कवि की भावना समझो जीत होगी अवश्य ही !

हमें गर लुटा किसी ने तो हमारे अपनों ने ही

में गर लूटा किसी ने तो हमारे अपनों ने ही,
हमें गर शिकस्त दी किसी ने तो अपनों ने ही!
चाहे हो आक्रांता सिकंदर, गजनवी,गोरी, बाबर,
गोरे अंग्रेज, सबके लश्कर बने हमारे अपने ही!
आक्रांताओं को न्योता और पनाह किसने दिए?
आंभी-जयचंद-सांगा-मानसिंह जैसे अपनों ने ही!

पौरव, दाहिर, पृथ्वीराज, राणा प्रताप कैसे हारे?

गुरु गोबिंदसिंह के भीतरघाती गंगू थे अपने ही!
भारत कभी नहीं हारा, मुट्ठीभर आक्रांताओं से,
आक्रांताओं के भाड़े के सैनिक बने थे अपने ही!
भारत ने कभी आक्रमण किया नहीं विदेशों पर,
अहिंसक भारत पर घुसपैठ कराया अपनों ने ही!
आज हमारा शत्रु नहीं इस्लामी अरब-इराक-ईरान,
बल्कि हिन्दू से बने पाक के मुस्लिम अपने ही!
देश आज परेशान है शत्रु देशों के आतंकियों से,
ये देश पाक बांगला अफगान बने अपनों से ही!
हम शक्तिशाली होकर भी देते रहे सदा पैगाम,
सत्य अहिंसा क्षमा और हारते रहे अपने से ही!
इतिहास गवाह है आक्रांता भागा हमपर थोपके
गुलाम,जिसे बादशाह माना हमनें अपने से ही!
हम सर्वदा अभिमान में अपनों को नीच कहते,
पर टूटते अहं धर्मांतरित हुए उन अपनों से ही!
छोड़ो खुद पर इतराना, कसम गीता की खाना,
चलो गीता के संदेश पे जीत होगी अपने से ही!
‘क्षमा शोभती उस भुजंग को जिसको गरल हो’,
कवि की भावना समझो जीत होगी अवश्य ही!
विनय कुमार विनायक,
दुमका, झारखंड-814101

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