कैदी और कोकिला kaidi aur kokila kavita
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कैदी और कोकिला कविता का अर्थ
क्या गाती हो ?
क्यों रह-रह जाती हो ?
कोकिल बोलो तो !
क्या लाती हो ?
संदेशा किसका है ?
कोकिल बोलो तो !
भावार्थ – प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि ‘माखनलाल चतुर्वेदी’ जी के द्वारा रचित कविता ‘कैदी और कोकिला’ से ली गई हैं | कवि के द्वारा जेल में बंद स्वतंत्रता सेनानी की मनोदशा और पीड़ा को व्यक्त किया गया है | जब कोयल कवि को अर्द्धरात्री में चीखती-गाती हुई नज़र आई, तो उनके मन में कई तरह के भावपूर्ण प्रश्न उत्पन्न होने लगे कि कोयल उनके लिए कोई प्रेरणात्मक संदेश लेकर आयी होगी | जब कवि से रहा नहीं गया तो वे कोयल से प्रश्न पूछने लगते हैं —
कोकिल ! तुम क्या गा रही हो ? आखिर गाते-गाते बीच में चुप क्यों हो जाती हो ? मुझे भी बताओ | क्या तुम मेरे लिए कोई संदेशा लेकर आई हो ? मुझे बताओ, किसका संदेशा है ? कोकिल ! मुझे भी बताओ |
(2)- ऊँची काली दीवारों के घेरे में,
डाकू, चोरों, बटमारों के डेरे में,
जीने को देते नहीं पेट-भर खाना
मरने भी देते नहीं, तड़प रह जाना!
जीवन पर अब दिन-रात कड़ा पहरा है,
शासन है, या तम का प्रभाव गहरा है ?
हिमकर निराश कर चला रात भी काली,
इस समय कालिमामयी जगी क्यूँ आली ?
भावार्थ – प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि ‘माखनलाल चतुर्वेदी’ जी के द्वारा रचित कविता ‘कैदी और कोकिला’ से ली गई हैं | इन पंक्तियों में कवि ने पराधीन भारतीयों के प्रति ब्रिटिश शासन की क्रूरता को उजागर करने का प्रयास किया है | कवि एक स्वतंत्रता सेनानी और कैदी के रूप में जेल के भीतर उनके साथ होने वाले अत्याचार को व्यक्त करते हुए कहते हैं कि उन्हें जेल के भीतर अंधकारमय ऊँची दीवारों के घेरे में रख दिया गया है, जहाँ अपमानित होकर डाकू, चोरों, लुटेरों के साथ रहना पड़ता है | न जीने के लिए पेट भर खाना नसीब होता है और न ही मरने की छूट दी जाती है | ज़ख़्मी शरीर को तड़पता हुआ छोड़ देना ही शासन का उद्देश्य है शायद | कैदियों की स्वतंत्रता छीनकर रात-दिन का कड़ा पहरा लगा दिया गया है | जब कवि आसमान की ओर देखते हैं, तो आशा रूपी चन्द्रमा नहीं दिखाई देता, बल्कि अंधकार रूपी निराशा हाथ लगती है | तभी कवि कोयल को संबोधित करते हुए कहते हैं कि — “हे कोयल ! इतनी काली घनघोर रात में तू क्यूँ जाग रही है ? मुझे भी बताओ |”
(3)- क्यों हूक पड़ी ?
वेदना बोझ वाली-सी,
कोकिल बोलो तो !
क्या लूटा ?
मृदुल वैभव की
रखवाली-सी,
कोकिल बोलो तो !
भावार्थ – प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि ‘माखनलाल चतुर्वेदी’ जी के द्वारा रचित कविता ‘कैदी और कोकिला’ से ली गई हैं | जेल में कैद भारतीयों की वेदनाओं का एहसास कोयल को भी था | शायद इसलिए कोयल की आवाज़ में कवि ने दर्द महसूस किया | उन्हें लगा कि कोयल ने अँग्रेजी़ हुकूमत के द्वारा भारतीयों पर किए जाने वाले अत्याचार को देख लिया है | इसीलिए उसके कंठ से मीठी ध्वनि के बदले वेदना का स्वर फूट रहा है | कोयल को देखकर कवि को लगा कि कोयल अपनी वेदना साझा करना चाह रही हो | कवि कोयल से पूछते हैं कि — “हे कोयल ! तुम्हारा क्या लूट गया है ? मुझे भी बताओ |” उस समय कोयल की मीठी आवाज़ कहीं गुम हो गई थी, जो मीठी आवाज़ उसकी वैभव और पहचान है | कोयल का दुखद भाव देखकर कवि पूछते हैं कि — “हे कोयल ! आखिर तुम पर कैसा दुख का पहाड़ टूटा है ? मुझे भी बताओ |”
(4)- क्या हुई बावली ?
