इन्तजार
सीने में छिपे दर्द को तू क्यों हवा देता है,
तुझसे मिलने की तू क्यों मुझको सज़ा देता है,
सीने में छिपे……
मेरे इन्तजार को |
लाख सजदों का हासिल है सूरत तेरी,
सहरा-सहरा फिर क्यों मुझको भटकने की दुआ देता है,
सीने में छिपे…..
करता है ज़माने के दर्दों की दवा तू,
मेरे ख्वाबों को क्यों तू अश्कों की पनाह देता है,
सीने में छिपे…..
अब कि तो खुदा का भी इम्तिहान है ऐ दोस्त,
मेरे इन्तजार को क्यों तू अपनी चालों से दगा देता है,
सीने में छिपे….
– अंजू
सहायक प्राध्यापक (समाजशास्त्र)
श्री महेश प्रसाद डिग्री कॉलेज,लखनऊ