हिन्दी कहानी मुक्ति

मुक्ति

हने को तो आज छुट्टी का दिन था लेकिन पूनम पूरे दिन घर के कार्यों में व्यस्त थी।  थोड़ी फुर्सत मिली तो फोन उठाकर देखा। व्हाट्सएप मैसेज पर एक सरसरी निगाह डाली । अरे यह क्या, यह तो अभिनव का मैसेज है।  जल्दी से उसने मैसेज खोलकर पढ़ा ।  पढ़कर वह आश्चर्यचकित रह गई । मामी की मृत्यु का समाचार था।  यह सब कब और कैसे हो गया वह मन  ही मन  बुदबुदाई।   कुछ समय पहले पता चला था कि उन्हे कैंसर है , लेकिन अब तो वे पहले से काफी आराम महसूस कर रही थी पूनम की आंखें गीली हो गई । 

उनका अतीत पूनम की आँखों  के सामने चलचित्र की भांति घूमने लगा।  मामी अपने दोनों बच्चों के साथ बहुत ही खुशी-खुशी अपने मायके गई थीं । दोनों बच्चों का हाथ थामे वह  मायके से विदा होने के लिए बाहर निकली थी और बस का इंतजार कर रही थी । तभी अचानक दोनों बच्चों के बीच नोकझोंक हुई और छोटा अभिनव आगे की ओर दौड़ने लगा । तभी तेजी से ट्रक कि चपेट में आ गया । मामी का तो मानो खून सूख गया।  वह बेतहाशा चिल्लाने लगीं । पल भर में वहाँ लोगों कि भीड़ जमा हो गई । ट्रक के गुजर जाने के बाद देखा कि अभिनव तो ठीक था लेकिन उसका पैर बुरी तरह से कुचल गया था।  तुरंत डॉक्टर के पास ले जाया गया । लाख कोशिश करने के बाद भी डॉक्टरों को उसका पैर काटना पड़ा।  उस समय अभिनव की उम्र यही कोई तीन -चार  बरस रही होगी इतनी छोटी उम्र में एक पैर का कट जाना किसी बहुत बड़ी सजा से कम नहीं था । मामी ने न जाने कैसे  इस कष्ट को सहा होगा। 

समय गुजरा और शरीर का घाव भर गया ।अभिनव पूरी तरह से स्वस्थ हो गया, मगर एक अपाहिज बनकर ।  उसका कृत्रिम पैर बनवा दिया गया उम्र बहुत कम थी और हर बरस पैर बढ़ता जा रहा था सो हर बार उसका नया जूता बनवाना पड़ता।  धीरे धीरे जिंदगी के द्वारा दी गई इस सजा को स्वीकार कर लिया गया और जिंदगी अपनी रफ्तार से चलने लगी।  

अभिनव की बड़ी बहन मीनू बड़ी  हुई तो उसके लिए योग्य वर ढूंढ कर उसका विवाह संपन्न करा दिया गया।  साल भर के बाद उसने एक बेटे को जन्म दिया।  मामी भी अब थोड़ी खुश नजर आने लगी थी।  लग रहा था जैसे जिंदगी का कठिन दौर गुजर गया, लेकिन यह शायद उनका वहम था।  ईश्वर को उनकी और परीक्षा लेनी थी । एक  दिन अलका  और उसके पति मोटरसाइकिल से कहीं जा रहे थे । रास्ते में गुंडों ने उन्हें घेर लिया और लूटपाट करने की कोशिश की।  जब उसके पति ने इसका विरोध किया तो उन्होंने उनको वही चाकू से गोदकर मार डाला।  बेचारी अलका  शादी के डेढ़ साल बाद ही विधवा हो गई।  ससुराल वालों ने भी उसे घर से निकाल दिया मामी तो जैसे जीते जी मर गई।  बेटी का गम उनसे सहा नहीं जाता था।  जैसे -जैसे समय गुजरता,  उनके मन में बार-बार यही सवाल आता इतनी लंबी उम्र अलका अकेले कैसे गुजारेगी? उन्होंने एक दृढ़ फैसला लिया और अलका  के लिए फिर से वर की तलाश शुरू कर दी। अलका  के बेटे को उन्होंने अपने पास रखा और अलका  का पुनर्विवाह करा दिया।  कुछ समय ही गुजरा था कि अलका  अचानक गंभीर बीमारी से ग्रस्त हो गई।  बहुत इलाज कराने के बाद भी वह ठीक ना हो पाई और एक दिन इस दुनिया को छोड़ कर चली गई। 

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मामी अब  बिखर चुकी थी एक के बाद एक कष्ट उनका पीछा नहीं छोड़ रहे थे। एक बार उन्होंने फिर से अपने आप को संभालने की कोशिश की। फिर से जिंदगी ने रफ्तारपकड़ने की कोशिश कर रही थी परंतु ईश्वर को अभी भी संतोष नहीं आया,  मामा जी को एक दिन अचानक ब्रेन हेमरेज हुआ और उनकी भी मृत्यु हो गई। 

मामी की आर्थिक स्थिति इतनी अधिक खराब हो गई कि उनको अपना पैतृक घर बेचकर दूसरे शहर में जाकर बसना पड़ा।  मामी तो पूरी तरह से टूट चुकी थी । लेकिन साँसों की डोर बंधी थी तो जीवन जीना ही था अब केवल अभिनव  का सहारा था अभिनव भी ज्यादा नहीं पढ़ पाया था।  किंतु अब तो सारी जिम्मेदारियां उसी के सर पर थी।  उसी को सब कुछ संभालना था।  दूसरे शहर में किराए के मकान पर रहते हुए उसने किसी तरह से अपना छोटा मोटा व्यवसाय शुरू किया ताकि अपना और माँ  का पेट भर सके।  पूनम को आज भी मामी के वे शब्द याद है; जब वह यह कहा करती थी कि मेरे बेटे की तो शादी भी नहीं होगी क्योंकि मेरा बेटा अपाहिज है, उसे कोई अपनी बेटी क्यों  देगा।  ऊपर से आर्थिक स्थिति भी कमजोर ।  धीरे-धीरे समय गुजरा और अभिनव का विवाह हो गया। बहू दूसरे धर्म की थी, लेकिन अच्छी थी।  मामी का और अपने पति का खूब ख्याल रखती थी।  अभिनव का व्यवसाय भी अब अच्छा खासा चल निकला था।  मामी को जिंदगी ने जो घाव दिए  थे, वे भर जाने वाले घाव नहीं थे।  वे हर पल रिसते थे। लेकिन फिर भी समय के साथ उन घावों की पीड़ा थोड़ी कम होने लगी थी।पर  जिंदगी को ये भी बर्दाश्त न हुआ और मामी को कैंसर को इलाज के लिए जब अस्पताल ले जाया गया तो पता चला कि वे कोरोना से ग्रस्त हैं। अभिनव ने उनका बहुत इलाज कराया मगर अब वे थक चुकीं थीं । ईश्वर को भी शायद उन  पर दया आ गई और आज उन्हें इन सब सांसारिक कष्टों  मुक्ति दे दी । 


– दीपशिखा मित्तल  

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