अर्द्धरात्री को चीखी,
कोकिल बोलो तो !
किस दावानल की
ज्वालाएँ हैं दीखीं ?
कोकिल बोलो तो !
भावार्थ – प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि ‘माखनलाल चतुर्वेदी’ जी के द्वारा रचित कविता ‘कैदी और कोकिला’ से ली गई हैं | इन पंक्तियों के माध्यम से कवि कोयल को संबोधित करते हुए कहते हैं कि अर्द्धरात्री में तेरा वेदनापूर्ण स्वर में चीखना-गाना मुझे कुछ अशुभ लगा है | तुम बताओ, आखिर तुम्हें हुआ क्या है ? क्या कोई पीड़ा तुम्हें सता रहा है ? आगे कवि ब्रिटिश शासन की क्रूरता की ओर इशारा करते हुए कोयल से कहते हैं कि — “क्या तुम्हें संकट रूपी जंगल में लगी हुई आग की ज्वालाएँ दिख गई हैं ? हे कोयल ! मुझे भी बताओ, तुम्हें हुआ क्या है ?”
(5) क्या ? — देख न सकती ज़ंजीरों का गहना ?
हथकड़ियाँ क्यों ? ये ब्रिटिश-राज का गहना,
कोल्हू का चर्रक चूँ ? — जीवन की तान,
गिट्टी पर अँगुलियों ने लिखे गान !
माखनलाल चतुर्वेदी |
हूँ मोट खींचता लगा पेट पर जूआ,
खाली करता हूँ ब्रिटिश अकड़ का कूँआ |
दिन में करुणा क्यों जगे, रुलानेवाली,
इसलिए रात में गज़ब ढा रही आली ?
भावार्थ – प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि माखनलाल चतुर्वेदी जी के द्वारा रचित कविता ‘कैदी और कोकिला’ से ली गई हैं | कवि को अचानक से अनुभव हुआ कि शायद कोयल उन्हें ज़ंजीरों में जकड़ा हुआ देखकर चीख पड़ी होगी | तभी कवि कोयल से कहते हैं कि — क्या तुम हमें ज़ंजीरों में जकड़ा देख नहीं सकती ? यही तो हमारी पराधीनता का प्रतिफल है, जो ब्रिटिश शासन के द्वारा दिया गया एक प्रकार का गहना है | अब तो मानो कोल्हू चलने की आवाज़ हमारे जीवन का गान बन गया है | कड़ी धूप में पत्थर तोड़ते-तोड़ते उन पत्थरों पर अपनी उंगलियों से देश की स्वतंत्रता का गान लिख रहे हैं | हम अपने पेट पर रस्सी बांधकर चरसा खींच-खींचकर ब्रिटिश सरकार की अकड़ का कुआँ खाली कर रहे हैं | अर्थात् कवि कहना चाहते हैं कि हम इतने दुःख सहने के बावजूद भी ब्रिटिश हुकूमत के सामने घुटने नहीं टेक रहे हैं, इससे उनकी कुआँ रूपी अकड़ अवश्य कम हो जाएगी | आगे कवि कोयल को संबोधित करते हुए कहते हैं कि अर्द्धरात्री में तुम्हारे इस वेदना भरी आवाज़ ने मेरे ऊपर ग़जब ढा दिया है और मेरे मन-हृदय को व्याकुलता से भर दिया है |
(6)- इस शांत समय में,
अंधकार को बेध, रो रही क्यों हो ?
कोकिल बोलो तो !
चुपचाप, मधुर विद्रोह-बीज
इस भाँति बो रही क्यों हो ?
कोकिल बोलो तो !
