रहीम के दोहे Rahim ke Dohe in Hindi

रहीम के दोहे 
Rahim ke Dohe in Hindi

रहीम के दोहे Rahim ke Dohe in Hindi Rahim Ke Dohe Class 7 रहीम के दोहे रहीम के दोहे कक्षा 7 NCERT Solutions for Class 7 Hindi Chapter 11 rahim ke dohe class 7 question answer 
कहि रहीम संपति सगे, बनत बहुत बहु रीति।
बिपति-कसौटी जे कसे, सोई सांचे मीत॥
व्याख्या – प्रस्तुत दोहे में कवि रहीमदास ने कहा है कि संपत्ति रहने पर लोग बहुत तरह से मित्र बनने का प्रयत्न करते हैं। स्वार्थी मित्र धन के लालच में आकर्षित होते रहते हैं। विपत्ति आने पर संकट की घड़ी में कपटी मित्र साथ छोड़ कर चले जाते हैं। ऐसी स्थिति में वही मित्र साबित होते हैं ,तो संकट की घड़ी में सहायता करते हैं। साथ छोड़कर जाने वाले मित्र संकट की घड़ी में सहायता करते हैं। साथ छोड़कर जाने वाले मित्र संकट के समय वही रहते हैं। अतः मित्र करने में सावधानी बरतनी चाहिए। 
जाल परे जल जात बहि, तजि मीनन को मोह।
रहिमन मछरी नीर को तऊ न छाँड़ति छोह॥
व्याख्या – प्रस्तुत दोहे में कवि रहीमदास जी कहते हैं कि मछली को पकड़ने के लिए जाल फेंका जाता है। मछली जाल में फंस जाती है। वह जल के प्रति प्रेम करती है है। जल का साथ छोड़ने पर अपने प्राण त्याग देती है ,वही जल को कोई फर्क नहीं पड़ता है कि मछली जल से बाहर आ गयी है। इस प्रकार जल के प्रति मछली निस्वार्थता का उदाहरण प्रस्तुत करती है। वही जल के ह्रदय में मछली के प्रति कोई लगाव नहीं है। अतः प्रेम में मछली के आदर्श का पालन करना चाहिए। 
रहीम के दोहे
रहीम के दोहे
तरुवर फल नहिं खात है, सरवर पियहि न पान।
कहि रहीम पर काज हित, संपति सँचहि सुजान॥
व्याख्या – प्रस्तुत दोहे में कविवर रहीम दास जी सज्जन व्यक्तियों के गुणों की प्रशंसा  की है। पेड़ अपना फल नहीं खाते हैं ,वही अपने फल को अन्य प्राणियों के प्रति समर्पित कर देता है। समुन्द्र भी अपना जल स्वयं नहीं पीता है। वह परहित में अपना जल न्योछावर कर देता है। इसी प्रकार सज्जन व्यक्ति ,अपनी धन संपत्ति ,आम जनता के हित में लगा देते हैं। वह स्वयं के लिए धन -अर्जन नहीं करते हैं।उनका जीवन आम जनता की भलाई के लिए होता है। 
थोथे बादर क्वार के, ज्यों रहीम घहरात ।
धनी पुरुष निर्धन भये, करैं पाछिली बात ॥
व्याख्या – प्रस्तुत दोहे में कवि रहीमदास जी कहते हैं कि क्वार में माह में बादल व्यर्थ ही गरजते हैं। वे बरसकर कुछ लाभ नहीं करते हैं ,इनसे कृषि का हित नहीं होता है। क्वार के बादल ही तरह निर्धन व्यक्ति भी होते हैं ,जो अपने अमीरी को याद करके पछताते रहते हैं।  उनका पछताना वर्तमान समय के व्यर्थ है ,उसी प्रकार क्वार के बादलों का बरसना व्यर्थ है। दोनों ही परिस्थितियों के कारण निर्धन जैसा व्यवहार करते हैं। 
धरती की सी रीत है, सीत घाम औ मेह ।
जैसी परे सो सहि रहै, त्‍यों रहीम यह देह॥
व्याख्या – प्रस्तुत दोहे में कवि रहीमदासजी कहते हैं कि मनुष्य को धरती के समान ही जीवन यापन करना पड़ता है। धरती हर मौसम में समान रहती है। वह ठंडी ,गर्मी और बरसात को लेकर रख भी शीतल बनी रहती है। अतः मनुष्य  को भी धरती के समान ही सुख -दुःख झेलने की क्षमता रखनी चाहिए। धरती के समान आचरण करने हम हर परिवर्तन को सहज स्वीकार कर सकते हैं। 

रहीम के दोहे पाठ का सारांश Summary

रहीम के दोहे में कविवर रहीमदास जी मानव जीवन को संपन्न और सुखी बनाने के लिए उपाय बताते हैं। प्रस्तुत दोहों में वे मित्रता की कसौटी बताते है कि वही मित्र उचित होता है ,जो विपत्ति के समय दे। प्रेम का आदर्श मछली होती है ,जल के त्यागने पर अपने प्राण त्याग देती है ,वही दूसरी ओर जल को मछली की कोई चिंता नहीं है। सज्जन व्यक्ति अपनी संपत्ति का प्रयोग परमार्थ के कार्य में करते हैं ,जिस तरह पेड़ अपना फल नहीं खाते हैं और समुद्र पानी पीते हैं। क्वार के बादल और निर्धन व्यक्ति वर्तमान परिस्थितियों के अनुसार प्रासंगिक नहीं होते हैं। धरती हर परिवर्तन को आत्मसात करती है। वही मनुष्य को भी हर विपरीत परिस्तिथि में भी अनुकूल रहना चाहिए। ताकि हम हर परिवर्तन को धरती की तरह आत्मसात कर सके। 

रहीम के दोहे प्रश्न अभ्याश दोहे से rahim ke dohe class 7 question answer

प्र.१. पाठ में दिए गए दोहों की कोई पंक्ति कथन है और कोई कथन को प्रमाणित करने वाला उदाहरण। इन दोनों प्रकार की पंक्तियों को पहचान कर अलग-अलग लिखिए।
उ. निम्नलिखित दोहों में कवि ने कथन और कोई कथन को प्रमाणित करने वाला उदाहरण दिया है – 

  • थोथे बादर क्वार के, ज्यों रहीम घहरात  – उदाहरण , धनी पुरूष निर्धन भए, करें पाछिली बात  – कथन 
  • धरती की-सी रीत है, सीत घाम औ मेह –  उदाहरण ,जैसी परे सो सहि रहे, त्यों रहीम यह देह  – कथन 
प्र.२. रहीम ने क्वार के मास में गरजने वाले बादलों की तुलना ऐसे निर्धन व्यक्तियों से क्यों की है जो पहले कभी धनी थे और बीती बातों को बताकर दूसरों को प्रभावित करना चाहते हैं? दोहे के आधार पर आप सावन के बरसने और गरजने वाले बादलों के विषय में क्या कहना चाहेंगे?
उ. क्वार के मॉस में बरसने वाले बादल और निर्धन व्यक्ति एक जैसे होते हैं।यह समाज के लिए व्यर्थ होते हैं। निर्धन व्यक्ति अपने पुराने दिन को याद करके पछताते रहते हैं ,उसी तरह क्वार के बादल असमय बरसते हैं. बादल गरजकर लोगों को परेशान करते हैं ,निर्धन व्यक्ति व्यर्थ ही लोगों की अपनी अमीरी की कहानी सुनाकर परेशान करते हैं। अतः हर कार्य वर्तमान परिस्थितियों के अनुसार उचित होना चाहिए। 

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