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अन्ध​कार काल : भारत में ब्रिटिश साम्राज्य
अन्ध​कार काल : भारत में ब्रिटिश साम्राज्य
इण्डिया इण्टर​नेशनल सेण्टर ​में वाणी प्रकाशन से प्रकाशित​ डॉ शशि थरूर की नयी पुस्तक ​’अन्ध​कार काल : भारत में ब्रिटिश साम्राज्य’ का लोकार्पण किया गया। कार्यक्रम में वाणी प्रकाशन के प्रबन्ध निदेशक अरुण माहेश्वरी ने कहा कि ऐसी पुस्तकें दशकों में एक बार आतीं हैं ​और ‘अन्धकार काल-भारत में ब्रिटिश साम्राज्य’ किताब कालजयी है। पत्रकार सौरभ द्विवेदी ​ ने कार्यक्रम का सफल संचालन किया। कार्यक्रम वाणी प्रकाशन की निदेशक ​अदिति माहेश्वरी के नेतृत्व में किया गया। इस धमाकेदार पुस्तक में लोकप्रिय लेखक राजनेता व लेखक​ शशि थरूर ने सटीक, प्रामाणिक शोध एवं अपनी चिर-परिचित वाक्पटुता से यह उजागर किया है कि ब्रिटिश शासन काल ​भारत के लिए कितना विनाशकारी था। 
कार्यक्रम में वक्ता​ के रूप में मौजूद समाजशास्त्री प्रो. अभय कुमार दुबे इन्होंने पुस्तक के छठे​ अध्याय ​ ‘साम्राज्य के लिए शेष समस्या’ पर विशेष टिप्पणी ​की जिसमें भाषा और शिक्षा पर विचार किया गया है। डॉ. ​शशि थरूर की पुस्तक ‘अन्ध​कार काल: भारत में ब्रिटिश साम्राज्य’ में उपनिवेशकों द्वारा भारत का अनेकानेक प्रकार से किये गये शोषण जिनमें भारतीय प्रकृतिक संसाधनों का दोहन और संसाधनों को भारत से ब्रिटेन पहुँचने से लेकर भारतीय कपड़ा उद्योग, इस्पात निर्माण, नौवहन उद्योग और कृषि का नकारात्मक रूपान्तरण शामिल है। इन्हीं सब घटनाओं पर प्रकाश डालने के अतिरिक्त वे ब्रिटिश शासन के प्रजातन्त्र एवं राजनीतिक स्वतन्त्रता, क़ानून व्यवस्था, साम्राज्य के द्वारा पश्चिमी व भारतीय समर्थन और रेलवे के तथाकथित लाभों के तर्कों को भी निरस्त करते हैं। डॉ. शशि थरूर ने कहा कि ब्रिटिश साम्राज्य के आने बाद ही लखनऊ में शिया-सुन्नी और जातीयों का बँटवारा हुआ। अन्धकार काल ब्रिटिश शासन काल में था ब्रिटिश शासन से पूर्व नहीं था। 1857 के बाद अंग्रेजों ने डिवाइड एण्ड​ रूल की नीति अपनाई। राजाओं व नवाबों को कभी घूस दी कभी उन पर गैर ज़रूरी कर लगाये डॉ. थरूर ने हिन्दी​-अंग्रेज़ी​ के भाषायी सवाल पर कहा कि भाषा मंज़िल​ नहीं है वाहन है,पूरे भारत की अंग्रेज़ी ​ भाषा लिंक भाषा है जो भारत को एक फ्रेम में रखती है। अंग्रेजों ​ने नवोदित होते बंगाली नेशनलिज़्म को दूर करने के लिए बंगाल का विभाजन किया।
परिचर्चा के दौरान अभय कुमार दुबे ने एक बहुत ही महत्वपूर्ण प्रश्न उठाया, कि ​आखिर भारत में जो ब्रिटिश साम्राज्यवाद कामियाब हुआ इसमें भारतीयों की ​ज़ि​म्मेदारी कितनी थी। जवाब में थरूर जी ने कहा कि भारतीयों के निजी स्वार्थ और शक्ति सहयोग की व्या​वहारिकता ने अंग्रेजों​ का सहयोग किया।
जिस पर टिप्पणी करते हुए अभय कुमार दुबे ने कहा कि यह भारतीय सामाजिक विन्यास की कमी रही है जिसके कारण अंग्रेज़ अपनी एक तटस्थ छवि बेच पाए।​ ​जो उन्होंने क्रमशः अम्बेडकर और फु​ले को बेची। परिचर्चा के दौरान थरूर जी श्रोताओं से भी ​मुखातिब  हुए। आदित्य द्विवेदी ने प्रश्न करते हुए कहा कि सेकण्डरी ​भाषा के रूप में अंग्रेज़ी​ही क्यों हिन्दी क्यों नहीं? जिस पर डॉ.थरूर ने कहा कि भारत को बाँट​ने के लिए यह सबसे बेहतरीन तरीका है। भारत भाषायी राजनीति के चलते एक नये विभाजन की तरफ़​ न बढ़े और सभी भारतीय एक-​दूसरे की मातृभाषा का सम्मान करें। वरिष्ठ पत्रकार अनंत विजय ने कहा कि क्या वजह है कि सदन में भाषायी सवाल पर चुप्पी​  साधने वाले थरूर यहाँ पर भाषा के सवाल पर आक्रा​मक जवाब दे रहे  हैं ​ कहीं इसकी वजह 2019 तो नहीं। इस पर डॉ. थरूर ने कहा,​ पहले ऐसा मौका​ नहीं मिला था लेकिन अब अवसर है तो मैं चुप नहीं बैठूँगा। ​भाषायी सवाल पर सुकृता पॉल ने अपनी टिप्पणी देते हुए कहा कि परेशानी अंग्रेज़ी भाषा से नहीं अंग्रेज़ियत से है।​

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