उम्र भर हम रहे शराबी से
दिल-ए-पुर्खूं की इक गुलाबी से
खिलना कम-कम कली ने सीखा है
उसकी आँखों की नीम ख़्वाबी से
काम थे इश्क़ में बहुत ऐ मीर
हम ही फ़ारिग़ हुए शताबी से
याँ हुये ‘मीर’ हम बराबर-ए-ख़ाक
वाँ वही नाज़-ओ-सर्गिरानी है।