श्रुति  और  स्मृति  काल  तो  बहुत  पुराना  है , आज  तो  शिक्षार्थियों   को  कम  समय  में  संस्कार  और  संस्कृति  की  जानकारी   भाषा  (  अनुप्रयुक्त   हिंदी  ) के  साथ  कि  बस  वे  स्वाभिमान  और भरोसे  के  साथ  आगे  बढ  सकें  न  कि  एक   सतही  जानकारी जिसे हर  गली  का   नेता नुमा  आदमी  बोल लेता  है  .  जानकारी  यह  ठीक  रहेगी  कि  तकनीक का  प्रयोग  कैसे  करें  ,जब   ई मेल  हिंदी  में  दूसरी  मशीन  पर  नहीं  खुल  रहा   तो  ये  समस्या   लाइनक्स और  विंडो  के  कम्पोज  की  तो  नहीं  तो  क्या  लाइनक्स  रीडर  या   ऑडीटी व्यूअर  टूल   प्रयोग  करना  हे  कि  नहीं  आदि , बार  बार   आप “  श “  को  ष   करने  के  लिए  हाथ  से  करने  में  घंटों  खराब  कर  रहे  हें  या   “ रिप्लेस   बटन  से  काम  करते हैं .आज  जरूरत  इस  की  बहुत है . हिंदी  डिक्टेसन  यंत्र  (  सी डेक ) को अधिक लोकप्रिय  बनाने  की  जरूरत  है  .  इस  को  तो  फ्री   ही  कर  देना चाहिए . 
  व्याकरण  पर  तो  कामता प्रसाद  गुरु   और  किशोरी  दास  वाजपेयी  जी  से  आगे  काम   , अष्टाध्यायी   के  आलोक  में  बढाया  जाना  बाकी  है  .  क्या  करेंगे  इसे ?  यद्यपि  श्री अयंगार जी  के  इस  विषयक (  Indian Wikipedia  के )  आलेख पर  श्री  रवींद्र कुमार पाठक  (  डिबेटोन लाइन )  और  श्री  दवे  जी  का  लेख  ( गर्भनाल ) विचार प्रधान हैं .
आज  ये  कहना  कि  हिंदी  थोपी  जा रही  है  या   कि  कोई  भाषा  कमतर नहीं  ,असंगत  हैं  . भाषाएं  तो  सब  बराबर  हैं  लेकिन  कानून  जो  है   उसे  पालन करना  नैतिक  दायित्व  है , कि  राजभाषा हिंदी  ही  है  , वह  भी  देवनागरी  लिपि  में  और  अंक  अंत्र्राष्ट्रीय  रूप  में  अन्य  भाषाओं  के आम  फहम  शब्द  भी  इसमें  पचाए  जाएंगे . 
शिक्षा क्षेत्र   के  कुछ व्यक्ति/ व्याक्याता   दुराग्रह  से  पीडित  हैं  या फिर   पूरी  जानकारी  नहीं  रखना  चाहते  .  क्यों ?

यह रचना क्षेत्रपाल शर्मा जीद्वारा लिखी गयी है। आप एक कवि व अनुवादक के रूप में प्रसिद्ध है। आपकी रचनाएँ विभिन्न समाचार पत्रों तथा पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी है। आकाशवाणी कोलकातामद्रास तथा पुणे से भी आपके  आलेख प्रसारित हो चुके है .

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