साहब ये नहीं दोस्ती है

साहब ये नहीं दोस्ती है

क्या निभाते हो साहब यही दोस्ती है?
समझते हो इसे यूँ कोई वीरान बस्ती है,
नहीं नहीं साहब ये नहीं दोस्ती है।।

सिखलाया है तुमने ही यूँ जीना-मरना,

गलती से गलती पर भी पावँ पकड़ना।।
कसम न देकर भी कसम को निभाना,
बहती गंगा में यूँ आग लगाना।।
क्या समझ लिया भँवर में कोई आम कस्ती है,
क्या निभाते हो साहब यही दोस्ती है?
नहीं नहीं साहब ये नहीं दोस्ती है।।

क्या किसी के चेहरे की लाली से बड़ी दोस्ती है?
कभी सोचा है तुमने किस ओर खड़ी  दोस्ती है।।
क्या किसी की मुस्कान से फिकी पड़ी दोस्ती है?
या तुम्हारे किसी कली की खातिर लड़ी दोस्ती है।।
क्या समझा है तुमने इसे कोई चीज़ सस्ती है?
क्या निभाते हो साहब यही दोस्ती है?
नहीं नहीं साहब ये नहीं दोस्ती है।।

दोस्ती है वो जो कभी साथ न छोड़े ,
कर के वादा न वादा कभी  तोड़े।।
बिखरे पड़े 2 दिलों को यूँ जोड़े,
दिल में उफनती नदियों का रास्ता यूँ मोड़े।।
दोस्ती वही है जिनमें झूम उठती  यूँ मस्ती है,
क्या निभाते हो साहब यही दोस्ती है?
नहीं नहीं साहब ये नहीं दोस्ती है।।

– कुमार वरुण 

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