नागार्जुन की काव्यगत विशेषताएँ

नागार्जुन की काव्यगत विशेषताएँ

नागार्जुन की काव्यगत विशेषताएं nagarjun ki kavyagat visheshta, nagarjun ki kavya rachna ke pramukh aadhar kya hai नागार्जुन जी की काव्यगत विशेषता नागार्जुन जी की सामान्य प्रवृतियां नागार्जुन हिंदी साहित्य का इतिहास नागार्जुन प्रगतिवादी युग nagarjun ki kavya samvedna nagarjun ke kavya ki rachna vidhan – वैद्यनाथ मिश्र “यात्री ‘ हिंदी के नागार्जुन के नाम से विख्यात है और लोग प्यार से इन्हें बाबा नागर्जुन भी कहते हैं।  नागार्जुन की कविता के विषय में सुप्रसिद्ध आलोचक रामविलास शर्मा ने लिखा है – “जहाँ मौत नहीं है , बुढ़ापा नहीं है ,जनता के असंतोष और राज्य सभाई जीवन का संतुलन नहीं है , वह कविता है नागार्जुन की।  ढाई पसली के घुमंतू जीव ,दमे के मरीज ,गृहस्थी का भार – फिर भी ताकत है नागार्जुन की कविताओं कवियों में जहाँ छायावादी कल्पनाशीलता प्रबल हुई है ,नागार्जुन की छायावादी काव्य शैली कभी की खत्म हो चुकी है। अन्य कवियों में रहस्यवाद और यथार्थवाद को लेकर द्वन्द हुआ है ,नागार्जुन का व्यंग और पैना हुआ है ,क्रांतिकारी आस्था और दृढ हुई है ,उनके यथार्थ – चित्रण में अधिक विविधता और प्रौढ़ता आई है। उनकी कवितायें लोकसंस्कृति के इतना नजदीक है कि उसी का एक विकसित रूप मालूम होती है किन्तु वे लोकगीत से भिन्न है ,सबसे पहले अपनी भाषा खड़ी बोली के कारण उसके बाद अपनी पर्खर राजनितिक चेतना के कारण और अंत में बोलचाल की भाषा की गति और लय को आधार मानकर नए – नए प्रयोगों के कारण।  हिंदी भाषा….किसान और मजदूर जिस तरह की भाषा। …… समझते और बोलते हैं ,उसका निखरा हुआ काव्यमय नागार्जुन के यहाँ है। ” डॉ.रामविलास शर्मा के उपयुक्त कथन को दृष्टिगत रखते हुए हम नागार्जुन की विशेषताओं पर विचार कर सकते हैं – 
काव्यात्मक साहस और अछूते विषयों की कविता 
जो वस्तुएं औरों की संवेदना को अछूत छोड़ जाती है ,वहीँ नागार्जुन की संवेदना का स्पर्श पाकर महान कविता का रूप धारण कर लेती है। उन्ही की बीहड़ प्रतिभा एक मादा सूअर पर पैने दाँतों वाली’ कविता रच सकती है।  कवि लिखते हैं – 
जमना किनारे,
मखमली दूबों पर
पसरकर लेटी है 
छौनों को पिला रही है दूध 
यह भी तो मादरे-हिन्द की बेटी है !
इस प्रकार नागार्जुन कटहल पर कविता लिखते हैं। नागार्जुन की कविता रिक्शा खींचने वाले ,फटी बिवाई वाले ,गट्ठल घटटों वाले ,कुलिश कठोर खुरदुरे पैरों के चित्र भी आंकती है और उसकी पीठ पर बनियान के दाहक पसीने की गंध भी बताती है। मनुष्य के ये वे रूप हैं ,जो नागार्जुन न होते तो हिंदी कविता में शायद आ ही नहीं पाते।  

नागार्जुन का प्रकृति चित्रण

गहरी ऐन्द्रियता और सूक्ष्म सौन्दर्य दृष्टि से युक्त नागार्जुन की कविता प्रकृति चित्रण की दृष्टि से श्रेष्ठ है। वर्षा और बादलों पर इतनी अधिक कवितायेँ निराला के पश्चात नागर्जुन ने ही लिखी है। एक ओर ‘अमल धवल गिरी के शिखरों पर ,बादल को घिरते देखा है ‘ का सौन्दर्य है तो दूसरी ओर – 
धिन-धिन-धा धमक-धमक
मेघ बजे
दामिनि यह गयी दमक
मेघ बजे
दादुर का कण्ठ खुला
मेघ बजे
धरती का ह्र्दय धुला
मेघ बजे
पंक बना हरिचंदन
मेघ बजे
हल्का है अभिनन्दन
मेघ बजे
धिन-धिन-धा…
का देहाती मस्ती भरी जोश है। ‘जुगनू पर भी आपने एक सुन्दर कविता लिखी है। 
नारी सौन्दर्य का उदार चित्रण 
प्रकृति की तरह नारी – सौन्दर्य को भी अकुंठ भाव से जी भर देखने और मनोयोगपूर्वक चित्रित करने वाले कवि है –

