हिन्दी सेवी डॉ.ओदोलेन स्मेकल के प्रति

हिन्दी सेवी डॉ.ओदोलेन स्मेकल के प्रति

हिन्दी ज्ञान मेरे लिए अमृत पान
जितनी बार उसे पीता हूं,
उतनी बार लगता है, पुनः जीता हूं’
ये तेरे ही शब्द हैं डॉ.ओदोलेन स्मेकल!
ये तेरे ही शब्द हो सकते 
हमारे कदापि नहीं
हमारे यहां हिन्दी हो चुकी 
एक साम्प्रदायिक भाषा,

डॉ.ओदोलेन स्मेकल
डॉ.ओदोलेन स्मेकल

धर्म विशेष की शब्दावली, 
जाति विशेष की अभिव्यक्ति,
राजनैतिक यज्ञ में बली का बकरा!
हम कहें,आओ सब मिलकर करें 
हिन्दी में ही काम 
तो भिनभिनाने लगती ढेर सारी मक्खियां!
हम कहें,राजभाषा हिन्दी माता की सुहाग बिंदी
तो कितनों की जुबान हो जाती कड़वी-गंदी।
हे यूरोपीय मनीषी! 
जब पूछते हो तुम ‘पुराने मालिक की भाषा 
कबतक लादते रहोगे देश भाषा पर 
अधिकार प्राप्त किए बिना’
तो भारत के वरदपुत्रों की ओर से
जवाब मिलेगा तुम्हें बेहतर है यह लादन
अनिश्चित काल तक के लिए
भारतीय भविष्य की सेहत के खातिर!
बेहतर है गुडमार्निंग सर 
गुडइवनिंग मदाम का अभिवादन
वर्णा प्रणाम, नमस्कार, नमस्ते, सत् श्री अकाल जैसे 
पारंपरिक देशी शब्द जब लेंगे स्थान
तब होने लगेगा विस्फोट मारे जाएंगे लोग सरेआम
अपनी पहचान बताकर! 
हे स्मेकल! क्यों कुरेदते हो जगतगुरु के अतीत को
क्यों कहते हो ‘खो गया यहां, कब से बैठा हूं, 
कब से, किसी से, बातें करनी है, 
पर बातें करते-करते रह गया मौन,
हे मौन व्रतधारी के विद्वान! 
कंठस्थ तुम जानते सहस्त्रों श्लोक,मेघदूत,वेद, पुराण! 
कहां हैं वे महाबली गुरु, पंडित,कहां उनकी प्रज्ञा भारी’
शायद तुम्हें मालूम हो कि नहीं 
कि वेदों के सहस्त्रों श्लोकों को कंठाग्र करने वाले लोग 
सीख चुके हैं मिसाइली भाषा/बारूदी बदबूदार शब्द,
मेघदूत अब प्रेम संदेश देने के बजाय बरसा रहा है आग!
महा पंडित कल्हन के बेटे यद्यपि आज भी 
लिख रहे हैं कश्मीर का इतिहास 
किन्तु स्वर्णाक्षरों से नहीं बल्कि स्वबांधवों के 
लाल रक्त से रक्तिम कूटनीति के 
नवीन आतंकवादी छंदों में!
हे स्मेकल! सुना हूं तुम यूरोपीय हो धर्म से भी, 
नस्ल से भी एक राष्ट्रवादी चेकोस्लोवाकियाई
किंवा किसी भी परिभाषानुसार तुम भारतीय नहीं हो
फिर भी तुम्हारे अंदर-बाहर एक भारत है
‘जैसे धूप नदी के तल तक पीकर भी प्यासी रहती 
वैसा मेरा प्यार तपा हुआ चिर प्यासा सुरभित उज्जवल 
वैसा मेरा प्रिय पुष्पित चंदन वह मेरा भारत!’ 
ऐसी बातें तो कोई जन्म,स्थान, जाति, धर्म से परे
मर्मज्ञ इंसान ही कह सकता
वर्ना हम भारतीयों के लिए भारत, 
भारतवर्ष नहीं एक हिन्दुस्तान है, एक पाकिस्तान है
एक इंडिया है और न जाने क्या-क्या
लेकिन भारत भारतवर्ष कदापि नहीं!
भारत का मतलब जाति नहीं, धर्म नहीं
महज एक उत्कृष्ट संस्कृति या जीने की एक उद्दात शैली 
तो एक  परिभाषाई मुलम्मा है!
यही वजह है स्मेकल! कि तुम अपनी बेटी को इंदिरा 
और बेटा को अरुण जैसी संज्ञा बेहिचक दे डालते
पर क्या मजाल कि यहां कोई एकराम
अपने बेटे को राम कहे और चैन से रह ले
यहां अताताई तैमूर, चंगेज, औरंगजेब की बला से
उद्भूत होने लगे हैं मजहबी लोग
जो स्वेच्छावश भारतवंशी को वह नहीं कहने देते
जो तुमने सहज बयानी में कहा-‘जिस क्षण 
सांस का यह हिंडोला चाहकर भी न हिला पाऊं 
उसी क्षण मेरी देह को पवित्र गंगा में क्षार कर देना’
काश कि हम भारतीय विदेशी मजहबी नहीं
अपनी पैतृक संस्कृति को मानते
अपनी जननी, जन्मभूमि,स्वभाषा पर इतराते
वंदे मातरम गर्व से कह पाते!


– विनय कुमार विनायक,

झारखंड

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