बालमुकुंद गुप्त

बालमुकुंद गुप्त


हिन्दी निबंध और बालमुकुंद गुप्त बालमुकुन्द गुप्त का साहित्यिक परिचय बालमुकुन्द गुप्त का जीवन परिचयबालमुकुन्द गुप्त का युग हिंदी नवजागरण में बालमुकुंद गुप्त बालमुकुंद गुप्त किस युग के कवि है –  भारतेन्दु और द्विवेदी युग की कड़ी को जोड़ने वाले बालमुकुन्द गुप्त जी का जन्म सन 1865ई में रोहतक जिला (हरियाणा) के गुडियाना नामक गाँव में हुआ था।इनके माता-पिता धार्मिक स्वभाव के थे। इसी से आप में धर्म के प्रति काफी आस्था थी।आपकी प्रारम्भिक शिक्षा उर्दू-फारसी में हुई थी। बाल्यावस्था से ही आपने लेखन-कार्य आरम्भ कर दिया था। आप द्वारा लिखित लेख ‘अखबार’, ‘अवधपंच’, ‘कोहिनूर’, और ‘विक्टोरिया’ पेपर में प्रकाशित होते थे। आपके निबन्धों और लेखों में हमें सर्वत्र भारतेन्दु युग के जागरण का उल्लास एवं सजी हुई स्पष्ट भाषा सर्वत्र मिलती है। अपने समय के आप सफल पत्रकार भी रहे हैं। हिन्दी हिन्दोस्तान’, ‘हिन्दी बंगवासी’, ‘भारत मित्र’ नामक पत्रों का सम्पादन गुप्त जी ने सफलता पूर्वक किया है। आपकी पत्रकारिता का एक निश्चित उद्देश्य और स्पष्ट लक्ष्य परिलक्षित होता है। वह था राजनीतिक विवशता और सामाजिक कुरीतियों के विरुद्ध लेखनी चलाना।’ देश की राजनीतिक व आर्थिक दुर्व्यवस्था के कारण आप हमेशा बेचैन रहा करते थे। 42 वर्ष की अल्प आयु में अर्थात् सन् 1907 ई. में आपने जीवन की अंतिम सांस ली। निश्चय ही उस दिन हिन्दी साहित्य की एक अपूरणीय क्षति हुई थी। 

बालमुकुन्द गुप्त की रचनाएँ- 

बालमुकुन्द गुप्त जी साहित्य में अपने हास्यविनोद सम्पन्न निबन्धों के कारण प्रसिद्ध हैं। उनकी सबसे प्रसिद्ध कृतियाँ ‘शिवशम्भु के चिट्टे’ तथा ‘चिट्टे और खत’ हैं। इसमें के सभी पत्र लार्ड कर्जन को संबोधित करके लिखे गए हैं। अनुवाद के रूप में रत्नावली की नाटिका’, हरिदास’ और ‘मण्डल भगिनी’ ही जाने जाते हैं । कविता का एक संग्रह ‘स्फुट-कविता’ नाम से प्रकाशित है। 
बालमुकुन्द गुप्त जी
बालमुकुन्द गुप्त जी

साहित्यिक सेवाएँ-

बालमुकुन्द गुप्त जी अपने समय के सफल निबन्धकार और पत्रकार के रूप में विख्यात थे।आप भारतेन्दु युग और द्विवेदी युग के चौराहे पर जलते हुए दैदीप्यमान नक्षत्र के रूप में प्रकाशित होते हैं। पत्रकारिता के क्षेत्र में तो आप इतने लोकप्रिय हो गये थे कि ‘बंगवासी’ का कुछ काल तक सम्मादन करने के बाद आप भारत मित्र’ के प्रधान सम्पादक बन गये। 

हिन्दी निबंध और बालमुकुंद गुप्त 

आपकी पत्रकारिता का लक्ष्य विदेशी शासन व भारत के पराधीनता के विरुद्ध जेहाद छेड़ना ही था। गुप्त जी के निबन्धों के पढ़ने से प्रतीत हो जाता है कि आप विनोदी और मौजी स्वभाव के हैं।उर्दू और फारसी भाषा का मर्मज्ञ होने के कारण आपके लेखों में इनके शब्दों की अधिकता मिलती है।आपके निबन्धों में राजनीतिक और सामाजिक समस्याओं पर भी प्रकाश डाला गया है। ऐसे निबन्धों में आपकी आत्मा का बेताब तीखापन व्यंग्य का जामा पहन कर बोलता है। इन निबन्धों में आपने बहुत ही मार्मिक और चुभने वाले शब्दों का प्रयोग किया है। हृदय और मस्तिष्क का जैसा उचित सामंजस्य आपके निबन्धों में हो पाया है, इतना कम निबन्धकारों में देखने को मिलता है। गुप्त जी व्यंग्य एवं हँसी के रूप में ऐसी ऐसी बातें कहते हैं जो हृदय में तीर की तरह सीधे प्रवेश करती है।कहीं-कहीं उनके निबन्ध की आत्मा गम्भीर हो उठी है।इनके निबन्धों में हमें भावात्मकता और कथात्मकता अधिक दिखलाई पड़ती है।गुप्त जी ने विचारात्मक और वर्णनात्मक निबंध बहुत ही कमलिखा है।इनके ‘शिवशम्भू के चिढे’ में साधारण घटनाओं, गम्भीर समस्याओं, पर्व-त्यौहारों और विचार प्रधान प्रश्नों पर विचार हुआ है।बालमुकुन्द गुप्त जी के निबन्धों की सबसे बड़ी विशेषता है कि इनके निबन्धों में हमेशा इनका सतर्क राष्ट्रीय व्यक्तित्व बोलता है।अप्रस्तुत के द्वारा आपने प्रस्तुत को सफलतापूर्वक प्रकट किया है।तुलनात्मक समीक्षा के जनक के रूप में गुप्त जी विख्यात हैं। 

बालमुकुंद गुप्त की भाषा शैली –

अपने लेखों में गुप्तजी ने भाषा का प्रयोग बड़ी सफलता पूर्वक किया है। भाषा की स्पष्टता, सुबोधता और सरलता आपके हर वाक्य में दिखलाई पड़ती है। इनकी भाषा में दुरूहता का दोष कभी नहीं आता है। गुप्त जी ने सर्वत्र सर्वप्रिय, सुबोध मिश्रित भाषा का ही प्रयोग किया है। शिवशम्भू के चिट्टे’ में उर्दू के शब्दों का विशेष प्रयोग हुआ है।’जाफरानी’, ‘मौजों’, ‘खयाली’, ‘तुलअरज’, ‘आवा’ आदि शब्दों का प्रयोग सर्वत्र मिलता है। मुहावरों का उचित प्रयोग करने से इनकी भाषा में स्वाभाविक व्यावहारिकता आ जाती है। इस प्रकार हम देखते हैं कि गुप्त जी की भाषा-शैली में इतिवृत उपस्थित करने की क्षमता और चित्रांकन की शक्ति है।

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