प्रधूपिता से — महेंद्र भटनागर

प्रधूपिता से अर्थात् दुखिया से। कविता एक ऐसी औरत को सम्बोधित है जो किसी कारणवश पथभ्रष्ट हो चुकी है दकियानूस समाज द्वारा तिरस्कृत और बहिष्कृत है।

.

विपथगे !

जगतिरस्कृत,

माँग को

सिन्दूर से भर दूँ !

.

सहचरी !

मूक रोदन की

कंठ को

नाना नये स्वर दूँ !

.

धनी !

अभिशप्त जीवन की

तुझे उल्लास का वर दूँ !

.

नमित निर्वासिता !

नील कमलों से

घिरा घर दूँ !

.

वंचिता !

उपहसित नारी

अरे

रुक्ष केशों पर

विकंपित

स्नेहपूरित

उँगलियाँ धर दूँ !

.


You May Also Like