गजल – ऐ – शरारत / नेत्रा देशपाण्डेय

“कविता तो कविता होती हैं, नहीं कोई खेल,
जिस किसी के ह्रदय से आए , उससे नहीं किसी का मेल”
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” गजले यहाँ मिलती ही नहीं हैं,
क्या लिखें, क्या पढ़ें, क्या गाए यहाँ पें”
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” किसी ने कहां –
वाह! क्या बात हैं, वाह! क्या बात हैं
हमनें कहां –
” अरे, अभी तो ये शुरुआत हैं,
आगे आगे देखिये हम क्या क्या नजरें लातें हैं”
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” यह दुनिया कभी आपकी थी ही नहीं,
जरा गौरसे देखिये –
सभी हैं आपके ….. आप किसीके नहीं….”
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” मैं बेचारी थकीं हारीं ,
इतनी दूर चली जाउंगी,
बिना खाने – पिने के
मेरी हालत बुरी हो
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