नारी की पीड़ा
सबला होकर भी वह नारी
अबला ही कहलाती है।
यही टीस बन पीड़ा मन की
अश्रु में बह जाती है।
अपमान सदा ही मिला उसे
पर पीड़ा मन की नहीं खुली
सम्मान की आशा लेकर वह
अपनों से ही गई छली।
भुला दिया नारी का गौरव
इतिहास साक्षी है जिसका।
बन वीरांगना समर लड़ी
हवि में पति का साथ दिया।
लड़ी मृत्यु तक से भी वह
स्वामी के प्राणों को लौटाया।
जीवन पथ पर चली साथ वह
चाहे दुख का हो साया।
शिकवा नहीं जरा भी मन में
धूप मिली या छांव मिली।
पथ कंटक हो पुनः सरल हो
इसी मार्ग पर सदा चली।
– विनय मोहन शर्मा,
सेवा निवृत्त सहायक प्रशासनिक अधिकारी
2/124 A, विवेकानंद नगर, अलवर मोबाइल – 7737670738