रामनवमी का मर्म

रामनवमी का मर्म 

कल्पनातीत ,कालातीत ,सीमारहित ।
हूँ अखण्ड ,अनंत ,अपार।
रामनवमी
रामनवमी 
मेरी ही चेतना का अंश है ब्रह्मांड ।
सूक्ष्म और स्थूल सबमें फैला मेरा ही प्रकाश प्रकांड ।
बांधना चाहते हो मुझे धर्म के पिंजड़ों में?
कैसे रोकोगे वेग  मेरा क्षुद्र सींखचों में?
तुम्हारा स्वार्थ ,अहम  ,धन सब रह जायेगा धरा !
बस एक प्रेम का भाव जीतेगा चित्त मेरा ।
मैं हूँ राम !बस राम ।
पाना है मुझे जो नर ,
तो वरण कर बस एक “प्रेम धर्म “
रख याद बस एक शाश्वत सत्य—तू मुझमें है ।
मैं तुझ में  हूँ।
डॉ संगीता गांधी 
एम फिल ,पीएच डी।

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