अखबार पर कविता
सुबह सवेरे जिसका हो इंतजार
दिल से, चाय की चुस्की के साथ
फिर चले –
ज्ञान का भंडार
पढ़कर जिसे लगे हम भी बन गए खबरची
जब तक बतला ना ले
सब खबरों को सुना ना ले
मचलता रहता है ये “जी’
इसमें देश-विदेश की हर समस्या
हर स्थिति से अवगत होते
अखबार पर कविता |
लगता इसे पढ़कर
लग गया “ठप्पा” हर खबर पर
फिर कुछ “ना ,”मन घड़ंत होते
पढ़ा! “तुमने “क्या ?आज!
अखबार में छप गया
अब कुछ ना रहा “राज”
आंदोलनों को हमेशा बल प्रदान किया
बीते जमाने से ही “इसने” समाज को प्रदर्शित किया
सही बुरे की होती असली पहचान
पत्रकारिता का भी रखे “ये,”मान
हर देश हर समाज
हर घर की बढ़ाती “ये ,”शान
सब वर्ग सब बंधु समाज का रखें यह ख्याल
ग्रहणी, विद्यार्थी, नेता ,अभिनेता
व्यापारी हो
चाहे खिलाड़ी हो
सबके लिए हर एक अलग पेज
सभी के लिए होता “यह,” लेस
भाषा को विकसित करने में
लोकतंत्र की गरिमा बनाने में
केवल स्याही से नहीं भरा जाता
नापतोल कर ही इसमें लिखा जाता
अनुपस्थिति में इसके जी ना लग पाता
रहता खाली दिन भी
खोती स्वाद चाय की चुस्की
ना फिर लग पाता खुशी का अंबार
ऐसा होता अखबार
ऐसा होता अखबार
– सोनिया अग्रवाल