देश कैसे रहेगा आबाद

देश कैसे रहेगा आबाद

तोड़कर सन्नाटे को चीख उसकी गुंजी ,
हमारी बुजदिली तो देखो फिर भी चुप रहे |
बातें की बड़ी बड़ी
जरुरत पड़ी तो चूक गए |
 इतने कायर इतने कमज़ोर बने
 की जन्म देने पर माँ भी आज शर्मिंदा है |
फिर जली मोमबत्तियां   

देश कैसे रहेगा आबाद

लोग सड़कों पे आये ,
 हुई बहस बाजियां
पुतले जलाये |
  रौंदा किसी के दिल को
 शरीर लहू  _लुहान था
सपने लुटे उसके ,
क्यों न समझा वो भी एक इंसान था|
  वर्तमान को तोडा
भविष्य को किया बर्बाद
 अपनों ने ही कुचला उसे
   फिर  ये देश कैसे रहेगा आबाद |

-प्रतिभा ठाकुर 
मधुबनी 

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