सँभलो
मैं सन् 2002 के गुजरात दंगों वाले
क़ुतुब अंसारी की
कातर गिड़गिड़ाती आँखें हूँ
मैं 1984 के दिल्ली के तिलक नगर में
गले में टायर डाल कर
जला दिए गए निर्दोष सिखों की
हृदय-विदारक चीख़ हूँ
मैं मिर्चपुर और खैरलाँजी में
मारे गए मासूम दलितों की
बेचैन रूह हूँ …
ऐ मेरे मुल्क के
सोए हुए लोगों
मैं तुम्हारे ज़हन में
मर रहे लोकतंत्र का
मिटता वजूद हूँ
– सुशांत सुप्रिय