सद्दाम हुसैन : प्रचार बनाम सच

सद्दाम हुसैन : प्रचार बनाम सच 

ज से 14 साल पहले ईराकी सरकार को ईराक के पूर्व शासक सद्दाम हुसैन को फाँसी की सज़ा देने में सफलता मिली थी l मगर क्या सद्दाम हुसैन को फाँसी पर चढ़ाना ज़रूरी था ? इस प्रक्रिया में इंसाफ हुआ या इंसाफ का खून हुआ ? इस तरह के अनगिनत सवाल ये फाँसी की सज़ा अपने पीछे छोड़ गई l इन सवालों के जवाब तक पहुँचने के लिए हमें सद्दाम हुसैन प्रकरण की पार्शवभूमी पता होना बेहद ज़रूरी हैं l

सद्दाम हुसैन – जन्म से प्राथमिक शिक्षा तक का सफर 

सद्दाम हुसैन धार्मिक विचारों से प्रभावित ईराक के उदार विचार रखने वाले शासक थे l सद्दाम हुसैन का जन्म 28 एप्रिल 1937 को ईराक की राजधानी बगदाद से करीब 100 मील दूर बसे तकरेत के एक छोटे से गाँव अल औजा में हुआ था l सद्दाम के जन्म होने से पहले ही उन के पिता चल बसे l अल औजा में ही सद्दाम का बचपन बीता l इस गाँव में हमेशा शिया-सुन्नी के बिच संघर्ष होते रहते थे l सद्दाम हुसैन सुन्नी थे (मगर हमें ये भी नहीं भूलना चाहिए के सद्दाम बाथ पार्टी के सदस्य भी थे जो कि एक कम्युनिस्ट विचारधारा में विश्वास रखने वाली राजनीतिक पार्टी थी और कम्युनिज़्म में धर्म को अफीम बताया गया हैं) l जिस गाँव में सद्दाम का जन्म हुआ वहाँ के लोगों का मुख्य पेशा चमड़े का व्यापार था l धीरे धीरे यह व्यवसाय बंद होने की कगार पर था l सद्दाम का बचपन बहुत गरीबी में गुज़रा l सद्दाम के सौतेले पिता छोटे छोटे कारणों से उसे बेरहमी से पीटा करते थे l इसलिए सद्दाम की परवरिश अल खराह में उन के मामा ने की l उन के प्राथमिक शिक्षण की शुरुआत उम्र के 10वे साल में हुई और उन्होंने अपनी प्राथमिक शिक्षा 16 साल की उम्र में पूरी की l सद्दाम ने उम्र के 19वे साल में ईराक के राजतंत्र के खिलाफ असफल बगावत में हिस्सा लिया था l 

राजनीतिक करियर – पार्टी कार्यकर्ता से शासक तक का सफर 

इस के बाद उन्होंने बाथ पार्टी की सदस्यता ली l उस वक्त बाथ पार्टी पुरे अरब जगत में फैली हुई थी मगर ईराक में यह पार्टी हो कर भी ना होने के बराबर थी और इस पार्टी के ईराक में सिर्फ 300 सदस्य थे l फिर 1958 में जनरल अब्दुल करीम कासिम की अगुवाई में हुई बगावत में राजा फैसल द्वितीय का तख्ता पलट हुआ मगर जनरल अब्दुल करीम कासिम को ज़्यादा दिनों तक सत्ता का सुख नहीं मिल सका क्योंकि बाथ पार्टी उन का तख्ता पलट करने की फिराक में थी l इस मुहीम में सद्दाम पेश पेश थे l अपनी कोशिशों में बाथ पार्टी को सफलता तो नहीं मिली मगर सद्दाम के नेतृत्व पर मुहर ज़रूर लग चुकी थी l इस बगावत के दौरान हुए हमले में एक गोली सद्दाम के पैर में लगी जिसे उन्होंने खुद निकल कर मरहम पट्टी की और नदी के रास्ते होते हुए सीरिया के रेगिस्तानों की तरफ फरार हो गए l इस के बाद करीब चार सालों तक सद्दाम हुसैन मिस्र (इजिप्त) में रहे l 

