संबोधन (हिंदी कविता )

    संबोधन

मेरा उद्बोधन,

मेरा संबोधन,
तेरे लिए..
क्या हो सकता है..??
हर बड़ी उपमा,
तेरे लिए..

संजय झा

छोटी लगती है।
बहुत दिनों से,
तलाश कर रहा हूँ।
कलम एक नाम,
ना लिख पाया है।
जवाँ एक शब्द,
ना दे पाया है।
मेरे हृदय के सतत,
स्पन्दन से..
सदा तुम्हें मिलती है,
मिलती रहेगी..।
मेरी योग्यता,
मेरी पात्रता,
मेरी दक्षता,
अनावश्यक है।
तुम्हे पुकारने के लिए,
मेरा हृदय,
मेरी नज़र,
ही काफी है।
तुम्हारे लिए..
हर शब्द कोड़ा लगता है।
तुम्हारे लिए..
हर साँस,
संबोधन लगता है!!

यह रचना संजय झा जी द्वारा लिखी गयी है . आप आजीविका वृद्धि एवं महिला सशक्तिकरण के उद्देश्य से प्रोजेक्ट एग्जीक्यूटिव के पद पर गैर सरकारी संस्था सृजन के साथ आदिवासी परिवारों के मध्य छत्तीसगढ़, कोरिया में कार्यरत हैं . संपर्क सूत्र – केल्हारी, कोरिया, छत्तीसगढ़। M-9098205926 Email-Sanjaykshyapjha@gmail.com. 

You May Also Like