सोचा नहीं था आईना इतना लचर हो जाएगा

सोचा नहीं था आईना इतना लचर हो जाएगा

हनियां नहीं हैं जल्दी बूढ़ा शज़र हो जाएगा,
बहुत मुश्किल धूप में बाक़ी सफ़र हो जाएगा।

सोचा नहीं था आईना इतना लचर हो जाएगा

अगर उसकी बे-रुखी के रुक ना पाए सितम,
मेरे सुख का मंज़र ज़ेर-ओ-ज़बर हो जाएगा।

कभी टूट कर बिखरेगा वो पत्थरों के साये से,
सोचा नहीं था आईना इतना लचर है जाएगा।

प्रेम के दीपक बुझे हैं नफ़रतों की आंधियों से,
अंधेरों के बन्धन में हर कोई बशर हो जाएगा।

बिछते रहे जाल अगर सियासी दाने डालकर,
परिंदों की चहचहाट से सूना नगर हो जाएगा।

हर काम मुमकिन है मगर ऐसा मुमकिन नहीं,
उसके जादू का मुझ पर भी असर हो जाएगा।

मुझे दो-चार क़दम चलकर ये मालूम हो गया,
जुगनूओ का रुतबा चांद की नज़र हो जाएगा।

मुफ़लिस ही बनाएं कब तक मुहाफ़िजी दस्ते,
अमीरे शहर से बोलो वो भी अमर हो जाएगा।

मैं इसलिए रोता नहीं, दुःख कितना हो ज़फ़र,
मेरा दुश्मन जो है उससे बा-ख़बर हो जाएगा।

शब्दार्थ
शज़र— पेड़
ज़ेर-ओ-ज़बर —- अस्त व्यस्त
बशर—- आदमी
बा-ख़बर— अवगत होना


ज़फ़रुद्दीन ज़फ़र

एफ-413,

कड़कड़डूमा कोर्ट,

दिल्ली -32

zzafar08@gmail.com

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