1963 में जब ईराक में बाथ पार्टी सत्ता में आई तब सद्दाम हुसैन अपने देश ईराक लौटे l उस वक्त उन्हें बाथ पार्टी के उपमहासचिव का पद दिया गया l 1969 में सद्दाम को “revolutionary command council” में स्थान मिला l इस से एक साल पहले 1968 में अहमद अल हसन बक्र को ईराक के राष्ट्रपती पद पर बिठाने में सद्दाम ने अहम भूमिका निभाई थी l अहमद अल हसन बक्र कर दिमाग में ईराक और सीरिया को एक कर के एक अखंड देश बनाने की योजना थी l इस योजना के तहत ये तय किया गया कि ईराक का अध्यक्ष इस अखंड देश का अध्यक्ष जब कि सीरिया का अध्यक्ष इस अखंड देश का उपाध्यक्ष होगा l मगर वही दूसरी तरफ सद्दाम को लगता था कि यह योजना ईराक के लिए ज़्यादा लाभदायक नहीं हैं l इस मतभेद के चलते सद्दाम हुसैन ने अहमद अल हसन बक्र को इस्तीफा देने पर मजबूर किया और केवल छह दिनों के अंदर अंदर सत्ता अपने हाथों में ले ली l

सद्दाम हुसैन : उदार, कम्युनिस्ट, सुधारक और सुन्नी शासक 

सद्दाम की ज़िंदगी में आए इस मोड़ के बाद उन का आगे का सफर नाटकीय घटनाओं से भरा पड़ा हैं l ईराक की सत्ता मिलने के बाद सद्दाम ने ईराक को एक आधुनिक राष्ट्र बनाने की दिशा में कदम बढ़ाने शुरू कर दिए l सद्दाम ने ईराक में नैसर्गिक रूप से मौजूद तेल के खज़ानों का योजनाबध्द तरीके से इस्तेमाल किया और अपनी अर्थव्यवस्था को सुधारने की कोशिश की l बगदाद में सभी आधुनिक सुविधाएँ उपलब्ध की l नए व्यवसाय और उद्योगों की स्थापना की l सब से अहम बात सद्दाम ने ईराक को एक सार्वभौम राष्ट्र बनाने की कोशिश की जो अपने फैसले खुद ले सके और ईराक की तकदीर के फैसले वॉशिंगटन में ना हो l सद्दाम ने शरीयत पर आधारित क़ानून व्यवस्था को निकाल बाहर किया l पाश्चिमात्य न्यायव्यवस्था को संपूर्ण ईराक में लागू किया l महिलाओं के लिए शिक्षा, उद्योगों और सरकारी नौकरियों के दरवाज़े खोले l सद्दाम ने महिलाओं को पश्चिमी ढंग के कपड़े पहनने की भी इजाज़त दी l भले ही आज 21वी सदी में सद्दाम के ये काम हमें आम मालूम हो मगर हमें यह नहीं भूलना चाहिए के सद्दाम ने यह फैसले ईरान और सऊदी अरब जैसे देशों का पड़ोसी होते हुए दशकों पहले लिए l 

सद्दाम हुसैन : ईरान और कुवैत के साथ जंगें 

1980-88 तक करीब आठ सालों तक ईराक का ईरान के साथ संघर्ष शुरू था l ईरान में वहाँ के शासक शाह मोहम्मद रज़ा पहलवी का तख्ता पलट कर के शिया धर्मगुरु आयतुल्लाह खुमैनी सत्ता में आए थे l आयतुल्लाह खुमैनी के शिया आंदोलन की आँच ईराक के सार्वभौमत्व तक पहुँच रही थी l एक तरह से ये लड़ाई राजनीतिक और विचारों की लड़ाई थी l आयतुल्लाह खुमैनी की सरकार ईराक के शिया समुदाय को उकसा रही थी l यहाँ ये बात अहम हैं कि ईराक एक शिया बहुल देश हैं जब कि सद्दाम हुसैन सुन्नी थे l इस से पहले कर आयतुल्लाह खुमैनी ईराक में कोई उथल पुथल मचाते सद्दाम हुसैन ने ईरान पर हमला कर दिया l उस हमले के दौरान अमेरिका और अन्य पश्चिमी देश सद्दाम हुसैन की हर तरह से मदद कर रहे थे, उन्हें समर्थन दे रहे थे l उस समय किसी भी देश को नहीं लगा कि सद्दाम का व्यवहार मानवता के खिलाफ हैं l इन देशों में अमेरिका, रशिया और फ्रांस भी शामील थे l 

