महिला दिवस पर कविता
हाय
! मैं, अभागी शाश्वत वंचित
मेरे हिस्से न जीवन रस किंचित
युगों युगों की पीड़ा वेदना
घूंट गरल का निशदिन पीना
यौवन मेरा पौरुष चरणों में
थकी हारी निष्प्राण चेतना
झोंक जीवन को वन वास में
दी मैंने हर अग्निपरीक्षा
प्याला जहर का पाया मैंने
कारण फ़कत सद शिक्षा
देख जगत के झंझावात को
हुआ अस्थिर मेरा मन चित
हाय ! मैं अभागी शाश्वत वंचित
मेरे हिस्से न जीवन रस किंचित
मठ पंडों का शासन
भरी सभा में , मैं द्रोपदी
पाती हूं दु:शासन
मैं युगों की सीता – मीरा
दिया हर चरित्र् प्रमाण
मैं परित्यकता , मैं घोषित निशक्ता
सर्व सेवा में मेरा प्राण
मैं सुख की स्रोत स्वनी
पर मेरा सुख अनिश्चित
हाय ! मैं अभागी शाश्वत वंचित
मेरे हिस्से न जीवन रस किंचित
ममतामयी प्रवाह मेरा
नव सृजन अंकुरित करती
मैंने बहना सीखा सदा
सौम्य वेग से , निर्झरती
देकर जग को नवजीवन
पाया मैंने कष्ट सदा
मैं युगों की पीड़ा वेदना
छिपे नयनों में अश्क भरती
मेरा जीवन रहा पूर्ण
वज्राघातों से संचित
हाय ! मैं अभागी शाश्वत वंचित
मेरे हिस्से न जीवन रस किंचित
पर होगा आघात पर प्रतिघात
प्रश्न अब मेरे अस्तित्व का
सदियों से कुचली नारी के
शक्ति का , सतीत्व का
है असुर जब सामने तो
धर रूप रणचंडी का
नतमस्तक होगा जग सारा
नारीवादी पगडंडी का
हां ! रही मैं अभागी शाश्वत वंचित
पर मेरे भी हिस्से होगा अब जीवन निश्चित…
कुमेर कविराज का पूरा नाम कुमेर दान भादरेश है।कुमेर कविराज वर्तमान हिंदी साहित्य के जाने माने लेखक , कवि व गज़लकार है।समाजवाद से प्रभावित होने के कारण कविराज की कविताओं में स्त्री विमर्श , दलित व आदिवासी विमर्श केंद्रीय तत्व है । ‘हाय ! मैं अभागी शाश्वत वंचित’ नारीवादी दृष्टिकोण से लिखी गई कविता है जिसमें नारी जीवन की वेदनाओ को युवा कवि कुमेर कविराज ने बड़े संजीदा तरीका से उकेरा है।