भावार्थ – प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि माखनलाल चतुर्वेदी जी के द्वारा रचित कविता ‘कैदी और कोकिला’ से ली गई हैं | इन पंक्तियों के माध्यम से कवि कोयल को संबोधित करते हुए कहते हैं कि रात्रि का आधा पहर गुजर चुका है और वातावरण में सन्नाटा पसरा है | इस सन्नाटे को भेदते हुए तुम क्यूँ रो रही हो ? मुझे भी बताओ कोयल ! क्या तुम ब्रिटिश शासन के विरुद्ध विद्रोह का बीज बो रही हो ? मुझे भी बताओ कोयल ! अर्थात् कवि के उक्त पंक्तियों के अनुसार, कोयल भारतीयों में देशभक्ति की भावना जागृत करना चाहती है | ताकि पराधीनता की ज़ंजीरों से हम मुक्त हो सकें |
(7)- काली तू, रजनी भी काली,
शासन की करनी भी काली,
काली लहर कल्पना काली,
मेरी काल कोठरी काली,
टोपी काली, कमली काली,
मेरी लौह-श्रृंखला काली,
पहरे की हुंकृति की ब्याली,
तिस पर है गाली, ऐ आली !
भावार्थ – प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि ‘माखनलाल चतुर्वेदी’ जी के द्वारा रचित कविता ‘कैदी और कोकिला’ से ली गई हैं | इन पंक्तियों के माध्यम से कवि कोयल को संबोधित करते हुए कहते हैं कि हमारे जीवन में सबकुछ दुःख रूपी काली ही काली है | समस्त स्वतंत्रता संग्राम के नायकों का प्रतिनिधित्व करते हुए, कवि एक कैदी के रूप में कोयल से कह रहे हैं कि देखो ! तू भी काली है और ये दुखों की रात भी काली है | साथ में शासन के कष्टदायक इरादे भी काले हैं | हम जिस कोठरी में रहते हैं, वह भी काली है और आस-पास चलने वाली हवा के साथ-साथ यहाँ से मुक्ति पाने की कल्पना भी काली है | हमने जो टोपी पहनी है, वह भी तो काली है और जो कम्बल तन को ढका है, वह भी काला है | जिन लौह-ज़ंजीरों से हमें कैद किया गया है, वह भी काली है | आगे कवि भावात्मक रूप में कहते हैं कि दिन-रात इतने कठोर यातनाओं को सहने के बाद भी हमें पहरेदारों की हुंकार और गाली को सहन करना पड़ता है |
(8)- इस काले संकट-सागर पर
मरने की, मदमाती !
कोकिल बोलो तो !
अपने चमकीले गीतों को
क्योंकर हो तैराती !
कोकिल बोलो तो !
भावार्थ – प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि ‘माखनलाल चतुर्वेदी’ जी के द्वारा रचित कविता ‘कैदी और कोकिला’ से ली गई हैं | इन पंक्तियों के माध्यम से कवि कोयल को संबोधित करते हुए कहते हैं कि कोयल मुझे समझ में नहीं आ रहा है कि तुम स्वतंत्र होने के बाद भी आधी रात में संकट रूपी कारागार के आस-पास मंडराकर अपनी मदमस्त ध्वनि में स्वतंत्रता की भावना जागृत करने वाली गीत क्यूँ गाए जा रही हो ? क्या तुम्हें किसी से डर नहीं लगता ? बोलो कोयल !
(9)- तुझे मिली हरियाली डाली,
मुझे नसीब कोठरी काली !
तेरा नभ-भर में संचार
मेरा दस फुट का संसार !
तेरे गीत कहावें वाह,
रोना भी है मुझे गुनाह !
देख विषमता तेरी-मेरी,
बजा रही तिस पर रणभेरी !
भावार्थ – प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि ‘माखनलाल चतुर्वेदी’ जी के द्वारा रचित कविता ‘कैदी और कोकिला’ से ली गई हैं | इन पंक्तियों के माध्यम से कवि कोयल को संबोधित करते हुए कहते हैं कि तुम पूर्ण रूप से स्वतंत्र हो कोयल, पूरा आसमान तुम्हारा ठिकाना है, तुम्हारे गीतों पर लोगों की प्रशंसापूर्वक तालियाँ बज उठती हैं | परन्तु, इसके विपरीत मेरे नसीब में पराधीनता की काली रात है, जेल के चार दीवारी के भीतर ही मेरा काला संसार है, मैं चीखता-रोता भी हूँ, तो कोई मेरे आँसू पोंछने नहीं आता, मानो मेरा रोना कोई बहुत बड़ा गुनाह हो | हमारी परिस्थितियाँ अलग-अलग हैं | आगे कवि कोयल को संबोधित करते हुए कहते हैं कि मैं तुमसे जानना चाहता हूँ कि तुम युद्ध का गीत क्यूँ गा रही हो ? तुम तो आजाद हो, मुझे बताओ कोयल !
(10)- इस हुंकृति पर,
अपनी कृति से और कहो क्या कर दूँ ?
कोकिल बोलो तो !