सद्दाम हुसैन
सद्दाम हुसैन

संपूर्ण अरब जगत सद्दाम के साथ खड़ा था क्योंकि खुमैनी को आँख दिखाने की हिम्मत सिर्फ उसी में थी l इस का परिणाम ये हुआ के अरब देशों ने भी बड़े पैमाने पर आर्थिक और हर तरह की मदद सद्दाम हुसैन को की l इसी युद्ध में ईराक-कुवैत युद्ध के बीज भी नज़र आते हैं l ईराक ने ईरान पर हमला किया, फिर ईरान ने भी जवाबी कारवाई की l सद्दाम का दावा था कि ईरान के हमले में कुवैत सुरक्षित था इसलिए इस जंग के चलते ईराक पर क़र्ज़ का जो बोझ था उस का भुगतान ईराक और कुवैत संयुक्त रूप से करे l साथ ही कुवैत को चाहिए कि वह ईराक पर उस का 30 बिलियन का जो क़र्ज़ था वो माफ़ करें l इसी के साथ सद्दाम ने यह भी सुझाव दिया कि कुवैत तेल का प्रमाणीकरण करे और तेल का उत्पादन कम कर दे l इस से अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में तेल के दाम बढ़ेंगे और ईराक को अपना कर्ज़ चुकाने में आसानी होगी l मगर कुवैत ने इन सुझावों को मानने से इनकार कर दिया और बड़े पैमाने पर अंतरराष्ट्रीय बाज़ारों में तेल सप्लाई करता रहा l यही ईराक-कुवैत युद्ध का तत्कालिक कारण बना l

उस समय भी अमेरिका सद्दाम हुसैन का समर्थन कर रहा था और उन्हें मदद कर रहा था l इसी दौरान सऊदी अरब के नेता अमेरिका को सद्दाम के खिलाफ भड़काने में सफल हुए l सऊदी अरब के नेताओं ने यह बात अमेरिका के गले उतार दी कि, “सद्दाम हुसैन धीरे धीरे संपूर्ण अरब जगत पर कब्ज़ा कर लेंगे और फिर तेल का उत्पादन अपनी मर्ज़ी से करेंगे l इस से अमेरिका को नुकसान होगा l” इस का परिणाम ये हुआ कि जनवरी 1991 में अमेरिका के हवाई दल ने बगदाद पर हमला कर दिया l मगर उस वक्त अमेरिका की मंशा सद्दाम को सत्ता से दूर करना नहीं बल्की कुवैत को ईराक से मुक्त कराना था l यहाँ अमेरिका ने एक तरह से सद्दाम हुसैन के साथ विश्वासघात किया था क्योंकि जुलाई 1990 में अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपती जॉर्ज बुश (सीनियर) और राज्य सचिव जेम्स बेकर स्पष्ट कर चुके थे कि, “ईराक-कुवैत संघर्ष और युद्ध में अमेरिका शामील नहीं होगा l” परंतू बगदाद पर अमेरिका के हवाई हमले ने अमेरिका की कथनी और करनी में फरक पर मुहर लगा दी l

अमेरिका की तेल की प्यास का शिकार : सद्दाम हुसैन 

रशिया के पतन के बाद एक ध्रुवीय विश्व रचना वजूद में आई l अमेरिका विश्व का अकेला सुपर पावर देश था l अमेरिका के हौसले बुलंद थे l अमेरिका की नज़र मध्य पूर्व एशिया के तेल के खज़ानों पर थी l  अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपती जॉर्ज बुश (सीनियर) तो तेल के व्यापरी भी थे l सऊदी अरब से कुवैत तक के तेल के भंडारों पर परोक्ष रूप से अमेरिका का कब्ज़ा था l सवाल था तो सिर्फ सद्दाम हुसैन का l वही सद्दाम हुसैन जो एक ज़माने से अमेरिका की आँखों का तारा थे और अमेरिका उन का कदम कदम पर समर्थन और मदद करता था अब वही सद्दाम हुसैन अमेरिका को अपने तेल के साम्राज्य की राह का काँटा लगने लगे थे क्योंकि मध्य पूर्व एशिया में अमेरिका को आँख दिखाने की हिम्मत सिर्फ सद्दाम हुसैन में थी l

