भारत में अंग्रेजी का भविष्य

भारत में अंग्रेजी का भविष्य 

भारत में अंग्रेजी भाषा का स्थान भारत में अंग्रेजी का भविष्य bharat me angreji bhasha ka sthan  भारत में अंग्रेजी का भविष्य विवादग्रस्त मुद्दा है। इसके सम्बन्ध में दृष्टिकोणों में वर्षों के साथ परिवर्तन आता रहा है। स्वतंत्रता प्राप्ति से पूर्व अंग्रेजी तथा अंग्रेज दोनों को विदेशी तथा राष्ट्रीय हितों के विरोधी कहकर उनकी भर्त्सना की जाती थी। महात्मा गांधी, जो कि अंग्रेजी के अच्छे प्रभावपूर्ण लेखक थे, यह मानते थे कि अंग्रेजी भाषा ने हमारा पुंसत्व हरण कर लिया है तथा हमारी बुद्धि को बन्दी बना लिया हैं।उन्होंने यह महसूस किया था कि अंग्रेजी भाषा ने हमें अनुकर्ता बना दिया है। अन्य अनेक व्यक्तियों ने भी यह दृष्टिकोण प्रस्तुत किया कि देश के युवाओं पर शिक्षण का विदेशी माध्यम का “व्याधिपूर्ण आरोपण” गम्भीरतम बुराइयों में से एक है। 

अंग्रेजी प्रमुख माध्यम

यह स्वीकार्य है कि अंग्रेजी भाषा संचार का सामान्य अखिल भारतीय माध्यम नहीं बन सकती तथापि यह ब्राह्य

भारत में अंग्रेजी का भविष्य
भारत में अंग्रेजी का भविष्य 

विश्व के साथ वार्ता करने का प्रमुख माध्यम बनी रहेगी। अंग्रेजी भाषा ने भारतीय दृष्टिकोण व क्षितिज को विस्तृत किया है। इसने व्यवसायों तथा सेवाओं में उदार विचारधारा वाले नवीन वर्ग के संभव का मार्ग दर्शन किया है। यही स्वीकार करना होगा कि अंग्रेजी विश्व के महानतम् व समद्धतम भाषाओं में से एक है।विश्व की दो-तिहाई वैज्ञानिक प्राविधिक पुस्तकें अंग्रेजी में प्रकाशित होती हैं। भारत के लोगों को सीखने के लिए सजा, सम्भवतः सरलतम विदेशी भाषा है।अंग्रेजी शिक्षा का महत्त्व-तथापि रविन्दनाथ टैगोर ने अंग्रेजी मारी योगदान को सुयोग्य श्रद्धांजलि अर्पित की है। उन्होंने कहा कि अंग्रेजी साहित्य ने हमारे मस्तिष्क को पोषित किया। हमारे अनेक उपन्यासकारों, कहानीकारों व कवियों ने अंग्रेजी साहित्य को समृद्ध किया। जवाहरलाल नेहरू को स्वयं अंग्रेजी भाषा स्वामित्व प्राप्त था। उन्होंने यह स्वीकार किया था कि हम देश के करोड़ों व्यक्तियों पूर्णतया विदेशी भाषा में शिक्षित नहीं कर सकते तथापि उन्होंने यह माना कि अंग्रेजी भाषा हमारे गत निकट साहचर्य के कारण तथा इसके विश्व में वर्तमान महत्त्व के कारण अवश्यम्भावी रूप से हमारे लिए महत्त्वपूर्ण भाषा रहेगी। 

संविधान में प्रावधान

भाषाई समस्या के समाधान हेतु भारतीय संविधान के अनुच्छेद 343 (1) में यह प्रावधान है कि देश की शासकीय भाषा देवनागरी लिपि में हिन्दी होगी। इस अनुच्छेद का द्वितीय खंड यह प्रावधान करता है कि सन् 1950 में संविधान के लागू होने के प्रारम्भिक पंद्रह वर्षों तक इसके साथ-साथ अंग्रेजी भाषा का उपयोग चलता रहेगा। दक्षिणी राज्यों की माँग के अनुरूप संघ के शासकीय उपयोग हेतु अंग्रेजी के प्रयोग को अनेक बार आगे के लिए बढ़ा दिया गया है। सभी संकेत यथास्थिति के असीमित काल तक जारी रहने की दिशा में है। 

