अनबॉक्स ज़िन्दगी

अनबॉक्स ज़िन्दगी – जीवन के विभिन्न पहलुओं से रूबरू कराती कहानियों का बॉक्स 

डॉ. नीरजा श्रीवास्तव ‘नीरू’ के कहानी संग्रह ‘अनबॉक्स ज़िन्दगी’ को पढ़ने का सुअवसर मिला तो कुछ शब्द कहने की चाह मन में हिलोरें लेने लगी. यदि इन कहानियों को मन से निकल मन को छूने वाले शब्दों का बॉक्स कहा जाए तो अनुचित नहीं होगा. लेखिका ने आम आदमी की ज़िन्दगी से जुड़ी समस्याओं से लेकर महिला सशक्तिकरण व लिंग-भेद जैसे गंभीर सामाजिक विषयों पर अपनी लेखनी चलाई है.

संग्रह की पहली कहानी ‘नील कंठ’ पुत्र की लालसा लिए कन्या भ्रूण हत्या करवाने वाले एक पिता की है. दूसरी पत्नी से प्राप्त दो पुत्रों द्वारा घोटालों में फ़साये जाने पर खीजते हुए जब वह अपनी बेटी की प्रतिभा व लोकप्रियता देखता है तो पश्चाताप की अग्नि में जल उठता है. पुत्री अपने नाम को सार्थक करते हुए पिता के हृदय में बेटियों के प्रति वर्षों से पल रही घृणा के विष को जैसे पी लेती है। आज की बेटी कमज़ोर नहीं है अतः पिता की उसे उसका अधिकार देने की याचना को वह अस्वीकार कर देती है.

पहली कहानी के विपरीत पिता के ह्रदय का वह कोमल पक्ष जो भीतर कहीं दबा-छिपा होता है संग्रह की दूसरी कहानी ‘टैन्ट्रम’ के माध्यम से दिल तक पहुंच आंखों को नम कर जाता है.

 ‘अभया’ कहानी का नायक सामंती सोच लिए है. पत्नी को नीचा दिखाने में वह कोई कसर नहीं छोड़ता. अंतर्मन में चल रहे द्वंद्व से गुजरते हुए नायिका की सहनशीलता तब जवाब दे जाती है जब पति एक बलात्कारी का समर्थन करता है जो उसका ममेरा भाई भी है. पत्नी के मन में दबी ज्वाला फूट पड़ती है. पति के नाम पर पहने हुए सुहाग चिन्ह तब उसे अपमान का प्रतीक लगने लगते हैं और वह स्वयं को उनसे मुक्त कर देती है.

‘अनबॉक्स ज़िन्दगी’ कहानी पढ़ते हुए पाठक चुलबुली भाषा, मनोरम प्रकृति चित्रण व अलबेले कथानक में खोता चला जाता है. एक लेखिका और पाठक के बीच अनकहे, अनदेखे रिश्ते के माध्यम से जीवन मदमस्त होकर जीने की प्रेरणा दे जाती है यह कहानी.

‘जन्नत-मन्नत’ व्यक्ति की स्वार्थ व निस्वार्थ भावनाओं का अंतर बताती है. स्वार्थी को अंत में पश्चाताप ही हाथ लगता है यह भी समझाने में लेखिका सफ़ल रही हैं.

अनबॉक्स ज़िन्दगी

साधारण जन-जीवन की छुटपुट सी लगने वाली समस्याएं जिनका समाधान रिश्तों का आधार मज़बूत बनाता है कहानी ‘तेरा सईयाँ हमारा भईया’ में दृष्टिगोचर होती हैं.

आज के समय में धन-दौलत की लालसा रिश्तों पर भारी है यह सच्चाई कहानी ‘अपना सपना मनी मनी’ में दर्शायी है. कथा के मुख्य पात्र दादू का कथन ‘अपनों का प्यार और परवाह भी आज बस पैसों की बदौलत’ बहुत कुछ सोचने को विवश कर देता है. 

‘आशियाना यही है मेरा’ प्रत्येक विवाहिता के लिए प्रेरणा के समान है क्योंकि वे भी कहानी की नायिका की तरह ही दूसरों के लिए जीना जीवन का उद्देश्य समझती हैं. लेखिका कहानी की एक पात्र के माध्यम से संदेश देती हैं, “अपने लिए भी जीना सीखो. लोग तुम्हारा महत्त्व नहीं जानते, मानते. समझा दो उन्हें…..जीवन केवल समर्पण का नाम नहीं, जिसमें अपना वजूद ही न रह जाए.” 

पुरुष चाहे कितने भी सम्बन्ध बना ले किन्तु स्त्री बलात्कार की शिकार हो जाए तो अपवित्र हो जाती है यह मानसिकता ‘दोगला’ कहानी के नायक की है जो समाज के वर्ग विशेष का प्रतिनिधित्व करता दिखाई देता है.

‘अस्सलामवालेकुम’ व ‘हूबहू’ कहानियां अनेक उतार-चढ़ावों से गुज़रती हैं. इनको पढ़ते हुए लगता है जैसे कोई फ़िल्म देख रहे हों.

‘बेइन्तहा’ कहानी में एक सच्चे भारतीय का देशप्रेम व प्रेमिका का प्रेमी के प्रति बेइन्तहा प्यार देख आंखें सजल हो उठती हैं. 

यदि संग्रह की भाषा की बात की जाए तो यह धाराप्रवाह व विषयों के अनुसार गंभीर या चुटीली है. शब्दों का चयन पात्रों को ध्यान में रखते हुए किया है. ‘जन्नत-मन्नत’ व ‘अस्सलामवालेकुम’ में रिश्तों के नाम फूफी, चची और अम्मी हैं तो पंजाब की पृष्ठभूमि पर आधारित कहानी ‘बेइन्तहा’ में बेबे. ‘हूबहू’ कहानी में जो मम्मी हैं ‘नीलकंठ’ कहानी में मां.

दार्शनिकता व गंभीरता से परिपूर्ण उद्धरण जैसे ‘ईश्वर ने हमें मानव बनाया है तो अपने भीतर मानवता रखें यही पर्याप्त है’ भी हैं तो हैडफ़ोन की व्याख्या ‘गले में हंसुली सा लटका गोल गोल हैडफ़ोन’ जैसे रोचक वाक्य भी. ‘बेइन्तहा’ कहानी में एक बच्चे के मुंह से ‘मत मालो मेले तातू को’ सुनना और ‘नीलकंठ’ में एक पात्र का अनन्या को ‘हन्हन्या’ कहना चेहरे पर मुस्कान ला देता है. टूथपेस्ट के लिए ‘मीठा सोप’ जैसे शब्द भी पाठकों को भीतर तक गुदगुदा देते हैं. 

नीरजा जी का यह कहानी-संग्रह जीवन के विभिन्न पहलुओं से परिचित करवाते हुए मनोरंजन के साथ-साथ पाठकों को निःसंदेह एक सकारात्मक दिशा भी दिखायेगा.


– मधु शर्मा कटिहा  

You May Also Like