अमेरिका की अर्थव्यवस्था हमेशा सस्ते दामों पर मिलने वाले तेल के सप्लाई पर निर्भर थी l 1973 में अरब राष्ट्रों और इज़राइल के बिच सिक्स डे वॉर हुआ था l इस युद्ध में अमेरिका और अन्य मित्र राष्ट्रों ने इज़राइल का समर्थन किया था l फल स्वरुप ओपेक (Organisation of Petroleum Exporting Countries) ने पश्चिमी देशों को तेल सप्लाई करना बंद कर दिया था l ओपेक ने जिन देशों को तेल सप्लाई करना बंद किया था उन देशों में अमेरिका और पश्चिमी यूरोप के इज़राइल समर्थक देश शामील थे l इसी दौरान ओपेक ने तेल के दाम चार गुना बढ़ा दिए थे l 2004 में ब्रिटिश सरकार द्वारा प्रकाशित एक डॉक्यूमेंट से पता चलता हैं कि, “ओपेक द्वारा लगाई गई पाबंदी से अमेरिकी अर्थव्यस्था की कमर टूट गई थी l इसलिए अमेरिका ने सऊदी अरब और कुवैत में घुस कर वहाँ के तेल भंडारों पर कब्ज़ा करने की योजना बनाई थी l” दुनिया की आबादी का सिर्फ 05 % हिस्सा अमेरिका में रहती हैं जबकि दुनिया में उत्पादित होने वाले तेल का 25 % इस्तेमाल अकेला अमेरिका करता हैं l इस से साफ़ ज़ाहीर हैं कि अमेरिका की अर्थव्यवस्था किस हद तक तेल पर निर्भर हैं l 

सद्दाम के ईराक पर हमला : अमेरिका का दोगलापन 

हमेशा सस्ते दामों पर तेल का मिलना अमेरिका की ज़रूरत हैं और ईराक पर अमेटिका अमेरिका के हमले का मुख्य कारण भी यही था l जॉर्ज बुश (जूनियर) ने ईराक पर हमले के जो कारण दुनिया को बताए थे वो ना तो मानने लायक थे और ना ही तार्किक l ईराक पर हमले के समर्थन में बुश द्वारा बताए गए मुख्य कारणों में से एक कारण ईराक के पास महाविनाशकारी रासायनिक हथियारों का होना था l इन हथियारों की तलाश में संयुक्त राष्ट्र संघ (UNO) की एक समिति ने ईराक का दौरा भी किया था l इस कमिटी को ईराक में ऐसे कोई हथियार नहीं मिले जैसे अमेरिका ने बताए थे l इस के बाद संयुक्त राष्ट्र संघ ने अमेरिका को ईराक पर हमला ना करने का फरमान सुनाया था मगर इस के बावजूद अमेरिका ने ईराक पर हमला किया था l अमेरिका ने ईराक पर हमला करने का दूसरा कारण बताया था कि, सद्दाम हुसैन अल कायदा को मदद कर रहे हैं l जब की यह आरोप झूठा था और इस में कोई तथ्य नहीं था क्योंकि सद्दाम हुसैन उदार विचारों के समर्थक थे जब कि अल कायदा कट्टरवाद का समर्थन करता था l सद्दाम हुसैन कभी भी किसी भी कट्टरवादी संगठन को मदद और समर्थन करने वालो में से नहीं थे l इन दोनों आरोपों को साबित करने वाला कोई सबूत अमेरिका पेश नहीं कर पाया था l इस के बावजूद 2003 में अमेरिका की सेना ने ईराक पर हमला कर दिया l अमेरिका के इस हमले में 22 जुलाई 2003 को सद्दाम के दोनों बेटे उदय और कुसई मारे गए l इसी दौरान सद्दाम हुसैन को भी अंडर ग्राउंड होना पड़ा l सद्दाम के अंडर ग्राउंड होने की अहम वजह यह थी कि कोई भी अरब राष्ट्र अमेरिका के इस हमले के खिलाफ या सद्दाम के साथ खड़ा नहीं हुआ था l इसलिए सद्दाम अकेले पड़ गए और उन के सामने अंडर ग्राउंड होने के सिवा दूसरा रास्ता नहीं बचा था l इस के 13 दिसंबर 2003 को अमेरिका ने अधिकृत घोषणा की कि उस ने सद्दाम हुसैन को गिरफ्तार कर लिया हैं l इस के ऑक्टोबर 2005 में सद्दाम पर शिया समुदाय के 148 लोगों की हत्या का आरोप लगा कर न्यायालय में उन के खिलाफ याचिका दायर की गई l यहाँ एक बात खटकती हैं कि ईराक पर हमला करने के समर्थन में अमेरिका ने जो कारण दिए थे वह और सद्दाम पर याचिका दायर करते समय जो आरोप लगाए गए वह दोनों भिन्न थे l ऐसा क्यों ?

