अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस पर निबंध हिंदी में

 अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस

ह मेरा सौभाग्य है कि मुझे आज अंतरराष्ट्रीय मातृ दिवस ‘हिंदी’ विषय पर कुछ लिखने का मौका मिला है। इसकी शुरूआत में प्रसिद्ध कवि ‘गिरिजा कुमार माथुर’ जी की इन पंक्तियों से करना चाहती हूँ।

‘‘भरी पूरी सभी बोलियाँ
यही कामना हिंदी की
गहरी हो पहचान आपसी
यही साधना हिंदी की…’’

अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस

भारत एक महान देश है जिसमें कई धर्म, कई जातियों और कई भाषाओं के लोग मिलजुल कर रहते हैं। पर इनकी एक विशेषता यह है कि विभिन्न भाषाएँ बोलने के बावजूद सभी के एक दूसरे से जुडने का कारण हिंदी भाषा ही हैं। हिंदी बहुत ही लोकप्रिय भाषा बन चुकी है। हिंदी का प्रचलन अब केवल भारत में ही नहीं बल्कि धीरे-धीरे पूरे विश्व में अपनी सुंदरता के साथ फैलते हुए अपना वर्चस्व फैला रही है। आज विषव के कोने से लोग भारतीय संस्कृति और हिदी से प्रभावित होकर भारत की ओर रूख कर रहे हैं और दूसरी ओर हम भारतीय हिेदी की उपेक्षा कर रहे हैं, जो हमारी सबसे बड़ी भूल हैं।
          

पहले जहाँ पाठशालाओं में अंग्रेजी का माध्यम ज्यादा नहीं होता था, तब हिंदी का बोलबाला था। पर जैसे जैसे वक्त का कारवाँ आगे बढ़ता गया पाठशालाओ का माध्यम अंग्रेजी होने लगा और विदृयार्थियो की रूचि हिंदी में कम होने लगी। वे अपनी मातृभाषा से दूर बहुत दूर होने लगे जो कि काफी दुखद स्थिति हैं। यह सब देखकर ऐसा लगता है कि भारतीय होकर भी हम अपनी मातृभाषा हिंदी को मान सम्मान नहीं देकर कितना बड़ा गुनाह कर रहे हैं। 

यह सब देखकर विश्व मे हिंदी के मान सम्मान ओर उसके विकास और इसके प्रचार-प्रसार के लिए जागरूकता की अलख जगाने के लिए हिंदी को अंतराष्ट्रीय भाषा के रूप में पेश करना एक साहसपूर्ण कदम है। मेरे लिए हिंदी भाषा ठीक उस तरह है जैसे चाहे कितने व्यंजन काॅन्टिनेन्टल हो पर जो मजा पानीपूरी, वड़ा पाव और कुल्फी में आता है वही मजा हिंदी बोलने मे आता हैं। इसलिए हिंदी को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ले जाकर इसका आनंद सभी को करवाना हम आने वाली पीढ़ी का कर्तव्य हैं। क्योकि यही हमारी पहचान और हमारी एकता, संस्कृति को बरकरार करने की सशक्त माध्यम है।

अब अंत में, मैं अपनी हिंदी भाषा के सम्मान में अपनी भावनाओं को व्यक्त करूंगी।

जापानी बोले जापान में,
स्पेनिश बोले स्पेनी में,
फिर हम क्यो न बोले हिंदी में
वक्ताओं की ताकत हिंदी,
लेखक का अभिमान हिंदी,
भारतीयों की पहचान हिंदी,
आओ मिलकर करें इसका सम्मान,
माथे की यह बने बिंदी,
मेरी प्यारी-प्यारी हिंदी।


– सुखवीन कंधारी 

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