भक्ति की शक्ति

भक्ति की शक्ति

हर इंसान के जीवन में कभी न कभी एक क्षण ऐसा ज़रूर आता है जब उसे अपनी शक्ति का अहसास हो जाता है। वो अपने जीवन को बदलने का निश्चय कर लेता है। कुछ वर्ष पहले इस शक्ति को मैंने भी महसूस किया था। पति का तबादला दूसरे शहर में हो गया था और मैं बेटियों के साथ इसी शहर में थी। उनकी पढ़ाई में विघ्न न हो इसलिए पति के साथ नहीं गई। उस समय एक निजी विद्यालय में शिक्षिका थी। घर और बच्चों की पढ़ाई के साथ अपनी नौकरी का संतुलन नहीं बना पाई और नौकरी छोड़नी पड़ी। 

भक्ति की शक्ति
भक्ति की शक्ति

घर व्यवस्थित हो गया, बच्चे भी खुश थे लेकिन मुझे कुछ अधूरा सा लगता था। यही लगता रहता कि परिस्थितियों के सामने मैंने हार मान ली थी। अक्टूबर में नवरात्र शुरू हुए। इस बार मैंने पूरे नौ दिन व्रत करने की ठानी। हर बार बस प्रथम और अंतिम नवरात्र ही कर पाती थी। उपवास करके बहुत अच्छा लगा। हर दिन दुर्गा चालीसा पढ़ना और मां दुर्गा की आरती करना बहुत सुकून देता था। इन्हीं दिनों मेरे दिमाग में यह बात अाई कि क्यूं न अपनी योग्यता को बढ़ाया जाए। मैंने कैरियर परामर्शदाता के कोर्स के लिए आवेदन किया और कोर्स शुरू हो गया। छह महीने लगे कोर्स पूरा होने में। कोर्स पूरा होने के बाद आत्मविश्वास और भी बढ़ गया। 

अगले वर्ष पति का स्थानांतरण इसी शहर में हो गया। मैंने फिर से एक विद्यालय में पढ़ाना शुरू कर दिया। तबसे नवरात्र पूरे नौ दिन रखती हूं और दुर्गा चालीसा तो रोज़ ही पढ़ती हूं।

– अर्चना त्यागी

जोधपुर,राजस्थान

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