सद्दाम हुसैन को फाँसी : इंसाफ का खून 

इस के बाद 05 नवंबर 2006 को ईराकी न्यायालय ने सद्दाम को फाँसी की सज़ा सुनाई l इस केस में कुछ बातें खटकती हैं l इस केस के दौरान ईराकी न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को कई बार बदला गया l सद्दाम हुसैन के वकीलों में से तीन वकीलों और एक गवाह की हत्या कर दी गई थी l जो गवाह इस केस के दौरान न्यायालय में पेश किये गए उन से सद्दाम के वकीलों को क्रॉस क्वेश्चन नही करने दिए गए क्योंकि न्यायालय का यही आदेश था l आखिर में न्यायालय ने सद्दाम के खिलाफ 300 पेज का जो फैसला सुनाया उसे चुनौती देने के लिए सद्दाम के वकीलों को सिर्फ 15 दिनों का समय दिया गया l इस फैसले में कई कानूनी पेच और मुद्दे थे जिन का अभ्यास करने और उन का उत्तर देने के लिए ज़्यादा समय दरकार था मगर सद्दाम के वकीलों की मांग करने के बावजूद उन्हें समय बढ़ा कर देने से न्यायालय ने इनकार कर दिया l इन सभी बातों से यही निष्कर्ष निकलता हैं कि यह पूरी न्यायिक प्रक्रिया सदोष थी l

ईराकी क़ानून के अनुसार फाँसी की सज़ा का आदेश राष्ट्रपती द्वारा नियुक्त तीन सदस्यीय कमिटी की सहमती से निकाला जाता हैं l इस कमिटी में शिया, सुन्नी और कूर्द तीनों समुदायों का एक एक प्रतिनिधी होता हैं l मगर सुन्नी सदस्य फाँसी के आदेश का विरोध करेगा इस डर से उस समय के ईराकी प्रधानमंत्री ने सारे अधिकार अपने पास केंद्रित कर लिए l इसी तरह ईराकी क़ानून में यह भी प्रावधान था कि 70 साल की उम्र से अधिक वाले ईराकी को फाँसी की सज़ा नहीं दी जा सकती l इसलिए 30 दिसंबर 2006 को जब संपूर्ण मुस्लिम जगत ईद-उल-अदहा का त्यौहार मनाने में मग्न था ईराक में सद्दाम हुसैन को फाँसी पर चढ़ा दिया गया l 