मोहन के व्रत पर,
प्राणों का आसव किसमें भर दूँ !
कोकिल बोलो तो !
भावार्थ – प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि ‘माखनलाल चतुर्वेदी’ जी के द्वारा रचित कविता ‘कैदी और कोकिला’ से ली गई हैं | इन पंक्तियों के माध्यम से कवि कहते हैं कि मैंने ब्रिटिश हुकूमत की यातना सह रहे भारतीय कैदियों में कोयल की विद्रोह भरी आवाज़ के माध्यम से बूढ़ी हड्डियों में भी जान फूंकने का काम कर दिया है | अर्थात्, जिसे सुनकर कैदी कुछ भी कर गुजरने के लिए तैयार हो सकते हैं | कोयल बोलो ! और मैं क्या करूँ ? तुम ही बताओ, क्या गांधी जी के स्वतंत्रता अभियान की ख़ातिर अपने प्राणों को न्योछावर कर दूँ ? अपने कलम से कैसे क्रांति लाने को तत्पर हूँ | कोयल बोलो ! मैं और क्या कर सकता हूँ ?
कैदी और कोकिला कविता का सार
प्रस्तुत पाठ या कविता कैदी और कोकिला कवि माखनलाल चतुर्वेदी जी के द्वारा रचित है | कवि ने इस कविता के माध्यम से भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सेनानियों के साथ जेल में किए गए दुर्व्यवहारों और यातनाओं का मार्मिकतापूर्ण ढंग से साक्ष्य प्रस्तुत करने का प्रयास किया है | स्वतंत्रता पूर्व लिखी गई इस कविता में जेल में बैठे कवि के रूप में कैदी और कोयल के मध्य वार्तालाप हो रहा है | कवि अपनी उदासी और पीड़ा को कोयल से साझा कर रहे हैं | वे ब्रिटिश शासन की क्रूरता के प्रति आक्रोशित हैं, जिसे कोयल से साझा करते हुए कहते हैं कि यह समय मधुर गीत गाने का नहीं है, बल्कि मुक्ति या आजादी के गीत गाने का समय है | जब कोयल कवि को अर्द्धरात्री में चीखती हुई नज़र आई, तो कवि को एहसास हुआ कि अब कोयल भी पूरे देश को एक कारागार के रूप में देखने लगी है |
शायद इस आशा से कवि ने कोयल से देशहित में अपनी पीड़ा साझा की होगी कि वह कोयल मुक्ति का गीत गाकर लोगों को सुसुप्त अवस्था से जागृत अवस्था में लाने के लिए प्रेरणा का संचार करे | अत: हम कह सकते हैं कि ‘कैदी और कोकिला’ कविता अंग्रेजी शासन की क्रूरता के खिलाफ़ बिगुल फूँकती है…||
कैदी और कोकिला कविता के प्रश्न उत्तर
प्रश्न-1 कोयल की कूक सुनकर कवि की क्या प्रतिक्रिया थी ?
उत्तर- कोयल की कूक सुनकर कवि को आभाष हो जाता है कि कोयल अवश्य ही कोई महत्वपूर्ण संदेश लेकर आई है, वरना वह अर्द्धरात्री में आवाज़ नहीं करती |
प्रश्न-2 कवि ने कोकिल के बोलने के किन कारणों की संभावना बताई ?
उत्तर- कवि ने कोकिल के बोलने के निम्नलिखित कारणों की संभावना बताई —
• कोकिल अर्थात् कोयल कोई संदेश हम तक पहुँचाना चाहती है |
• कवि अनुमान लगाते हैं कि कोयल के मन में कोई अवश्य महत्वपूर्ण बात या संदेश होगी, इसलिए वह सुबह तक इंतजार नहीं की |
• दावानल अर्थात् जंगल में लगी आग की लपटें कोयल देख ली होगी |
• कवि संभावना जताते हुए कहते हैं कि कोयल क्रांतिकारीयों अर्थात् स्वतंत्रता सेनानियों के अंदर देश-प्रेम की भावना जागृत करने आई है |
प्रश्न-3 किस शासन की तुलना तम के प्रभाव से की गई है और क्यों ?
