बड़ा पुल गिरने को है !

बड़ा पुल गिरने को है !

एक बड़ा पुल गिरने को है
पुल जर्जर हो गया है
पुल हिल रहा है
पुल डगमगा रहा है
जीर्ण पायों पर खड़ा पुल 
समूचा कांप रहा है
पुल थके बूढ़े के पंजर जैसे थर थर हाफ रहा है
पुल अभी गिरा नहीं है बस कभी भी
गिरने को है!
पुल
आओ पुल का शोक मना लें
आओ पुल को गिरता हुआ देखें
आओ पुल को ध्वस्त होता देखें
आओ विराट पुल को थार्रता हुआ देखें!
अपने कोलाहल में ध्वस्त
अपने गौरव से पस्त
पुल को अकेला होते देख रही है 
निरीह वसुधा
उसे धारण किए है जो जन्म के पहले से भी!
यह पुल का अंजर पंजर गल जाना
यह पुल का संत्रस्त सा डगमगाना
राष्ट्रीय शोक का विषय है वैसे
लेकिन परिवहन मंत्री का बयान है कि
उनके रास्तों में नहीं आते पुल!
इसलिए पुल के गिरने या 
खड़े रहने का विषय पुल और उसके पायों का
निजी प्रकरण है
अब पुल जाने और
पुलगामी यात्री जाने कि पुल के साथ यह सब क्यों हो रहा है!
बोधिसत्व
बोधिसत्व
पुल का जर्जर होना एक देश का जर्जर होना नहीं मानती सरकार!
बहुत हुआ तो पुल की कमजोरी को 
लोहे सीमेंट और बालू के आपसी सद्भाव के अभाव का परिणाम माना जाए
पुल की कंपकंपाहट राष्ट्रीय दुर्बलता नहीं!
निरीह पुल औंधे मुंह गिरने को है
एक विराट पुल धराशायी होने को है
एक पुल के गिरने कि संभावना से नदी उदास है या खुश यह खुद नदी को समझ नहीं आ रहा
पुल के बारे में मछलियों और मछुआरों की कोई राय नहीं ली जा रही है
पुल के पायों से टकराने वाली किसी नाव से किसी ने कुछ नहीं पूछा की पुल का गिरना उसे कैसा लगेगा
पानी की किसी बूंद का कोई बयान नहीं दर्ज हो रहा जबकि पुल का गिरना पानी की हर बूंद का पराजित होना है!
बूंदों मछलियों मछुआरों नदियों और नावों की अनिच्छा के बाद भी
उनका बड़ा पुल गिर रहा है!
जिस शहर में देखो
जिस गांव जंगल वन बीहड़ में देखो
कांप रहा है बड़ा पुल
ढहने के पहले हाफ रहा है बड़ा पुल!
– बोधिसत्व, मुंबई

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