बचपन
भला सा था वो बचपन
कोई न जहाँ रंज था,
मुस्कुराता खिलखिलाता
हर रंग था,
कोई जिद्द थी
कुछ मनमानियां थी,
एक ऊगली थी
थाम कर चलने को,
एक आंचल था
चेहरा अपना छिपाने को,
दूर तक फैली अपनों की
थी बाहें,
कुछ बेवकूफियां थी
कुछ नादानियां थी,
रातों में घुलती
दादा दादी की
रोज कहानियां थी,
अब जिंदगी
जिम्मेदारियों में
खो गई,
कभी अपनी थी जो
अब अजनबी सी
हो गई,
अब नही लगते है
मेले दोस्तों के
अब कोई खिलौना भी
याद आता नही
लग न जाये चोट कोई
इस डर से
कोई पास नही बुलाता
थक कर आ जाती नींद अब
अब कहाँ दादी
कोई कहानी सुनाती हैं,
रोज एक किस्सा
लेकर आती है जिंदगी
बचपन तो बस
एक याद सुहानी हैं,
अब कहाँ माँ
नजरे उतरती है,
कहा गुड़िया की तरह
अब बाल सवारती हैं,
अब के झगड़ो से बेहतर थी
बचपन की गुस्ताखियां,
वो काठ के घोड़े
वो परियो की कहानियां.
रूबी श्रीमाली
क़स्बा- बघरा
जिला-मुज़फ्फरनगर
पिन-251306