उत्तर- ब्रिटिश शासन की तुलना तम के प्रभाव से की गयी है | क्योंकि ब्रिटिश शासन की कार्य प्रणाली भारतीयों के लिए एक दुखदायी काली रात के समान थी | ब्रिटिश शासन की क्रूरता और अन्याय भारतीयों के लिए एक अभिशाप सा बन चुका था |
प्रश्न-4 कविता के आधार पर पराधीन भारत की जेलों में दी जाने वाली यंत्रणाओं का वर्णन कीजिए |
उत्तर- जब भारत अंग्रेजों के अधीन था, तब भारतीय कैदियों को तरह-तरह की यंत्रणाएँ दी जाती थीं | उन्हें जंजीरों से कसकर बाँध दिया जाता था और मशीनें खींचवाई जाती थी | दिन-रात जानवरों की तरह काम करवाया जाता था | कड़ी धूप में पत्थर तोड़ने पर मजबूर किया जाता था | चार दीवारी के भीतर काली कोठरियों में कैद कर दिया जाता था | ऊपर से कोड़े मार-मारकर शरीर ज़ख़्मी कर दिया जाता था |
प्रश्न-5 कवि को कोयल से ईर्ष्या क्यों हो रही है ?
उत्तर- कोयल की स्वतंत्रता देखकर कवि को उससे ईर्ष्या हो रही है | कवि कोयल को संबोधित करते हुए कहते हैं कि तुम पूर्ण रूप से स्वतंत्र हो कोयल, पूरा आसमान तुम्हारा ठिकाना है, तुम्हारे गीतों पर लोगों की प्रशंसापूर्वक तालियाँ बज उठती हैं | परन्तु, इसके विपरीत मेरे नसीब में पराधीनता की काली रात है, जेल के चार दीवारी के भीतर ही मेरा काला संसार है, मैं चीखता-रोता भी हूँ, तो कोई मेरे आँसू पोंछने नहीं आता, मानो मेरा रोना कोई बहुत बड़ा गुनाह हो | हमारी परिस्थितियाँ अलग-अलग हैं |
प्रश्न-6 कवि के स्मृति-पटल पर कोयल के गीतों की कौन सी मधुर स्मृतियाँ अंकित हैं, जिन्हें वह अब नष्ट करने पर तुली है ?
उत्तर- कवि के स्मृति-पटल पर कोयल के गीतों की जो मधुर स्मृतियाँ अंकित हैं, जिसे वह नष्ट करने पर तुली है, वह निम्नलिखित हैं —
• कोयल खुले वातावरण स्वतंत्रतापूर्वक हरी डाली पर बैठकर अपनी मधुर ध्वनि से सबको मंत्रमुग्ध कर देती है |
• लोग कोयल की आवाज़ पर वाह-वाह करके प्रशंसा करते हैं |
• कोयल खुले वातावरण में विचरण कर सकती है |
• वह वैभवशाली आवाज़ से अलंकृत है |
प्रश्न-7 हथकड़ियों को गहना क्यों कहा गया है ?
उत्तर- भारत वर्षों की गुलामी और यातना सहते-सहते तंग आ चुका था | ब्रिटिश शासन की क्रूर नीतियों का सामना करने के लिए स्वतंत्रता सेनानियों ने सत्य मार्ग पर चलते हुए मान-सम्मान की ख़ातिर अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिए थे | अपनी मातृभूमि को आजाद करने के सफर में अंग्रेजों के हाथों गिरफ्तार होकर हथकड़ी पहनना उनके लिए गर्व और प्रतिष्ठा की बात थी | इसलिए हथकड़ियों को कवि के द्वारा गहना कहा गया है |
प्रश्न-8 कवि जेल के आसपास अन्य पक्षियों का चहकना भी सुनता होगा लेकिन उसने कोकिला की ही बात क्यों की है ?
उत्तर- कोकिला अर्थात् कोयल वैभवशाली और मधुर आवाज़ की धनी होती है | वह अन्य पक्षियों की तुलना में ज्यादा मीठी वाणी की पक्षी होती है | देखा जाए तो कोयल रात्रि के वक़्त नहीं बोलती है तथा अचानक अर्द्धरात्रि के सन्नाटे में उसका करूण स्वर में गाना, किसी अनहोनी का प्रतीक है | इसलिए कवि ने कोकिला की ही बात की है |
कैदी और कोकिला कविता का शब्दार्थ
• निराश – उदास
• वैभव – गौरवपूर्ण
• बटमार – लुटेरा
• हिमकर – चन्द्रमा, मयंक
• विद्रोह – बगावत, खिलाफत
• रजनी – रात, रात्रि
• दावानल – जंगल की आग,
• जुआ – बैलों के कंधे पर रखे जाने वाली लकड़ी
• हुंकृति – हुंकार, जोर की आवाज़
• व्याली – सर्पिणी
• कृति – रचना |