अंग्रेजी की वर्तमान स्थिति

यह अपेक्षा की गयी थी कि कालान्तर में हिन्दी अंग्रेजी का स्थान ग्रहण कर लेगी। अंग्रेजी भाषा हिन्दी के द्वारा क्रमशः त्याग दिये जाने व स्थानापन्न किए जाने के बजाय अधिकाधिक लोकप्रिय हो रही है। यह विद्यार्थियों की उस विशाल संख्या से स्पष्ट है, जो स्कूलों, कालिजों व विश्वविद्यालय में अध्ययन हेतु अंग्रेजी माध्यम के विकल्प को अपना रहे हैं। मध्यम वर्ग तथा सम्पन्न वर्ग के परिवार अपने बच्चों को उन विद्यालयों में, जहाँ शिक्षण का माध्यम अंग्रेजी है- भेजने में स्वयं को गौरवान्वित अनुभव करते हैं। उनका यह प्रयास होता है कि उनके बच्चे कम से कम कक्षा 8 तक अथवा हाईस्कूल तक अंग्रेजी माध्यम वाले स्कूलों में पढ़ें। माता-पिता को उस समय गर्व महसूस होता है जब नर्सरी तथा के० जी० कक्षाओं में पढ़ने वाले उनके बच्चे अंग्रेजी में कविताएँ रट व सुना लेते हैं। उनके द्वारा यह विश्वास किया जाता है तथा जिसमें पर्याप्त औचित्य भी है कि उनके संरक्षितों का सरकारी तथा निजी कम्पनियों में वृत्तिक का निर्माण केवल अंग्रेजी माध्यम में शिक्षा के आधार पर हो सकेगा। 

अतः केन्द्रीय सरकार के कार्यालयों में कार्य अंग्रेजी में किया जाता है। यह केन्द्र या राज्यों तथा स्वयं राज्यों के मध्य संचार हेतु स्वीकार्य जोड़ने वाली भाषा है। यह मान्यता है कि वैज्ञानिक तथा प्राविधिक ज्ञान को केवल उन पुस्तकों तथा पत्रिकाओं से ग्रहण किया जा सकता है जो कि अंग्रेजी भाषा में प्रकाशित है। हिन्दी तथा अन्य भाषाओं में अनुवादित पस्तकें विभिन्न कारणों से लोकप्रिय नहीं हो सकी हैं। प्रायः यह कहा गया है कि शाब्दिक अनुवादों में भाव नहीं आ पाता। इसके अतिरिक्त अंग्रेजी भाषा के अनेक लाभ हैं-जैसे अभिव्यक्ति की यथार्थता या शुद्धता, विश्वव्यापी लोकप्रियता तथा समृद्ध साहित्य। .


संचार का माध्यम

निष्कर्षत यह कहा जा सकता है कि अंग्रेजी को विदेशी शासको के द्वारा हम पर लादी गयी भाषा नहीं माना जाना चाहिए। यद्यपि अंग्रेजी भारत की प्रमुख भाषा नहीं बन सकती इसका द्वितीय भाषा के रूप में प्रयोग देश के लिए लाभदायक है। हम शेष विश्व से पृथक् नहीं रह सकते। इस बात को अस्वीकार नहीं किया जा सकता कि पश्चिम के द्वारा विभिन्न क्षेत्रों में द्रुत गति से विकास व प्रगति की जा रही है। हमें उनके साथ कर से कदम मिलाकर चलना है। वास्तव में हम उनसे बड़े होने का प्रयास तो नहीं कर सके तथापि हमें पीछे नहीं रह जाना चाहिए। अपने देश में भी हमें उत्तर व दक्षिण के मध्य दीवारें गिरा देनी चाहिए।संचार का एक मात्र माध्यम अंग्रेजी ही है।

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