“मैं चढ़ा हूँ मोहब्बत की सब सीढियाँ”
मैं चढ़ा हूँ मोहब्बत की सब सीढियाँ
एक कदम आप भी तो बढ़ा दो कभी
प्रीत मे कर प्रवाहित कोई तूलिका
रंग मुझमे स्वयं का चढ़ा दो कभी
आजतक मैं जला हूँ तुम्हारे लिए
कोई दीपक मेरी राह रोशन करें
हो गई है सजल राम मूरत यहाँ
कोई मिथिला कुमारी तो दर्शन करें
हो के पावन बहेगी नदी उम्र भर
आप आँखो का जल तो चढ़ा दो कभी
है अंधेरो से घिरता यह उन्मत्त मन
इस अजिर में कभी चाँद निकला करें
जो क्षितिज मे हुआ गुम वही भास्कर
हर सुबह हों उदय मन उजाला करें
मैं तेरे इंगितों पर बनूँ चाँद तुम
हों नदी एक दर्पण बना दो कभी
सब पुराने कलह जब भी अवसान थे
तुम विजयी रही मैं स्वशता गया
प्रेम पावस जब अवमान मे धुल रहा
तुम कहीं गुम रहे मै उलझता गया
मैं तुम्हे भूल जाऊँगा स्वीकार है
तुम स्वयं से मुझे तो भूला दो कभी
यह रचना मोहित भट्ट जी द्वारा लिखी गयी है . आप गीत, छंद, मुख्तक आदि विधाओं में अपनी लेखनी चलाते हैं तथा मासिक काव्य गोष्ठियों में अविरित भाग लेते हैं . संपर्क सूत्र – ईमेल- mohit.peak@gmail.com
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