नागार्जुन की काव्यगत विशेषताएँ

नागार्जुन। कवि अपनी प्रिया के लिए लिखते हैं – 

कर गई चाक
तिमिर का सीना
जोत की फाँक
यह तुम थीं

सिकुड़ गई रग-रग
झुलस गया अंग-अंग
बनाकर ठूँठ छोड़ गया पतझार
उलंग असगुन-सा खड़ा रहा कचनार
अचानक उमगी डालों की सन्धि में
छरहरी टहनी
पोर-पोर में गसे थे टूसे
यह तुम थीं

नागार्जुन की कविता में व्यंग्य 

नागार्जुन ने अपने बारे में भी अनेक कवितायें लिखी है। ये ऐसी कवितायें हैं जो कि कवि की पारदर्शी ईमानदारी के साथ अपनी दुर्बलताओं ,अपने संदेहों ,अपनी व्यथा और निष्ठा को व्यक्त करती हैं। इस दृष्टि से खिचड़ी विप्लव देखा हमने ‘ कविता संग्रह की ‘इन सलाखों से टिकाकर भाल ,थकित – चकित – भ्रमित – मग्न – मन तथा प्रतिबद्ध हूँ ,कवितायें उल्लेखनीय हैं। 
नागार्जुन की सबसे मोहक कवितायें वे हैं जिनमें वे स्वयं अपने ऊपर हँसते हैं और कहते हैं –
यह वनमानुष
यह सत्तर साला उजबक
उमंग में भरकर सिर के बाल
नोचने लग जाता है
अकेले में बजाने लगता है सीटियाँ
आठ दिन. 
सचमुच कवि अपने प्रति इतना निर्मम है तो उसे दूसरों के प्रति निर्मम होने का भी पूर्ण अधिकार है। 
नागार्जुन की व्यंग गीतों की धार बहुत पैनी है। भारत में ब्रिटेन की रानी का स्वागत देखकर नागार्जुन लिखते हैं – 
आओ रानी, हम ढोएँगे पालकी, 
यही हुई है राय जवाहरलाल की 
रफ़ू करेंगे फटे-पुराने जाल की 
यही हुई है राय जवाहरलाल की 
आओ रानी, हम ढोएँगे पालकी! 

नागार्जुन की भाषा शैली

नागार्जुन की कविता न तो पूरी तरह प्रगतिशील सांचे में सिमटती है और न ही नयी कविता के कटघरे में बंद की जा सकती हैं।नाटकीयता में तो उनकी कविता अद्वितीय ही है। जैसी सिद्धि उन्हें छंदबद्ध कविता में मिली है वैसे ही मुक्त छंद की कविता में भी। 
नागार्जुन की भाषा के भी अनेक रूप हैं। बोली के ठेठ शब्दों से लेकर संस्कृत की संस्कारी पदावली तक उनकी काव्य भाषा का श्रृंगार करती हैं। नागार्जुन की कविता में उबड़ – खाबड़पन भी कम नहीं है इसीलिए उन्हें प्रतिष्ठित होने में समय अधिक लगा। नागार्जुन की कलापूर्ण कवितायें भी कम नहीं है। 
सचमुच नागार्जुन की कविता सच्चे अर्थों में स्वाधीन भारत के प्रतिनिधि कवि की कविता है। प्रभाकर माचवे ने नागार्जुन के विषय में लिखा है -‘जब नागार्जुन का नाम हिंदी कविता के इतिहास में लिया जाएगा तब अपनी सामाजिक ,राजनितिक व्यंग रचना के लिए वे याद किये जायेंगे।”
पौराणिक प्रतीकों का प्रयोग भी वे खुल कर करते हैं। जनता से जीवित संपर्क रखने वाले कवि नागार्जुन की अनेक कवितायें आन्दोलन धर्मी है ,जिन्हें ‘पोस्टर कवितायें ‘ भी कहा जा सकता है। 

नागार्जुन को १९९० में साहित्य अकादमी पुरस्कार प्रदान किया गया है। हिंदी की महान प्रतिभा का आदर देर से ही सही,उचित सम्मान हुआ है।  

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