कूर्द नेताओं की मांग थी कि सद्दाम हुसैन पर जेनोसाइड का मुकदमा चलाया जाए और उस मुक़दमे का फैसला आने के बाद सद्दाम को फाँसी की सज़ा दी जाए क्योंकि ईरान-ईराक युद्ध के दौरान बड़े पैमाने पर कुर्दों की हत्या की गई थी l मगर अमेरिका और शिया प्रधानमंत्री मलीकी को यह विलंब मान्य नहीं था l उस समय के ईराकी प्रधानमंत्री मलीकी द्वारा एक पत्रक प्रकाशित किया गया था, जिस में कहा गया था कि, “अगर कोई सुन्नी सोचता हैं कि वह ईराक पर फिर से राज करेंगे तो वह अपने दिमाग से यह खयाल निकाल दे l” इस कथन का अर्थ यह भी होता हैं कि शियों ने अपना बदला ले लिया l मलीकी का यह बयान ईराक की शांती, सुव्यवस्था और अखंडता पर हमला था l 

सद्दाम हुसैन की फाँसी से पहले और बाद की तसवीर 

सद्दाम हुसैन की फाँसी के बाद अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपती जॉर्ज बुश (जूनियर) और इंग्लैंड के प्रधानमंत्री टोनी ब्लेयर ने बयान जारी करते हुए कहा था कि, “ऐसा नहीं हैं कि सद्दाम की फाँसी ईराक में शांती स्थापित करने और वहाँ के हिंसाचार को कम करने में मददगार साबित होगी l” अब यहाँ सवाल यह पैदा होता हैं कि जब सद्दाम की फाँसी से ईराक में ना हिंसाचार थमने वाला था और ना शांती स्थापित होने वाली थी तो फिर सद्दाम हुसैन को फाँसी देने में इतनी जल्दबाज़ी क्यों की गई ? 

न्यू यॉर्क विश्वविद्यालय में क़ानून के प्रोफेसर तथा UNO के विशेषाधिकारी रहे चुके फिलिप अलस्टोन ने बिल्कुल साफ़ शब्दों में कहा था कि, “सद्दाम हुसैन पर चलाए गए मुकदमे और उन्हें दी गई फाँसी की प्रक्रिया में न्याय का अभाव दिखाई देता हैं l” यह बयान बहुत कुछ बयान करता हैं l बस बिटवीन दी लाइन देखने की ज़रूरत हैं l 

एक वक्त में अरब जगत के खास मित्र रहे चुके सद्दाम को नंबर एक का शत्रु बनाने के लिए अमेरिका ने 9/11 के हमले का योजनाबध्द तरीके से इस्तेमाल किया l ‘वॉशिंगटन पोस्ट’ में पत्रकार रहे चुके ‘बॉब वुडवर्ड’ ने अफगानिस्तान पर अमेरिका के हमले के बाद ‘बुश ऐट वॉर’ नामक पुस्तक लिखी थी l इस के बाद बॉब वुडवर्ड ने अमेरिका के ईराक पर हमले पर ‘प्लान ऑफ़ अटैक’ और हमले के बाद के ईराक पर ‘स्टेट ऑफ़ डिनायल’ नामक पुस्तकें लिखी थी l इस में साफ़ तौर पर दर्ज हैं कि उस समय अमेरिका में सऊदी अरब के राजदूत रहे बंदार बिन सुलतान के फार्म हाउस पर बुश सीनियर ने बुश जूनियर के राष्ट्रपती बनने से पहले एक पार्टी का आयोजन किया था l उस पार्टी के दौरान बुश जूनियर की बंदार से हुई बातचीत के आवेश से पता चलता था कि अगर 9/11 का हमला ना भी होता तो भी बुश जूनियर ईराक पर हमले की योजना बना चुके थे l 

सद्दाम हुसैन : कुर्दों का हत्याकांड और यूरोप का दोगलापन 

कूर्द नेताओं की मांग थी कि सद्दाम हुसैन पर कुर्दों के जेनोसाइड का मुकदमा चलाया जाए l मगर यहाँ सवाल यह पैदा होता हैं कि कूर्द जिन रासायनिक और जैविक हथियारों से मारे गए थे वह रासायनिक और जैविक हथियार ईराक पास आए कहाँ से थे ? 

