दूर्वांचल/अज्ञेय की कविता

अज्ञेय

पाश्र्व गिरि का नभ्र, चीड़ों में
डगर चढ़ती उमंगों-सी।
बिछी पैरों में नदी ज्यों दर्द की रेखा।
विहग शिशु मौन नीड़ों में
मैंने आँख भर देखा।
दिया मन को दिलासा-पुन: आऊँगा
(भले ही बरस-दिन-अनगिन युगों के बाद)
क्षितिज ने पलक-सी खोली
तमककर दामिनी बोली-
‘अरे यायावर! रहेगा याद?’

 सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन “अज्ञेय” (७ मार्च, १९११- ४ अप्रैल, १९८७) को प्रतिभासम्पन्न कवि, शैलीकार, कथा-साहित्य को एक महत्त्वपूर्ण मोड़ देनेवाले कथाकार, ललित-निबन्धकार, सम्पादक और सफल अध्यापक के रूप में जाना जाता है।

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