अमेरिकन सीनेट की बैंकिंग, गृहनिर्माण और नागरी व्यवहार समीती की 25 मई 1994 की रिपोर्ट में जैविक और रासायनिक युद्ध में इस्तेमाल होने वाले रसायन ईराक को निर्यात किए जाने का ज़िक्र हैं l 1985 के पहले से जैविक हथियारों के लिए लगने वाले केमिकल अमेरिकी कंपनीयाँ लगातार ईराक को सप्लाई कर रही थी l इन केमिकल में अथ्रेक्स बनाने के लिए लगने वाले बैसीलस अथ्रासिस से ले कर ब्रूसेला मेलिटेनोसीस तक महाभयंकर केमिकल शामील हैं l वही दूसरी तरफ 1985 में इंग्लैंड ने ढाई लाख पाउंड कीमत का थिओडायग्लिकॉल (जिस से मस्टर गॅस बनती हैं) ईराक को सप्लाई किया था l इन सब जैविक और रासायनिक हथियारों के इस्तेमाल के कारण बड़े पैमाने पर बेगुनाह लोग मारे गए l

इस हत्याकांड में इंग्लैंड और अमेरिका ने सद्दाम हुसैन की मदद की थी l सद्दाम हुसैन पर 148 शियों की हत्या का आरोप था l इसी को ले कर उन पर मुकदमा चलाया गया और फाँसी की सज़ा हुई l हमें यहाँ यह नहीं भूलना चाहिए के उन 148 शियों को सद्दाम ने इसलिए सज़ा-ए-मौत दी थी क्योंकि वे ईराकी सरकार के बागी थे l सद्दाम हुसैन का यह कदम ईराक की एकता और अखंडता को टिकाए रखने के लिए लिया गया कठोर फैसला था l 

अमेरिका की कथनी और करनी में फर्क 

अमेरिका के पूर्व विदेश मंत्री कॉलीन पॉवेल ने कहा था कि, “ईराक का तेल ईराकी जनता की संपत्ती हैं l” सद्दाम हुसैन की हत्या के बाद अमेरिकी रक्षा मंत्रालय के उपमंत्री पॉल व्होल्फोवित्झ ने भी बयान दिया था कि, “अगले 2-3 सालों ईराकी तेल से होने वाली कमाई ईराक के पुनर्निर्माण के लिए इस्तेमाल की जाएगी l” मगर यह सिर्फ बयान थे l इस के बाद अमेरिका की कथनी और करनी में फरक को संपूर्ण विश्व ने देखा l हमें ये भी याद रखना चाहिए के उस समय के अमेरिकी राष्ट्रपती जॉर्ज बुश जूनियर खुद तेल के व्यापरी थे और उस समय अमेरिका की विदेश मंत्री रहे चुकी कोंडालीसा राईस खुद भी शेव्हरॉन नामक तेल कंपनी की संचालिका रहे चुकी हैं l 

इथोपियन सेना द्वारा सोमालिया पर किया गया हमला भी अमेरिका की साज़िश का ही हिस्सा था l इस में अमेरिका की योजना यह थी कि रेड सी और एडन के समुद्री मार्ग से होने वाली तेल सप्लाई को आसान बनाया जाए l यही कारण था कि अमेरिका की खुफिया एजेंसी CIA सोमालिया स्थित ‘अलायन्स फॉर रिस्टोरेशन ऑफ़ पीस एंड काउंटर टेररईज़म’ को हर महीने कई डॉलर सप्लाई करता था l

इस विश्लेषण से अमेरिका की अरब जगत पर, वहा के तेल भंडारों पर और इस के ज़रिये पूरी दुनिया पर नियंत्रण रखने की छुपी हुई ईच्छा जग ज़ाहीर होती हैं l इस पार्श्वभूमी के विश्लेषण के बाद यही सवाल मन में उठता हैं कि, क्या सच में सद्दाम हुसैन के साथ न्याय हुआ ? या फिर इंसाफ का गला घोंटा गया ? जिसे पूरी दुनिया ने खामोश रहे कर अमेरिका की दादागिरी को अपना समर्थन दिया और UNO भी ईराक पर हुए अत्याचार पर मूकदर्शक बना रहा l

इन्साफ भी अगर कातील की हिमायत में जाएगा

यही रीत अगर रही तो फिर कौन अदालत में जाएगा

प्रा. शेख मोईन शेख नईम 

डॉ. उल्हास पाटील लॉ कॉलेज, जलगाँव

7776878784

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